फिर वही .हाँ फिर वही
सूनापन .
फिर वही सड़क पर आते-जाते
लोगों को देखना एकटक.....
फिर वही घड़ी में बार-बार
देखना समय......
फिर वही डोर बेल के
बजने का इंतज़ार....
फिर वही मोबाइल पर
चेक करना मिस्ड कॉल.......
फिर वही पलंग पर लेटे-लेटे
पंखे को देखना.....
फिर वही फ़ेसबुक पर
दोस्त ढूँढना .अपनी पोस्ट को
कितनों ने लाइक किया,
अधीर होकर गिनना.....
फिर वही जाने - अनजाने लोगों के
ट्वीट्स में संवाद तलाशना.....
फिर वही टेबल लैंप का स्विच
बार - बार ऑन करना
ऑफ़ करना .सोचने के लिए
कोई बात सोचना.....
फिर वही डेली सोप में
मन लगाना .धारावाहिक के
पात्रों में अपनापन खोजना .
उनकी कहानी में डूबना - उतरना,
उन्ही के बारे में अक्सर सोचना.....
फिर वही टीवी के
चैनल बदलते रहना .
फिर वही सच्ची - झूठी
उम्मीद बुनना......
फिर वही हर बीती बात की
जुगाली करना. फिर वही
वक़्त की दस्तक सुन कर
चौंकना......
फिर वही दिन - रात को
खालीपन के धागे से सीना.....
फिर वही बेचैनी,
अनमनापन.....
फिर वही
अकेलापन .
सूनापन .
फिर वही सड़क पर आते-जाते
लोगों को देखना एकटक.....
फिर वही घड़ी में बार-बार
देखना समय......
फिर वही डोर बेल के
बजने का इंतज़ार....
फिर वही मोबाइल पर
चेक करना मिस्ड कॉल.......
फिर वही पलंग पर लेटे-लेटे
पंखे को देखना.....
फिर वही फ़ेसबुक पर
दोस्त ढूँढना .अपनी पोस्ट को
कितनों ने लाइक किया,
अधीर होकर गिनना.....
फिर वही जाने - अनजाने लोगों के
ट्वीट्स में संवाद तलाशना.....
फिर वही टेबल लैंप का स्विच
बार - बार ऑन करना
ऑफ़ करना .सोचने के लिए
कोई बात सोचना.....
फिर वही डेली सोप में
मन लगाना .धारावाहिक के
पात्रों में अपनापन खोजना .
उनकी कहानी में डूबना - उतरना,
उन्ही के बारे में अक्सर सोचना.....
फिर वही टीवी के
चैनल बदलते रहना .
फिर वही सच्ची - झूठी
उम्मीद बुनना......
फिर वही हर बीती बात की
जुगाली करना. फिर वही
वक़्त की दस्तक सुन कर
चौंकना......
फिर वही दिन - रात को
खालीपन के धागे से सीना.....
फिर वही बेचैनी,
अनमनापन.....
फिर वही
अकेलापन .
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