दिन समाप्त हुआ नहीं जीवन की घड़ियां
अभी मैं हूँ और साथ मेरे एकाकीपन
यह एकांत वृक्ष और यह संध्या
सभी को तुम्हारे आने का विश्वास
सूनेपन से बंजर हुई मन की धरती पर
तुम सावन बन कर छाओगी
विश्वास मुझे, तुम आओगी, तुम आओग....
अभी मैं हूँ और साथ मेरे एकाकीपन
यह एकांत वृक्ष और यह संध्या
सभी को तुम्हारे आने का विश्वास
सूनेपन से बंजर हुई मन की धरती पर
तुम सावन बन कर छाओगी
विश्वास मुझे, तुम आओगी, तुम आओग....
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