रात को शर्द मसहरी में जब
आदतन मुझको खोजती होगी,
भर कर तकिया गुदाज बाँहों में
अश्क धीरे से पोंछती होगी .
अपने साये से चौकने वाली
कैसे शमाएँ बुझती होगी ?
मेरी बाहों के सिरहाने के बिना
नींद कैसे उसे आती होगी.
अश्क धीरे से उसकी आँखों से
जर्द गालो पे लुढ़कते होंगे,
दिल में हर रात मुझसे मिलने के
कितने जज्बात सुलगते होंगे.
मेरी यादो के सहारे उसने
कितने दिन रात गुजारे होंगे,
कितनी बेताब तमन्नाओं के
काफिले पार उतारे होंगे.
मेरे आने का गुमा होने पर
भर आह वो रोई होगी ,
मुझको है नींद आती नहीं
तो कैसे मानु की वह सोयी होगी...
आदतन मुझको खोजती होगी,
भर कर तकिया गुदाज बाँहों में
अश्क धीरे से पोंछती होगी .
अपने साये से चौकने वाली
कैसे शमाएँ बुझती होगी ?
मेरी बाहों के सिरहाने के बिना
नींद कैसे उसे आती होगी.
अश्क धीरे से उसकी आँखों से
जर्द गालो पे लुढ़कते होंगे,
दिल में हर रात मुझसे मिलने के
कितने जज्बात सुलगते होंगे.
मेरी यादो के सहारे उसने
कितने दिन रात गुजारे होंगे,
कितनी बेताब तमन्नाओं के
काफिले पार उतारे होंगे.
मेरे आने का गुमा होने पर
भर आह वो रोई होगी ,
मुझको है नींद आती नहीं
तो कैसे मानु की वह सोयी होगी...