बुधवार, 16 फ़रवरी 2011
कहा जाता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, प्राय: सभी विश्वकर्मा भगवान की ही बनाई कही जाती हैं। यहां तक कि सतयुग का 'स्वर्ग लोक', त्रेता युग की 'लंका', द्वापर की 'द्वारिका' और कलयुग का 'हस्तिनापुर' आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं। 'सुदामापुरी' की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा भगवान् ही थे। इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को बाबा विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है।
एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम 'नारायण' अर्थात साक्षात विष्णु भगवान जलार्णव (क्षीर सागर) में शेषशय्या पर आविर्भूत हुए। उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' तथा धर्म के पुत्र 'वास्तुदेव' हुए। कहा जाता है कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री (जो दक्ष की कन्याओं में एक थी) से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए। पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।
भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं- दो बाहु, चार बाहु एवं दश बाहु तथा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख। उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र हैं। यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार किया। इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ सोने-चांदी से जोड़ा जाता है। भगवान विश्वकर्मा की महत्ता स्थापित करने वाली एक कथा भी है। इसके अनुसार वाराणसी में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। अपने कार्य में निपुण था, परंतु स्थान-स्थान पर घूम-घूम कर प्रयत्न करने पर भी भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था। पति की तरह पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए वे साधु-संतों के यहां जाते थे, लेकिन यह इच्छा उसकी पूरी न हो सकी। तब एक पड़ोसी ब्राह्माण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा महात्म्य को सुनो। इसके बाद रथकार एवं उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। उत्तर भारत में इस पूजा का काफी महत्व है।
पूजन विधि: भगवान विश्वकर्मा की पूजा और यज्ञ विशेष विधि-विधान से होता है। इसकी विधि यह है कि यज्ञकर्ता स्नानादि-नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पत्नी सहित पूजास्थान में बैठे। इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करे। तत्पश्चात् हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर- ओम आधार शक्तपे नम: और ओम् कूमयि नम:; ओम् अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम: ऐसा कहकर चारों ओर अक्षत छिड़के और पीली सरसों लेकर दिग्बंधन करे। अपने रक्षासूत्र बांधे एवं पत्नी को भी बांधे। पुष्प जलपात्र में छोड़े। इसके बाद हृदय में भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करे। रक्षादीप जलाये, जलद्रव्य के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करे। शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाए। उस स्थान पर सप्त धान्य रखे। उस पर मिट्टी और तांबे का जल डाले। इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश का आच्छादन करे। चावल से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा बाबा की मूर्ति स्थापित करे और वरुण देव का आह्वान करे। पुष्प चढ़ाकर कहना चाहिए- हे विश्वकर्मा जी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए। इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करे।
हमारे देश में विश्वकर्मा जयंती (17 सिंतबर) पूरे धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन देश के विभिन्न राज्यों में, खासकर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में पूजा होती है। इस मौके पर मशीनों, औजारों की सफाई एवं रंगरोगन किया जाता है। इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है और उनकी आराधना की जाती है, लेकिन चंडीगढ़ और पंजाब में दीपावली के दूसरे दिन यह पर्व मनाया जाता है। 17 सितंबर को श्रम दिवस के रूप में जाना जाता है। विश्वकर्मा समाज के लोग बाबा विश्वकर्मा पूजा अवश्य करते हैं।
लोकप्रिय पोस्ट
-
ये कोई 1 साल पहले की बात है....... एक व्यक्ति को मुंबई से पुणे जाना था... परन्तु उसने नए बने एक्सप्रेस वे की जगह पुराने रस्ते ...
-
यह एक डरावना चुटकला है. कृपया कर कमजोर दिल वालो से प्रार्थना है की वो इसे ना पढ़े. रात बहुत हो गई थी. सड़क भी सुनसान सी ही थी. इस पर बरसात ने ...
-
आजकल की लड़कियां जिन्हें कच्ची उम्र में प्यार करने का शौक होता है वह कितना भयानक होता है. अक्सर लड़कियां चौदह पन्द्रह साल की उमर में प्यार ...
-
मैं एक भ्रूण हूं। अभी मेरा कोई अस्तित्व नहीं। मैं प्राकृतिक रूप से सृष्टि को आगे बढ़ाने का दायित्व लेकर अपनी मां की...
-
नयी इच्छाओँ ने जन्म लेना शुरू कर दिया है... ये कैसे हो गया? अभी तो कई पुरानी इच्छाएँ, अपने साकार होने की प्रतीक्षा कर रही हैँ... अब इतनी सार...
-
तुलसी की माला धारण जो लोग करते है उनके शरीर की विद्युत शक्ति कभी समाप्त नहीं होती है.तुलसी की माला पहनने से व्यक्ति की असमय मृत्यु नहीं होती...
-
प्रागैतिहासिक युग से चले आने वाले केवल तीन ही धर्म आज संसार में विद्यमान हैं - हिन्दू धर्म, पारसी धर्म और यहूदी धर्म । उनको अनेकानेक प्रचण्ड...
-
एक बार लोहे और सोने मे बहस छिडी ! जोरदार गरमागरम! बात तमाम पहलुओं से होते हुये इस बात पर आ गई कि जलया तू भी जाता है जलाया मैं भी जाता हूं! र...
-
१- नारी चाहे किसी भी आयु और अवस्था की क्यूँ न हो लेकिन प्रकृति से माँ ही होती है और पुरुष चाहे किसी भी आयु और अवस्था का क्यूँ न हो जाये लेकि...
-
जब छोटा था तो माँ से अक्सर एक ही सवाल पूछता था मैं कब पापा जितना बड़ा होऊंगा माँ हंसकर उस बात को टाल जाती थी फिर जब भी वक़्त मिलता था तो आईन...