सोच रहा हूँ मै बैठा,
ये प्यास कैसी होती है,
बिना पानी के मछली जैसी,
या फ़िर सूखे पेड़ के जैसी,
ये प्यास कैसी होती है,
सूख जाते है पेड़ प्यास में,
फ़ट जाती है धरती प्यास में
या फ़िर सुखे सागर जैसी
ये प्यास कैसी होती है
किसी को प्यास है कुर्सी की,
कोई पैसे का प्यासा है,
किसी को प्यास है शौहरत की,
कोई प्राणो का प्यासा है,
ये प्यास कैसी होती है,
मुझको भी तो प्यास लगी है
बढ़ा होने की आस लगी है,
पढ़लिख कर पायलट बनने की,
दूर हवा में उड़ जाने की
दुनिया भर में नाम कमाने की
सोच रहा हूँ मै बैठा,
ये प्यास कैसी होती है॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें