शुक्रवार, 14 सितंबर 2012
हिंदी की पाती......
मेरे नाम पर "हिंदी दिवस" जोर सोर से मनाया जाता है। मेरे प्रचार व प्रशार के लिए बड़े बड़े भाषण दिए जा रहे हैं। सरकारी कार्यालयों में कही हिंदी पखवाडा और कही हिंदी महिना मनाया जा रहा है। मै इससे काफी खुश हूँ........ लेकिन दुःख इस बात का है की मेरा हर दिन हिंदी दिवस की तरह क्यूँ नहीं होता ? आप को मेरी याद केवल एक ही दिन क्यों आती है? आप रोज मुझे याद क्यूँ नहीं करते? स्वतंत्रता प्राप्ति के ६४ वर्षो के पश्चात भी मै आप के दिन चर्या की हिस्सा क्यूँ नहीं बन पाई ?
क्या आप को याद है की आजादी के बाद आप ने ही मुझे देश की राष्ट्र भाषा बनने का गौरव प्रदान किया। पर आज मुझे अपने आस्तित्व को बाचने की चिंता सता रही है। लोगो ने अपने स्वार्थ शिद्धि के लिए मेरा तो उपयोग किया, लेकिन जब मुझे अपनाने की बात आई तब मुंह फेर लिया गया।
हिंदी भाषी फ़िल्में विचारों के अदन प्रदान का एक सशक्त माध्यम रही है, लेकिन मेरे ही माध्यम से लोकप्रियता हासिल करने वाले अभिनेता व अभिनेत्रियों को टीवी पर अपना साक्षात्कार अंग्रेजी में देते है तब मुझे दुःख होता है।
देश के राज नेताओं ने भी मेरा बहुत उपयोग किया, लेकिन मेरे आश्तित्व की रक्षा के लिए कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाये। ऐसा नहीं है की लोगो ने मेरा महत्वा को न समझा हो। विश्व के सर्वोच्च मंच पर ( अंतर्राष्ट्रीय संघ की बैठक) श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपना भाषण हिंदी में दे कर मुझे गौरवान्वित किया। क्या ये स्वर्णिम क्षण आप ने भुला दिया। इस लिए मै सभी को याद दिलाना चाहती हूँ की इतनी उपेक्षाओं के बावजूद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली और समझी जाने वाली भाषा मै ही हूँ। सारे देश को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा मै ही हूँ।
सारे अवरोधों के बावजूद विश्व में मेरा तीसरा स्थान बना हुवा है। अगर हमारी भारतीय संस्कृत को संमृद्ध बनाना है तो मुझे अपनाना ही होगा। तभी सही मायने में मैं देश की राष्ट्रभाषा बन पाऊँगी।
इन्ही आशाओं और अपेक्षाओं के साथ..........
आपकी अपनी "हिंदी"
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