नहीं देश से प्यार जिन्हें वे मानव नहीं पहान(पथ्थर) है,
हड्डी-मांस के दो पैरोवाले प्राणों के वाहन है.
जो मरा नहीं है भावो से,बहती जिसमे रसधार नहीं,
वह ह्रदय नहीं है पत्थर है,जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं.
बाधाए कब बांध सकी है आगे बढ़ने वालो को,
विपदाए कब रोक सकी है मरकर जीनेवालो को.
जिसने मरना सिख लिया,जीने का अधिकार उसी को,
जो काँटों के पथ पर आया,फूलो का उपहार उसी को.
देश के लिए जीऊ,देश के लिए मरू,
जन्म कोटि कोटि बार देश के लिए धरु
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