शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

उस लम्हों की याद आती है........

जब कभी बीते उस लम्हों की याद आती है........
अनायास ही आँखों में पानी भर जाते है.........
आज भी जब कभी मै बेचैन होता हूँ.........
उस बेचैनी को पार निकालने तुम आ जाती हो........
मुझे तो अब भी याद है ओ हसीं यादें........
जब हम और तुम साथ में पढ़ा करते थे.........
पढने में तुम हमेशा ही मेरी मदत करती थी........
हमारे ना आने पार तुम कितना डांट सुनाती थी.....
तब मुझे ये एहसास ना था ये अपना पन क्यों है.....
पर तुमने भी कभी एहसास न दिलाई एसा क्यूँ .......
तुम्हारी एक आदत भी बहुत अजीब थी.........
कुछ भी दिल की बात कह के मजाक में उड़ा देती थी.....
उस मजाक को जब मै समझ पाया तो बहुत देर हो चुकी थी....
मै किसी और का हो चूका था और तुम मेरे इंतजार में थी.....
फिर भी तुमने ये न बताया की तुम्हारी हालत क्या है.....
फिर मेरे एक दोस्त में मुझ पर बिज़ली गिराई......
वो आज भी तेरे इंतजार में आखिरी सांसे गिन रही है......
ये बातें सुन कर मै हैरान हो गया,
क्या वो अपनापन प्यार हो गया.....
तुमसे मिलने जब मै अस्पताल आया....
सच कहूँ कितना हिम्मत कर के तुम्हारे सामने आया.....
तुम्हारा मुझसे गले लग कर फुट फुट कर रोना.....
तुम्हारे आंसुओं से मेरे कन्धों को भिगजाने पर......
मैं अपने आप को कितना बेबस महसूस कर रहा था.....
इतना दर्द में भी मुझसे हंस कर बात कर रही थी......
क्यूँ अपने दर्द को तुम मुझसे छुपा रही थी.....
क्यों तुमने मुझे नहीं बताया क्यूँ मुझे नहीं बुलाया......
अब तुम तो नहीं हो सिर्फ तुम्हारी यादें है.......
अब तुम तो नहीं हो सिर्फ तुम्हारी यादें है.......
श्याम विश्वकर्मा.........

1 टिप्पणी:

Krishna Prasad Vishwakrma ने कहा…

बहुत खूब
नायाब रचना

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