गुरुवार, 14 नवंबर 2013

अच्छा फिर मिलते हैं...........

एक गाँव है जहाँ कुछ घर है मिटटी के
शाम होते ही उन घरो में,
फ़ैल जाती है मध्यम रोशनी |
अक्सर मिल बैठ कर मानते हैं वे लोग
शाम का जश्न |
पहली बार गया था मैं वहां, अपरचित था उनके लिए |
पर कुछ घंटों में वे सब, अपने से लगने लगे |
जब से लौटा हूँ वापस, यही लगता है,
छोड़ आया हूँ अपना ही कोई हिस्सा, उस गाँव में |
एक वे हैं गाँव के सीधे सच्चे लोग
एक हम हैं शहर के पढ़े लिखे लोग
जो पूरी जिंदगी यही करते हैं
कैसे हो ? मैं ठीक हूँ !
अच्छा फिर मिलते हैं ...... नमस्ते......

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