शनिवार, 30 अप्रैल 2011

अपना गाँव

दूर दूर तक है... खेत हरे हरे
मखबल की मानिंद... हरे भरे
प्यारा है.....सबसे मेरा गाँव

पीपल की मिलती है प्यारी छांव
वृक्ष आम नीम पीपल के लगे है
यहाँ कच्चे - पके से बेर लगे हैं

हरियाली है....मेरा गाँव का गहना
पेड़ पर लगे अमरूदों का क्या कहना

गेंहू की खूब लगी है सुंदर बाली
दूर दूर तक फैली है.. हरियाली
बहती है.. शीतल मंद मंद हवा

ऊपर छाया है नीला नीलगगन
गाँव में सुंदर नदी यहाँ बहती है
इसकी धरती खूब सुकून देती है
नदी मंद मंद बहती है.. निर्झर
कभी इधर .. ..तो कभी उधर

गाँव किसानो का है पावन धाम
पावन पावन है मेरा प्यारा ग्राम
जहाँ लगती है किसानो की चौपाल
गाँव में जैसे ही होता है सायंकाल

स्वच्छ चाँदनी की और है बात
होती है ...जैसे ही शीतल रात
सबको मन को भाता है मेरा गाँव

प्यारा है दिल से मेरा अपना गाँव

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