पत्थरों के शहर में ग़ज़ल गुनगुना रहा हूँ........
किन बेदर्द लोगोंको अपना दुःख सुनारहा हूँ.......
पेड़ों से लिपटकर कोई कब तक रोये आख़िर.......
इसलिये अब जंगलों के उस पार जा रहा हूँ......
किन बेदर्द लोगोंको अपना दुःख सुनारहा हूँ.......
पेड़ों से लिपटकर कोई कब तक रोये आख़िर.......
इसलिये अब जंगलों के उस पार जा रहा हूँ......
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