बन्द कर दो डाकखाने
अब चिट्ठी नही आती
किसी के हाथ की खुश्बू
स्याही में नहीं आती
ख्वाबों और खयालों की
अब बारिश नही होती
संग जीने और मरने की
वो कसमे अब नही होती
भींगे लफ्ज की सिहरन
दिलों में अब नही होती
पन्नो में तड़फते अश्क़ की
अब बूंदें नहीं गिरती
वो मिलने की बिछड़ने की
तारीखें तय नही होती
गली में डाकिया आने की
अब खबरें नही होती
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