शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

एक पैगाम .... सच्चे प्यार के नाम




आज कहूँ मै एक छोटी सी कहानी.
बात है कुछ सालों पुरानी.
था एक लड़का भोला भला सा
थी एक लड़की छैल छबीली सी.

शुरू हुयी थ जब ये कहानी.
दोनों ने दी थी खुद को जुबानी.
चाहे मुश्किले आये दिन रात.
कभी ना छोड़ेंगे एक दूजे साथ.

मगर इस कहानी ने लिया एक अनजान मोड़.
अचानक वोह लड़का चल पडा सब छोड़.
उसके मौत पे कितने ही लोग रोये.
अपने कलेजे के तुकडे को खोये.

मगर एक हादसा हुवा यह अजीब.
लडके की रूह पहुंची जन्नत के करीब.
उसने अपने कदमो को अन्दर जाने से रोका.
खेल था कुछ अजीब और अनोखा.

कहा उस की रूह ने करूँगा मै प्रवेश.
उसके पहले मुझे देना है एक सन्देश.
ओह मेरी प्यारी चाहे दिन हो या रात.
हमने कही थी एक दूजे को यह बात.

"" एक वादा था तेरे हर वादे के पीछे,
तू मिलेगी मुझे हर दरवाजे के पीछे,
पर तू मुझे रुसवा कर गयी,
एक तू ही ना थी मेरे जनाजे के पीछे"".

तभी अचानक आई पहचानी सी एक आवाज.
कोई नहीं समझा इस गूँज का यह राज़.
किया था जो लडके ने उससे यह सवाल.
मिला उसे एक जवाब कुछ इस हाल.

"" एक वादा था मेरा हर वादे के पीछे,
मै मिलूंगी तुझे हर दरवाजे के पीछे,
पर तुने मुडके ही ना देखा मुझे,
एक और जनाज़ा था तेरे जनाज़े के पीछे""


दिया था जिसने उस लड़के के सवाल का जवाब .
वोह थी उस लड़की की मोहब्बत बे हिसाब .
चली आई काटे वोह जीवन की डोर .
जब उसका आशिक चला था उसे छोड़ .

यही तो नहीं पूरी होती मोहब्बत की ये बात.
क्योंकि यह अंत नहीं हुई है एक शुरुवात .

सच्चे प्यार को कोई सीमा, पहरे, दीवार और भगवान् भी नहीं रोक सकता .


सच्चे प्यार के नाम यह पैगाम ......

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

जब प्राण तन से निकले

इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले

गोविन्द नाम लेके, तब प्राण तन से निकले,
श्री गंगाजी का तट हो, जमुना का वंशीवट हो,
मेरा सावला निकट हो, जब प्राण तन से निकले

पीताम्बरी कसी हो, छबी मान में यह बसी हो,
होठो पे कुछ हसी हो, जब प्राण तन से निकले

जब कंठ प्राण आये, कोई रोग ना सताये (२)
यम् दरश ना दिखाए, जब प्राण तन से निकले

उस वक्त जल्दी आना, नहीं श्याम भूल जाना,(२)
राधे को साथ लाना, जब प्राण तन से निकले,

एक भक्त की है अर्जी, खुद गरज की है गरजी
आगे तुम्हारी मर्जी जब प्राण तन से निकले
इतना to करना साई, जब प्राण तन से निकले

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

रात को

रात को शर्द मसहरी में जब
आदतन मुझको खोजती होगी,
भर कर तकिया गुदाज बाँहों में
अश्क धीरे से पोंछती होगी .

अपने साये से चौकने वाली
कैसे शमाएँ बुझती होगी ?
मेरी बाहों के सिरहाने के बिना
नींद कैसे उसे आती होगी.

अश्क धीरे से उसकी आँखों से
जर्द गालो पे लुढ़कते होंगे,
दिल में हर रात मुझसे मिलने के
कितने जज्बात सुलगते होंगे.

मेरी यादो के सहारे उसने
कितने दिन रात गुजारे होंगे,
कितनी बेताब तमन्नाओं के
काफिले पार उतारे होंगे.

मेरे आने का गुमा होने पर
भर आह वो रोई होगी ,
मुझको है नींद आती नहीं
तो कैसे मानु की वह सोयी होगी...

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

तो कुछ हो जाये हसीं मजाक

हमारे एक पडोसी हे, नाम हे उन सज्जन का रामभारॊसे,वो खाने के तो इतने शोकिन नही हे, लेकिन पीने के बाद्शाह हे,अभी कल की बात हे, दफ़तर से सीधे पहुच गये दुकान पर, वहां से ली पुरी बोटेल जानी वाकर की,अब बाहर निकले ओर साथ मे बोटेल का ढाकन खोला, ओर थोडी थोडी लगे पीने,साथ मे गुनगुनाते हुये घर की तरफ़ चल पडे, थोडी थोडी बरसात भी हो रही थी सुबह से,इस कारण रास्तो पर कीचड भी था, ओर थोडा नशा भी चढ गया था,ओर थोडा थोडा अन्धेरा भी हो गया था,
रामभारोसे पेर फ़िसलने के कारण जमीनं पर गिरे,तभी आस्मान मे जोरो से बिजली चमकी,अब रामभारोसे ऊपर की ओर देख कर बोले वाह वाह भगवान एक तो गिरा दिया, ऊपर से फ़ोटो भी खीच लिया

नहीं देश से प्यार जिन्हें

नहीं देश से प्यार जिन्हें वे मानव नहीं पहान(पथ्थर) है,
हड्डी-मांस के दो पैरोवाले प्राणों के वाहन है.

जो मरा नहीं है भावो से,बहती जिसमे रसधार नहीं,
वह ह्रदय नहीं है पत्थर है,जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं.

बाधाए कब बांध सकी है आगे बढ़ने वालो को,
विपदाए कब रोक सकी है मरकर जीनेवालो को.

जिसने मरना सिख लिया,जीने का अधिकार उसी को,
जो काँटों के पथ पर आया,फूलो का उपहार उसी को.

देश के लिए जीऊ,देश के लिए मरू,
जन्म कोटि कोटि बार देश के लिए धरु

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

समय की कीमत


एक वर्ष की कीमत
उस लडके से पूछिये जो परीक्षा में फेल हो गया है, और एक वर्ष पिछड़ गया है। वह महसूस करता है एक वर्ष की कीमत ।
एक महीने की कीमत
उस महिला से पूछिये जिसने बच्चे को एक महीने देरी से या जल्दी जन्म दिया है। वह जानती है एक महीने की कीमत।
एक दिन की कीमत
आकस्मिक कार्य करने वाले मजदूर से पूछिये जिसे यदि एक दिन काम न मिले तो रोटी का सवाल खड़ा हो जाता है। वह जानता है एक दिन की कीमत।
एक घण्टे की कीमत
उस लड़के से पूछियें जो अपनी प्रेमिका की प्रतीक्षा कर रहा होता है और वह एक घंटा देर से आती है, तो वह जानता है कि उस एक घण्टे की कीमत क्या है?
एक मिनिट की कीमत
उस यात्री से पूछिये, जिसकी बस या रेल एक मिनट देर से पहुँचने की वजह से निकल गई है। यात्रा रद्द होने पर उसे एक मिनट की कीमत समझ में आती है।
एक सेकण्ड की कीमत
उससे पूछिये जो एक सेकण्ड की देर होने से किसी दुर्घटना से बच गया है, वह बताएगा एक सेकण्ड की कितनी कीमत होती है।
एक माइक्रो सेकण्ड की कीमत
एक अन्तरिक्ष वैज्ञानिक से पूछिये जो ब्रह्माण्ड़ की खोज में लगा है, जिसका कि एक माइक्रो सेकण्ड की गलत गणना से अन्तरिेक्ष मिशन ही फेल हो चुका है। वह समझाएगा एक माइक्रो सेकण्ड की कीमत।

आज और अभी, आप प्रतिदिन 86400 सेकण्ड का चेक पाते हैं, इसका उपयोग कर इसे भुनाइये। अन्यथा, यह चैक स्थायी रूप से अनादरित हो जाएगा। आप इसे दूसरी बार प्रस्तुत नहीं कर सकते।

समय को खोना हत्या नहीं आत्महत्या है ।

आधी बात

आधी बात कही थी तुमने

और आधी मैने भी जोड़ी

तब जाकर बनी तस्वीर

सच्ची-झूठी थोड़ी-थोड़ी

नटखट सी बातों के पीछे

दुनिया भर का प्यार छुपा

मुस्काती आँखो ने भी

जाने कितने स्वप्न दिखा

लूटा था भोला-सा बचपन

और मिला जब

पहला-पहला खत तुम्हारा

तुड़ा-मुड़ा, कुछ भीगा-भागा

भोर के स्वप्न सा

आधा सोया, आधा जागा

कैसे तुमने ओ लुटेरे

दिल को चुराया चुपके से

न दस्तक न आहट ही

दिल में मचाया शोर

चुपके से..


Shyam Vishwakarma

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

मां

बेटा /बेटी के होने पर
नारी माँ का दर्जा पा जाती है.
फिर सारे जीवन भर उनपर
ममता -रस बरसाती है ,

शोर शराबों वाले घर में
चुप होकर सब कह जाती है
कर त्याग तपस्या परिवार में
मां मौन साधिका बन जाती है

लगे भूख जब बच्चों को मां
सब्जी -रोटी बन जाती है
धूप लगी जो बच्चों को
मां छांव सुहानी हो जाती है .

ग़र मर भी जाए तो
हर मूरत में नज़र जाती है
झूठ -फरेब की दुनिया में
मां बडी जरूरत बन जाती है.

मां जीवन में ही समग्र
चेतन परमेश्वर बन जाती है
मां के अलावा कहीं ना मिलता
तभी तो ईश्वर कह्लाती है.

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है |
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है |

माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है |

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों, चाल बदलकर जाने वालों
चँद खिलौनों के खोने से, बचपन नहीं मरा करता है |

लाखों बार गगरियाँ फ़ूटी,
शिकन न आयी पर पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों,
लाख करे पतझड़ कोशिश पर, उपवन नहीं मरा करता है।

लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी ना लेकिन गंध फ़ूल की
तूफ़ानों ने तक छेड़ा पर,
खिड़की बंद ना हुई धूल की
नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों के की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है।

- गोपालदास "नीरज"

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

बेचारा मर्द !

बेचारा मर्द !

अगर औरत पर हाथ उठाये तो – जालिम

औरत से पिट जाये तो – बुजदिल

औरत को किसी के साथ देखकर लड़ाई करे तो – ईर्ष्यालु

चुप रहे तो – बेगैरत

घर से बाहर रहे तो – आवारा

घर में रहे तो – नाकारा

बच्चों को डांटे तो – जालिम

ना डांटे तो – लापरवाह

बीवी को नौकरी से रोके तो – शक्की मिजाज़

ना रोके तो – बीवी की कमाई खानेवाला

माँ की माने तो – माँ का चमचा

बीवी की माने तो – जोरू का गुलाम



उफ़ – ना जाने कब आयेगा “HAPPY MAN’S DAY” !

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011


कहा जाता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, प्राय: सभी विश्वकर्मा भगवान की ही बनाई कही जाती हैं। यहां तक कि सतयुग का 'स्वर्ग लोक', त्रेता युग की 'लंका', द्वापर की 'द्वारिका' और कलयुग का 'हस्तिनापुर' आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं। 'सुदामापुरी' की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा भगवान् ही थे। इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को बाबा विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है।

एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम 'नारायण' अर्थात साक्षात विष्णु भगवान जलार्णव (क्षीर सागर) में शेषशय्या पर आविर्भूत हुए। उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' तथा धर्म के पुत्र 'वास्तुदेव' हुए। कहा जाता है कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री (जो दक्ष की कन्याओं में एक थी) से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए। पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।

भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं- दो बाहु, चार बाहु एवं दश बाहु तथा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख। उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र हैं। यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार किया। इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ सोने-चांदी से जोड़ा जाता है। भगवान विश्वकर्मा की महत्ता स्थापित करने वाली एक कथा भी है। इसके अनुसार वाराणसी में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। अपने कार्य में निपुण था, परंतु स्थान-स्थान पर घूम-घूम कर प्रयत्न करने पर भी भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था। पति की तरह पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए वे साधु-संतों के यहां जाते थे, लेकिन यह इच्छा उसकी पूरी न हो सकी। तब एक पड़ोसी ब्राह्माण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा महात्म्य को सुनो। इसके बाद रथकार एवं उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। उत्तर भारत में इस पूजा का काफी महत्व है।

पूजन विधि: भगवान विश्वकर्मा की पूजा और यज्ञ विशेष विधि-विधान से होता है। इसकी विधि यह है कि यज्ञकर्ता स्नानादि-नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पत्नी सहित पूजास्थान में बैठे। इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करे। तत्पश्चात् हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर- ओम आधार शक्तपे नम: और ओम् कूमयि नम:; ओम् अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम: ऐसा कहकर चारों ओर अक्षत छिड़के और पीली सरसों लेकर दिग्बंधन करे। अपने रक्षासूत्र बांधे एवं पत्नी को भी बांधे। पुष्प जलपात्र में छोड़े। इसके बाद हृदय में भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करे। रक्षादीप जलाये, जलद्रव्य के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करे। शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाए। उस स्थान पर सप्त धान्य रखे। उस पर मिट्टी और तांबे का जल डाले। इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश का आच्छादन करे। चावल से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा बाबा की मूर्ति स्थापित करे और वरुण देव का आह्वान करे। पुष्प चढ़ाकर कहना चाहिए- हे विश्वकर्मा जी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए। इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करे।

हमारे देश में विश्वकर्मा जयंती (17 सिंतबर) पूरे धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन देश के विभिन्न राज्यों में, खासकर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में पूजा होती है। इस मौके पर मशीनों, औजारों की सफाई एवं रंगरोगन किया जाता है। इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है और उनकी आराधना की जाती है, लेकिन चंडीगढ़ और पंजाब में दीपावली के दूसरे दिन यह पर्व मनाया जाता है। 17 सितंबर को श्रम दिवस के रूप में जाना जाता है। विश्वकर्मा समाज के लोग बाबा विश्वकर्मा पूजा अवश्य करते हैं।

दिल का दर्द

दिल के एक कोने से आवाज आती है,
हमें हर पल उनकी याद आती है,
दिल पुछ्ता है हर बार हमसे,
जिन्हें हम याद करते हैं इतना,
क्या उन्हें भी कभी हमारी याद आती है??????
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रह रह कर आपकी याद आती है,

आपके न आने की वजह सताती है,
सोच रहे हैं जरुर कोई गम है,
या आपके दिल में हमारे लिए जगह कम है!!!!!!
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हमारा हर लम्हा चुरा लिया आपने,

आँखो को एक चाँद दिखा दिया आपने,
हमें तो जिंदगी दी किसी और ने,
पर इतना प्यार देकर जीना सिखा दिया आपने!!!!
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तेरा दुःख हम सह नही सकते ,

भरी महफ़ील में कुछ कह भी नही सकते,
हमारे गिरते हुए आँसू पकड कर तो देख,
वो भी कहते हैं हम आपके बिना रह नही सकते,
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कहीं अंधेरा तो कहीं शाम होगी,

मेरी हर खुशी तेरे नाम होगी,
कुछ माँगकर तो देख हमसे,
होठों पे हँसी और हथेली पर जान होगी!!!
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जिंदगी में किसी का ऎतबार मत करना,

दोस्ती की हदों को पार मत करना,
खो दोंगे उसे हमेशा के लिए,
इसलिए जो अच्छा लगे उनसे प्यार मत करना!!!
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वो मौसम वो बहार उसके सामने कम थी,

साथ गुजरा हुआ वक्त,वो फ़ीजा कम थी,
जुदा तो आखीर होना ही था जालीम,
क्या करें इन हाथों में मिलन की लकीरें कम थी!!!!!!!
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साथ न सही तन्हाई तो मिलती ही है,

मिलन न सही जुदाई तो मिलती ही है,
कौन कहता है प्यार में कुछ नही मिलता,
वफ़ा न सही बे-वफ़ाई तो मिलती ही है!!!!!
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काँच को चाहत थी पत्थर पाने की,

इक पल में फ़िर टूट कर बिखर जाने की,
चाहत बस उतनी थी उस दिवाने की,
अपने टूकडों में तस्वीर उसकी सजाने की!!
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रास्तें पे न बैठो ठंडी हवा तंग करेगी,

गुजरे हुए लम्हों की हर सजा तंग करेगी,
किसी को न लाऒ दिल के इतने करीब,
बाद में उसकी हर इक अदा तंग करेगी!!!

बे-वफ़ाई का दर्द (प्यार ना करीयों )

हमनें भी किसी से प्यार किया हैं,
राहों में खडे इंतजार किया है,
भुल उनकी नही,भुल हमारी है,
क्यूं कि उन्होंने हमसे नहीं,
हमने उनसे प्यार किया है!
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आज दूर से ही कोई सलाम कर गई,
अपनी यादों को गुलाम कर गई,
अपनी जिंदगी गिरवी रख कर खरीदा था जिसे,
आज वो ही मुझे नीलाम कर गई!!!!!!
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लहरों से मिलकर ना वो बह सके ना हम,
1 दूजे के दिल में न वो रह सके ना हम,
जीत लेते आसमान एक दिन........
लेकिन पलकों कॊ खामोशी को लब्जों में न वो कह सके न हम!!!!
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इश्क से मिली है जो तन्हाईंया हमें कैसे उनका दर्द बयां करेंगे?
1 से ही मोहब्ब्त इतनी कर ली अब किसी और से मोहब्ब्त क्या करेंगे?
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कदम कदम पे बहारों ने साथ छोड दिया,
पडा जब वक्त तो अपनों ने साथ छोड दिया,
कसम खायी थी सितारों ने साथ देने की,
सुबह होते ही सितारों ने भी साथ छोड दिया......
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खामोश पलकों से जब आंसू आते हैं,
आप क्या जानों आप हमें कितना याद आते हैं
आज भी उसी मोड पे खडे हैं,
जहां आपने कहा था"तुम ठहरो हम आते हैं”.........
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अगर हम 1 आंसू होते तो आपकी आंखो से होकर आपके गालों पर मरना पसंद करते,
और आप मेरी आंखो के आंसू होते तो वादा है हम जिंदगी भर न रोते.....
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तन्हाईंयों के सागर में तन्हा हमें छोड गई,
जाने के बाद इक अजीब रिश्ता जोड गई,
खुद को सताने का शौक था इतना,
दिल लगा के हमारा दिल अपना तोड गई..........
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मोहब्ब्त का अजीब कारोबार हमनें किया,
वो बे-वफ़ा सही पर प्यार हमनें किया,
अगर वो छोड जाए तो मत कहो बुरा उनकों,
कसूर उनका नही,ऎतबार हमनें किया..........
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सोचा इस कदर उनकों भुल जाऎंगे,
देख कर भी अनदेखा कर जाऎंगे,
पर जब जब सामने आया उनका ये चेहरा,
सोचा इस बार देख ले,अगली बार भुल जाऎंगे.

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

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सोच रहा हूँ मै बैठा,
ये प्यास कैसी होती है,

बिना पानी के मछली जैसी,

या फ़िर सूखे पेड़ के जैसी,

ये प्यास कैसी होती है,

सूख जाते है पेड़ प्यास में,

फ़ट जाती है धरती प्यास में

या फ़िर सुखे सागर जैसी

ये प्यास कैसी होती है

किसी को प्यास है कुर्सी की,

कोई पैसे का प्यासा है,

किसी को प्यास है शौहरत की,

कोई प्राणो का प्यासा है,

ये प्यास कैसी होती है,

मुझको भी तो प्यास लगी है

बढ़ा होने की आस लगी है,

पढ़लिख कर पायलट बनने की,

दूर हवा में उड़ जाने की

दुनिया भर में नाम कमाने की

सोच रहा हूँ मै बैठा,

ये प्यास कैसी होती है॥


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