खुद का पता नहीं हैं खुद में जो खो गया हूँ.....
तेरी बेरुखी से परेसां जागे जागे सो गया हूँ.....
एक पैर कब्र पर है एक तन्हाईयाँ है पकडे.....
या जी लूं इन्ही के संग मैं या समझूँ की मर गया हूँ....
सोचा था सारे लम्हे बीतेंगे तेरे संग ही.....
बस इक पहर ही गया था कोरा कागज जो हो गया हूँ....
क्यों याद आ रहे हैं 'वो लम्हे' जो थे साथ बीते.....
जो टूट कर था चाहा देख, अब तक मैं रिस रहा हूँ.....
जो बेतरतीबी थी मेरे दिल में, तेरे लिए अये जानम..
वो बेचैनी बन चुकी है और मैं घुट घुट के जी रहा हूँ.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें