मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

में बचपन जीना चाहता हूँ........

मै उसी बचपन को नीत खोजा करता हूँ......
जिसको छोड़ आया गाँव की गलियों मैं.......
जीसे भूल आये अपने घर के अमरूद के पेड पर.......
जीसे छोड़ आया  मैं अपने ही दोस्तों केबीच में......
मैं अपने उस बचपन को अब भी खोजा करता हूँ........
भाग दौड़ भरी जिंदगी में बचपन जीना चाहता हूँ........

रविवार, 14 दिसंबर 2014

ये मन वीराना है......

आज मन बहुत कष्ट में है
इस मन में कुछ भी नहीं है
यहाँ तक कि ना वीराना है
और ना ही कोई सन्नाटा
आवाज़ो के साथ यहाँ से
सन्नाटा भी चला गया है
जो कुछ यहाँ हुआ करता था
अब वो कुछ भी यहाँ नहीं है लेकिन…
इतने विराट खालीपन में भी
ना जाने ये कमबख़्त… दर्द
जाने ये दर्द कहाँ से उपजता है
किस तरह ये दर्द उदयशील है
जबकि सृष्टि सारी अस्त में है?
आज मन बहुत कष्ट मेंहै.....
..........

मैं और मेरा अकेला पन.....

दिन समाप्त हुआ नहीं जीवन की घड़ियां
अभी मैं हूँ और साथ मेरे एकाकीपन
यह एकांत वृक्ष और यह संध्या
सभी को तुम्हारे आने का विश्वास
सूनेपन से बंजर हुई मन की धरती पर
तुम सावन बन कर छाओगी
विश्वास मुझे, तुम आओगी, तुम आओग....

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