शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

एक पैगाम .... सच्चे प्यार के नाम




आज कहूँ मै एक छोटी सी कहानी.
बात है कुछ सालों पुरानी.
था एक लड़का भोला भला सा
थी एक लड़की छैल छबीली सी.

शुरू हुयी थ जब ये कहानी.
दोनों ने दी थी खुद को जुबानी.
चाहे मुश्किले आये दिन रात.
कभी ना छोड़ेंगे एक दूजे साथ.

मगर इस कहानी ने लिया एक अनजान मोड़.
अचानक वोह लड़का चल पडा सब छोड़.
उसके मौत पे कितने ही लोग रोये.
अपने कलेजे के तुकडे को खोये.

मगर एक हादसा हुवा यह अजीब.
लडके की रूह पहुंची जन्नत के करीब.
उसने अपने कदमो को अन्दर जाने से रोका.
खेल था कुछ अजीब और अनोखा.

कहा उस की रूह ने करूँगा मै प्रवेश.
उसके पहले मुझे देना है एक सन्देश.
ओह मेरी प्यारी चाहे दिन हो या रात.
हमने कही थी एक दूजे को यह बात.

"" एक वादा था तेरे हर वादे के पीछे,
तू मिलेगी मुझे हर दरवाजे के पीछे,
पर तू मुझे रुसवा कर गयी,
एक तू ही ना थी मेरे जनाजे के पीछे"".

तभी अचानक आई पहचानी सी एक आवाज.
कोई नहीं समझा इस गूँज का यह राज़.
किया था जो लडके ने उससे यह सवाल.
मिला उसे एक जवाब कुछ इस हाल.

"" एक वादा था मेरा हर वादे के पीछे,
मै मिलूंगी तुझे हर दरवाजे के पीछे,
पर तुने मुडके ही ना देखा मुझे,
एक और जनाज़ा था तेरे जनाज़े के पीछे""


दिया था जिसने उस लड़के के सवाल का जवाब .
वोह थी उस लड़की की मोहब्बत बे हिसाब .
चली आई काटे वोह जीवन की डोर .
जब उसका आशिक चला था उसे छोड़ .

यही तो नहीं पूरी होती मोहब्बत की ये बात.
क्योंकि यह अंत नहीं हुई है एक शुरुवात .

सच्चे प्यार को कोई सीमा, पहरे, दीवार और भगवान् भी नहीं रोक सकता .


सच्चे प्यार के नाम यह पैगाम ......

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