शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

खूनी हस्‍ताक्षर ( गोपालप्रसाद व्यास )


वह खून कहो किस मतलब काजिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब काआ सके देश के काम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,वह खून नहीं, पानी है!

उस दिन लोगों ने सही-सहीखून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा मेंमॉंगी उनसे कुरबानी थी।

बोले, "स्वतंत्रता की खातिरबलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,लेकिन आगे मरना होगा।

आज़ादी के चरणें में जो,जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों केफूलों से गूँथी जाएगी।

आजादी का संग्राम कहींपैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदानंगे सर झेला जाता है"

यूँ कहते-कहते वक्ता कीआंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठादमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके,वे बोले, "रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत कीआज़ादी तुम मुझसे लेना।"

हो गई सभा में उथल-पुथल,सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों केकोसों तक छाए जाते थे।

“हम देंगे-देंगे खून”शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़ेतैयार दिखाई देते थे।

बोले सुभाष, "इस तरह नहीं,बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉंआकर हस्ताक्षर करता है?

इसको भरनेवाले जन कोसर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवनमाता को अर्पण करना है।

पर यह साधारण पत्र नहीं,आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन काकुछ उज्जवल रक्त गिराना है!

वह आगे आए जिसके तन मेंखून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने कोहिंदुस्तानी कहता हो!

वह आगे आए, जो इस परखूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आएजो इसको हँसकर लेता हो!"

सारी जनता हुंकार उठी-हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,हम अपना रक्त चढाते हैं!

साहस से बढ़े युबक उस दिन,देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से,वे अपना रक्त गिराते थे!

फिर उस रक्त की स्याही में,वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने परहस्ताक्षर करते जाते थे!

उस दिन तारों ने देखा थाहिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने ख़ूँ से अपना इतिहास नया।

गोपालप्रसाद व्यास


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