प्रियवर तुमसे हार गया हूं ,
नेह नदी के पार गया हूं ।
जब जब मैंने प्यार किया हैं ,
आशाओं से मार गया हूं ॥
देखा था मैंने इक सपना ,
मानूंगा तुमको मैं अपना ।
झंझावत में पड़ अपनों से ,
छुप कर तेरे द्वार गया हूं ।।
प्रियवर तुमसे हार गया हूं ,
नेह नदी के पार गया हूं ।
पागल मन को बहुत मनाया ,
फिर भी उसकी समझ न आया ।
मन मितवा से घड़ी मिलन की ,
बातों मे मैं टार गया हूं ।।
प्रियवर तुमसे हार गया हूं ,
नेह नदी के पार गया हूं ।।
आखें तुम बिन बनीं बदरिया ,
ढ़ूढ़ रहीं वो अपना संवरिया ।
मीन पिआसी जल मे रह कर ,
“प्रखर” विरह मे जार गया हूं ।।
प्रियवर तुमसे हार गया हूं ,
नेह नदी के पार गया हूं ।। ***
1 टिप्पणी:
श्याम जी, गजब की शब्दावली है। बहुत उम्दा । बहुत खास।
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