ये वोही लोग जो पत्थर मारा करते थे कभी मुझे
ये वोही लोग हैं जो आज मुझे तारीफों के पुलों मैं रखा करते है
ये वोही लोग है जो फर्शो पे भी पाँव न रखने देते थे मुझे
ये वोही लोग है जो अर्शो पे बिठाये फिरते है मुझे
ये तो एक दस्तूर है ज़माने का
जानते है की लोग बस चढ़ते सूरज को सलाम करते है
इन लोगो को भी तुम कभी न समझोगे
ये तो बस भीड़ में कभी भी चल देते है
जिस दिन जिधर झुण्ड चलता है
बस उधर मुह उठाये तुरंत चल देते है
भीड़ में तो हर कोई चला करता है
हम वो मस्ताने है जो
बस अपनी धुन में चला करते है
बस अपनी धुन में चला करते है
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