सोमवार, 21 नवंबर 2011

पिता.........


माँ घर का गौरव तो पिता घर का अस्तित्व होते है......
माँ के पास अश्रुधारा तो पिता के पास संयम होता है.......

दोनों समय भोजन माँ बनाती है तो जीवन भर भोजन की ब्यवस्था
करने वाले पिता को हम सहज ही भूल जाते है.......

कभी लगी ठोकर या चोट तो " ओ माँ " ही मुंह से निकलता है......
लेकिन रास्ता पर करते समय कोई ट्रक पास आकर ब्रेक लगाये तो
"बाप रे " यही मुहं से निकलता है.......

क्यों की छोटे छोटे संकठो के लिए माँ है......
पर बड़े संकट आने पर पिता ही याद आते है.....

पिता एक वटवृक्ष हैं जिसकी शीतल छाँव में सम्पूर्ण
परिवार सुख से रहता है...........

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