गुरुवार, 4 जून 2020

गाँव ( पहले और अब )

कड़वी_सच्चाई

ये जो #तस्वीर  है वो दो भाइयों के बीच बंटवारे के बाद की बनी हुई तस्वीर है। बाप-दादा के घर की देहली को जिस तरह बांटा गया है वह हर गांव-घर की असलियत को भी दर्शाता है। 



दरअसल हम #गांव के लोग जितने #खुशहाल😀 दिखते हैं उतने हैं नहीं। जमीनों के केस, पानी के केस, खेत-मेढ के केस, रास्ते के केस, मुआवजे के केस, व्याह शादी के झगढे, दीवार के केस,आपसी मनमुटाव, चुनावी रंजिशों ने समाज को खोखला कर दिया है। 

अब #गांव  वो नहीं रहे कि बस में गांव की #लड़की को देखते ही सीट खाली कर देते थे बच्चे। दो चार थप्पड गलती पर किसी #बुजुर्ग या #ताऊ  ने टेक दिए तो इश्यू नहीं बनता था तब। 
अब हम पूरी तरह बंटे हुए लोग हैं। गांव में अब एक दूसरे के उपलब्धियों का सम्मान करने वाले, प्यार से सिर पर हाथ रखने वाले लोग संभवत अब मिलने मुश्किल हैं। 

हालात इस कदर खराब है कि अगर पडोसी फलां व्यक्ति को वोट देगा तो हम नहीं देंगे। इतनी नफरत कहां से आई है लोगों में ये सोचने और चिंतन का विषय है। गांवों में कितने #मर्डर  होते हैं, कितने झगडे होते हैं और कितने केस अदालतों व संवैधानिक संस्थाओं में लंबित है इसकी कल्पना भी भयावह है। 

संयुक्त परिवार अब गांवों में एक आध ही हैं, #लस्सी_दूध  की जगह वहां भी ड्यू  कोका  पिलाई जाने लगी है। बंटवारा केवल #भारत  का नहीं हुआ था, #आजादी के बाद हमारा #समाज भी बंटा है और शायद अब हम भरपाई की सीमाओं से भी अब दूर आ गए हैं। अब तो वक्त ही तय करेगा कि हम और कितना बंटेंगे। 

एक दिन यूं ही बातचीत में एक #मित्र  ने कहा कि जितना हम पढे हैं दरअसल हम उतने ही बेईमान बने हैं। गहराई से सोचें तो ये बात सही लगती है कि पढे लिखे लोग हर चीज को मुनाफे से तोलते हैं और ये बात समाज को तोड रही है।
ये हकीकत लफसर गैंग की जो समाज व परिवार को बर्बाद करके रहेगी बचा लो अपने अपने #परिवारों को 😥😥 अपनी #रिश्तेदारियों को😥😥
इस आभासी दुनिया #फेसबुक  पर जो भाईचारा दिखाते हो मुझे लगता हैं वो सब #फर्जी दिखावा हैं 
अपने परिवार को एक करो फिर इधर #ज्ञान  बांटे तो बेहतर होगा.।।
🙏🙏🙏

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