उसने चूल्हे में कुछ सूखी लकड़ियाँ डालकर उनमें आग लगा दी और
चूल्हे पर बर्तन चढ़ाकर उसमें पानी डाल दिया।
बच्चे अभी भी भूख से रो रहे थे।
छोटी को उसने उठाकर अपनी सूखी पड़ी छाती से चिपका लिया।
बच्ची सूख चुके स्तनों से दूध निकालने का जतन करने लगी और
उससे थोड़ा बड़ा लड़का अभी भी रोने में लगा था।
उस महिला ने खाली बर्तन में चिमचा चलाना शुरू कर दिया।
उस महिला ने खाली बर्तन में चिमचा चलाना शुरू कर दिया।
बर्तन में पानी के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था पर बच्चों को आस थी
कि कुछ न कुछ पक रहा है। आस के बँधते ही रोना धीमा होने लगा किन्तु
भूख उन्हें सोने नहीं दे रही थी।
वह महिला जो माँ भी थी बच्चों की भूख नहीं देख पा रही थी,
वह महिला जो माँ भी थी बच्चों की भूख नहीं देख पा रही थी,
अन्दर ही अन्दर रोती जा रही थी।
बच्चे भी कुछ खाने का इंतजार करते-करते झपकने लगे।
उनके मन में थोड़ी देर से ही सही कुछ मिलने की आस अभी भी थी।
बच्चों के सोने में खलल न पड़े इस कारण माँ खाली बर्तन में
बच्चों के सोने में खलल न पड़े इस कारण माँ खाली बर्तन में
पानी चलाते हुए बर्तनों का शोर करती रही और बच्चे भी
हमेशा की तरह एक धोखा खाकर आज की रात भी सो गये।
3 टिप्पणियां:
shyam bhai vakai aapki lekhani dil ko chhune vali hai, aapki lekhni se mujhe bahut bal milata hai!
kamlesh pratap vishwakarma, editor- vishwakarma kiran
SHYAM BHAI VAKAI AAPKI LEKHNI DIL KO CHHUNE VALI HAI, MAI AAPKI LEKHNI SE BAHUT KUCHH SEEKHTA HU
Thank you sir ji..... bas kuchh likh leta hu.....
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