शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

बस....

बस इसी बात का रोना है
दिल को सोना है 
और मैं सोने नही देता हूँ

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

नेहरू और गांधी का योगदान....


एक गांव में एक किसान रहता था। उसके पास दो बैल और दो कुत्ते थे।

एक बार उसे किसी काम से गांव से बाहर जाना था किंतु उसकी समस्या यह थी कि खेत जोतने का भी समय हो गया था, और काम पूरा करने के लिए गांव से बाहर भी जाना जरूरी था।

तब किसान ने उस समस्या का समाधान निकाला, उसने अपने बैलों और कुत्तों को बुलाकर कहा कि मैं कुछ दिनों के लिए गांव से बाहर जा रहा हूं, मेरे लौटने तक तुम लोग सारे खेत जोतकर रखना ताकि लौटने पर खेतों में बीज बो सकूं। बैलों और कुत्तों ने स्वीकृति में सिर हिलाया।

किसान चला गया और बैलों ने किसान के कहे अनुसार खेत जोतना शुरू कर दिया, परंतु कुत्ते आवारागर्दी करते हुए सारा-सारा दिन आवारागर्दी करते रहते।

बैलों ने किसान के लौटने से पहले पूरा खेत जोत दिया |
जब कुत्तों ने देखा कि खेतों की जुताई हो गई है और मालिक के लौटने का समय हो गया है तब कुत्तों ने बैलों से कहा कि तुम दोनों इतने दिनों से खेत जोत रहे हो और काफी थक गए हो इसलिए घर जाकर आराम करो और हम लोग खेतों की रखवाली करेंगे। 

कुत्तों की बात मानकर दोनों बैल घर चले गए और खा पीकर आराम करने लगे। इधर कुत्तों ने सारे खेतों में दौड़-भाग करके अपने पैरों के निशान बना दिए, और खेत की मेंड़ पर बैठकर किसान का इंतजार करने लगे | थोड़ी देर में किसान वापस गांव आया और सीधा खेतों पर पहुंचा तो देखा दोनों कुत्ते मेंड़ पर बैठे हैं और खेतों की जुताई हो गई है, परंतु बैल कहीं नजर नहीं आ रहे थे।
किसान ने कुत्तों से पूछा कि बैल कहां हैं ?

कुत्तों ने कहा- मालिक आप जबसे गए थे तभी से हम लोग खेत जोत रहे हैं और अभी काम पूरा करके मेंड़ पर बैठकर आपका इंतजार कर रहे हैं, जबकि बैल घर से बाहर निकलकर खेतों की ओर झांकने भी नहीं आए, 
वह घर पर ही आराम से सो रहे हैं।

मालिक ने खेतों में जाकर देखा तो उसे हर तरफ कुत्तों के पैरों के निशान मिले, वह कुत्तों के उपर बहुत प्रसन्न हुआ और कुत्तों के साथ घर लौटा तो देखा कि बैल घर के बाहर बैठे हुए आराम कर रहे थे | किसान बैलों के उपर बहुत क्रोधित हुआ और बैलों को रस्सी से बांध कर उनकी पिटाई कर दिया और कुत्तों को खाने के लिए दूध रोटी और मांस के टुकड़े दिए और बैलों को खाने के लिए सुखा हुआ भूसा दिया।

दादाजी कहते थे कि यह जो महात्मा गांधी रोड, नेहरू युनिवर्सिटी, इंदिरा एयरपोर्ट और ऐसे अनेकों जगह नेहरू और गांधी का नाम देखते हो यह उन कुत्तों के 
द्वारा बनाए पैरों के निशान हैं और आजादी के बाद 
से ही दूध मलाई खा रहे हैं |

जबकि रानी लक्ष्मी बाई,तात्या टोपे,लाला लाजपत राय ,वीर सावरकर, सुभाष चन्द्र बोस,  रामप्रसाद बिस्मिल, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम 
बोस जैसे सात लाख बहत्तर हजार असली सेनानियों 
के परिवार को रुखी-सूखी घास ही मिली है ।

बंधुओं, यही है स्वाधीनता संग्राम में गांधी-नेहरू का योगदान।

🙉🐵
🙏🙏

रविवार, 14 फ़रवरी 2021

बुधवार, 23 सितंबर 2020

लो लौट आया हुँ मैं...


लो लौट आया हुँ मैं
हारा नहीं था मैं
बस कुछ पल के लिए ठहरा था
कोशिश बहुत की ज़माने ने मुझे रोकने की
मैं हर मुश्किल को छोड़ आया हुँ
वक्त के साथ थोड़ा खो गया था मैं
मस्त नींद मे कुछ पल सो गया था मैं
दुनियाँ में मद मस्त हो गया था मैं
अब फिर मैं सब कुछ छोड़ आया हुँ
लो फिर लौट आया हुँ मैं......
लो फिर लौट आया हुँ मैं......

एक बहता हुआ हवा हूं, बहकर फिर, से लौट जाऊंगा मैं
दूर कहीं उन सितारों में, फिर से खो जाऊंगा मैं
एक गहरी नींद में, जाने कब सोया था मैं
फिर उस गहरी नींद में सोने चला जाऊंगा मैं
फिर से लौट जाऊंगा मैं......
हाँ फिर से लौट जाऊंगा मैं......

श्याम विश्वकर्मा @ShyamV_ 


शनिवार, 5 सितंबर 2020

फ़िल्म अभिनेत्रियां...

साल भर पहले प्रियंका चोपड़ा भारत में स्थित रोहंगिया मुसलमानो के कैम्प में उनसे मिलने चली गयी थी, ये खबर तब पूरी दुनिया में दिखाई गयी थी असल में वो गयी नहीं थी बल्कि उन्हें भेजा गया था, एक नैरेटिव सेट किया गया की रोहंगिया मुस्लमान बहुत पीड़ित है बेचारे है उन्हें भारत से ना निकाला जाय, भारत के मुसलमानो ने भी इसका स्वागत किया।

साल भर पहले दीपिका पादुकोण jnu  पहुंच गयी थी caa  और nrc  के विरोध में वो अलग बात है की इसके चलते उनकी फिल्म छपाक फ्लॉप हो गयी, स्वरा भास्कर को जानते ही होंगे आप एक फिल्म में अपने अंग विशेष में ऊँगली करने का सीन भी दे चुकी हैं ये ये भी मुसलमानो के समर्थन में CAA  और NRC  का विरोध करने पहुंची थी ।

ये बॉलीवुड की वैश्याएं मुसलमानो के समर्थन में खुल के उतरती है उनकी बातों को वैश्विक रूप से पूरी दुनिया में पहुँचाती है क्या आज तक किसी मुस्लमान या सेक्युलर लिबरल ने ये कहा की तुम तो बॉलीवुड की रंडी हो वैश्या हो तुम क्यों हमारा समर्थन कर रही हो ? हमें नहीं चाहिए तुम्हारा समर्थन क्या आज तक आपने किसी मुसलमान के मुँह से ये बाते सुनी की प्रियंका चोपड़ा तो हॉलीवुड की web सीरीज में नंगी होकर एक विदेशी कलाकार के साथ काम कर रही है ये हमारा समर्थन क्यों कर रही है ? नहीं सुना होगा ? क्या आपने किसी मुस्लमान को दीपिका या फिर किसी भी भांड सेक्युलर बॉलीवुड अभिनेत्री का विरोध करते देखा है ? नहीं ना ?

लेकिन हिन्दू समाज में समस्या है उसकी बंद और छोटि सोच अभी कल ही मैंने एक कमेंट में देखा की किसी पोस्ट पे कई महानुभावों ने कंगना राणावत पर अपने विचार रखे थे,उनमे से एक ने कंगना की कई पुरानी फिल्मों में फिल्माए गये उनके बिकनी सीन और कई टॉपलेस वीडियोस और फोटो दिखाकर पूछा क्या बिकनी पहनने वाली खुद ड्रग्स लेने वाली हमें राष्ट्रवाद  सिखाएगी, B  ग्रेड की अभिनेत्री पायल रोहतगी क्या हमें देश भक्ति सिखाएगी ?

बिलकुल सही बात है, उन लोगों की तैयारी पूरी है उन्होंने तो एक पूर्व मिस वर्ल्ड को रोहंगिया कैम्प में भेज कर सहानभूति इक्कठा कर ली, क्या आपके पास भी कोई ऐसा चेहरा है जो कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के राहत कैम्पों में जाकर उनकी भी बात दुनिया तक पहुचाये की कैसे अपने ही देश में तीन लाख से ज्यादा कश्मीरी हिन्दू एक निर्वासित और भखारियों से भी बत्तर जीवन जीने पर मजबूर है ?

क्या कोई एक चेहरा है आपके पास जो BHU  जैसे राष्ट्रवादी विश्व विद्यालय में जाकर दीपिका की तरह  caa  NRC  का समर्थन कर सके ?? नहीं ना, क्यों की अगर कोई बॉलीवुड की अभिनेत्री या अभिनेता  ऐसा समर्थन करेगा भी तो हम उसे  फ़िल्मी भांड कहेंगे, क्यों की उसने कई फिल्मों में अधनग्न दृध्य दिए हैं, बिकनी पहनी है इसलिए वो राष्ट्रवादी नहीं है।

मैं बॉलीवुड में किसी भी हीरो हीरोइन को तवज्जो नहीं देता, ना ही उन्हें राष्ट्रवादी मानता हु, मेरा यही मानना है की सभी अपना फायदा नुक्सान देखकर ही राष्ट्रवादी या सेक्युलर बनते है, अभी इसी प्रियंका या दीपका को आप दस करोड़ दीजिये, फिर देखिएगा ये लोग कैसे वन्दे मातरम और भारत माता की जय गाने लगते हैं, कोई अगर हमारे समर्थन में खड़ा हो रहा है तो उसमे मीन मेख मत निकालिये, कंगना और पायल रोहतगी जिस इंडस्ट्री  में काम करती है उसमे खुलापन आम बात है, पायल रोहतगी को लोग B  ग्रेड की दो कौड़ी की अभिनेत्री कहते हैं, जो जिस्म की नुमाईस करती है ,,ठीक है मान लिया, जिस्म दिखाकर ही पैसे कमाए हैं उसने कम से कम देश को गाली देकर अपनी सेना को गाली देकर तो अपनी जेब नहीं भरी।

ये दोनों अभिनेत्रियां नाचने गाने वाली लौंडियाँ है ठीक है मनाता हूँ ,,लेकिन कम से कम इन्हे ये तो पता है की जिस देश में उन्हें इज्जत और पैसा मिला शोहरत मिली उसकी ये लोग लाज रखते हैं उसे अपना मानते है, राष्ट्र और उसकी सेना को ये सम्मान देते है, यही बहुत है।

अब ये राष्ट्रवाद का युद्ध  उस अवस्था में पहुंच चूका है जहाँ हमें बस ये देखना है की कौन हमारे साथ है और कौन खिलाफ, जो साथ है वो हमारा अपना है और जो साथ नहीं है वो दुश्मन है।

खुद फैसला कीजिये कौन राष्ट्रवादी है।


मंगलवार, 11 अगस्त 2020

थोड़ा थक गया हुँ...

थोड़ा थक गया हूँ,
दूर निकलना छोड़ दिया है,
ऐसा नहीं की मैने चलना छोड़ दिया है ।


फासले अक्सर रिश्तों में दूरी बढ़ा देते है,
पर ऐसा नहीं है कि मैंने अपनों से मिलना छोड़ दिया है ।


हाँ ज़रा अकेला हूँ दुनिया की भीड़ मे,
पर ऐसा नहीं है कि मैंने अपनापन छोड़ दिया है


याद आज भी करता हूँ अपने सभी अपनों को,
परवाह भी है मन मे बस कितना करता हूँ ये बताना छोड़ दिया है ।

थोड़ा थक गया हूँ,
दूर निकलना छोड़ दिया है,
ऐसा नहीं है कि मैंने चलना छोड़ दिया है,
पर अब भीड़ मे रहना छोड़ दिया है ।


गुलज़ार...

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

ठाकरे परिवार...

इस बार का झगड़ा ठाकरे परिवार के लिए सामान्य झगड़ा नहीं है...
राजनीतिक गोटियाँ बिछ चुकी हैं..
राजनीतिक, कूटनीतिक चालें दोनों पक्षों से चलना शुरू हो चुकी हैं..

जो लोग बीजेपी को जानते हैं वे यह भी जानते होंगे कि वे बहुत दिनों बाद भी बहुत छोटे-छोटे घावों तक के बदले लेते हैं।

महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ न जाकर उद्धव ठाकरे ने बीजेपी और मोदी-शाह की जो बेइज्जती की थी मोदी-शाह उसके गहरे घाव लिए बैठे हैं।

वे झुक सकते थे, संघ के बीच-बचाव करने से सरकार बन भी सकती थी लेकिन इस बार मोदी-शाह ने शिवसेना से ख़ुद को दूर करना ही ज़रूरी समझा।

आने वाले दिनों में ठाकरे परिवार की कमर टूटने वाली है, यह तय है... लिखकर रख लीजिए...
उद्धव भी अच्छी तरह से जानते हैं कि उन्होंने आग में हाथ दे दिया है इसलिए अब वे विकल्प की तरफ़ तेज़ी से ख़ुद को फ्रेम्ड कर रहे हैं।

जिन्हें लग रहा है कि हिंदुत्ववादी शिवसेना, अचानक सेक्युलर क्यों होना चाहती है तो इसकी वज़ह यही है कि वे लोग मोदी-शाह के इरादे भाँप गए हैं। 

इस देश के पिछले 30-40 सालों की राजनीति का ट्रैक रिकॉर्ड उठाकर देख लें, मोदी-शाह से भिड़ने वालों के करियर ख़त्म हो गए हैं।
यह दोनों अज़ीब तरह से राजनीति करते हैं, एकदम ग़ैर पारंपरिक। 
निर्मम, क्रूर, जो कि आज के परिप्रेक्ष्य में जरूरी भी है ।

आप विपक्ष की बात कर रहे हैं, गुजरात में केशुभाई पटेल की तूती बोलती थी, बीजेपी में आडवाणी सर्वेसर्वा थे, सञ्जय जोशी बड़े नाम थे, सुषमा जी दिल्ली लॉबी की मज़बूत नेत्री थीं, गड़करी संघ में मज़बूत थे, ये सब अटल जी के बाद महत्त्वपूर्ण नेता माने जाते थे...

सोचिए, इतने बड़े बड़े धुरंधरों को साइड करना, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.. कोई भी आम राजनेता ऐसा नहीं कर पायेगा... यह सब ईश्वरीय कारनामें है... ईश्वरीय सत्ता चाहती है कि 21 वीं सदी भारत की हो, भारत विश्व गुरु बन सनातन संस्कृति का लोहा मनवाए.. इसलिए यह सब दिव्य कारनामे होते चले जा रहे हैं... यही कारण है कि प्रभु श्री राम के शुभाशीर्वाद से विश्व के सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक व्यक्तित्व मोदी-शाह की इस दिव्य जोड़ी ने सबको ठिकाने लगा दिया.. 

अटल बिहारी मोदी को पनिशमेंट देने गए थे, लेकिन हुआ उल्टा, वे ख़ुद अलग-थलग पड़ गए। चुनाव तक हार गए थे। 6 साल के पीएम 120 सांसदों पर सिमट गए.. अटल जी की हार.. यह बेहद आश्चर्यचकित करने वाला था.. पूरे भारत में भाजपा का साइनिंग इंडिया चला.. लेकिन परिणाम हार के रूप में मिला.. शायद ईश्वरीय सत्ता भी अटल जी की नरम कार्यशैली को पसंद नहीं कर रही थी.. क्योंकि राष्ट्रहित के लिए कुछ कार्य सिद्धांत व नीतियों से अलग हटकर किये जाते हैं.. वह अटल जी जैसा सरल व सीधा व्यक्तित्व नहीं कर सकता था.. उसके लिए कुटिल चालें आवश्यक थीं.. मोदी व शाह की यह जोड़ी इन चालों में कुशल है.. सनातन संस्कृति व हिंदुत्व इन दोनों की नस नस में कूट कूट कर भरा है.. इसलिए ईश्वरीय सत्ता ने इन दोनों महारथियों पर अपनी अनुकम्पा व दिव्य आशीष दे, भारत वर्ष की राजनीति में इन्हें विधर्मियों व सेक्युलर गैंग के सामने उतार दिया..

न जाने कैसी राजनीतिक समझ है इनकी, न जाने कैसी वैचारिक तैयारी है इनकी, इनका रोडमैप और घेरने के सारे शस्त्र सदैव इनके पास रहते हैं।

सॉनियाँ, राहुल, प्रियंका, अखिलेश, लालू, ममता, केजरीवाल, मुलायम, मायावती, देवेगौड़ा, शरद पवार जैसे राजनीति के कुशल खिलाड़ी भी इन दोनों की चालों से न बच सके... गत लोकसभा चुनाव में इनके चक्रव्यूह को इस जोड़ी ने तार तार कर दिया, पूरा चक्रव्यूह बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया.. आज के समय में उपर्युक्त नेताओं में कई अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं... कई राजनीतिक दल समाप्ति की और हैं... राजनीतिक वजूद खत्म होता चला जा रहा है... इन जातिवादियों व परिवारवादियों पर अस्तित्व का संकट मंडराने लगा है...
सबसे आश्चर्यजनक यह था कि सपा बसपा के मजबूत गठबन्धन के किले को यूपी से बुरी तरह ध्वस्त कर रौंद दिया था... 

आप स्वयं देखिए और समझिए कि कश्मीर जैसा संवेदनशील मुद्दा, तीन तलाक़, एन.आर.सी., सी.ए.ए., राममंदिर- आप ठीक से सोचिए सारे के सारे असम्भव मुद्दे थे,
इन लोगों ने कानून के दायरे में रहकर सारे हल कर लिए... राम मन्दिर की पूरी जमीन हिंदुओं की ही थी और हिन्दुओं को दिलवा भी दी.. सुई की नोंक के बराबर भी भूमि मुस्लिम न ले पाए.. धारा 370 व 35 A को जड़ से ही उखाड़ फेंका, जिसको सभी असंभव समझते थे..

तमाम राजनीतिक घृणाओं के बावज़ूद आपको इन दोनों से सीखना तो चाहिए कि देखते ही देखते आख़िर कैसे पूरे सिस्टम को अपनी तरफ़ झुका लिया है.. इसलिए मैं कहता हूं मोदी जी साम दाम दंड भेद सब नीतियों में निपुण है, और वर्तमान में इसके बगैर हिंदू राष्ट्र निर्माण कि कल्पना भी नहीं की जा सकती ।

कोई माने या न माने.. यह मोदी व शाह की जोड़ी दिव्य है व इनपर ईश्वरीय अनुकम्पा है.. प्रभु श्री राम ने इनको भारत वर्ष में विलुप्त होती जा रही सनातन संस्कृति को पुनर्स्थापन हेतु अवतरित किया है..

हो सकता है कि मेरी विचारधारा और आपकी विचारधारा अलग अलग हो, लेकिन राष्ट्र हित में एक बार इस बारे में सोचिएगा जरूर ।

दोनों में कुछ बात तो है। 
क्या आप नहीं मानते ??

जय जय श्री राम...🚩🚩🙏
जय हिंदू राष्ट्र ...🚩🚩🙏

शनिवार, 4 जुलाई 2020

शनिवार, 13 जून 2020

गोडसे और गाँधी

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सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने पर प्रकाशित किया गया 
60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम गोडसे 
का अंतिम भाषण -

                    मैंने_गांधी_को_क्यों_मारा !

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुए बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया, नाथूराम गोड़से समेत 17 देशभक्तों पर गांधी की हत्या का मुकदमा चलाया गया इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान #न्यायमूर्ति_खोसला से नाथूराम जी ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था पर यह कोर्ट परिसर तक ही सिमित रह गयी क्योकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया l

                     मैंने गांधी को क्यों मारा

नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 
150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुति की
नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के कुछ मुख्य अंश....
नाथूराम जी का विचार था कि गांधी की अहिंसा हिन्दुओं 
को कायर बना देगी कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे नाथूराम गोड़से को भय था गांधी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे...


1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड 
के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ 
आक्रोश उफ़ान पे था...
भारतीय जनता इस नरसंहार के #खलनायक_जनरल_डायर 
पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी के पास गयी 
लेकिन गांधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन 
देने से साफ़ मना कर दिया 
महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया  महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो #केरल_के_मोपला_मुसलमानों द्वारा वहाँ के 
1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं 
को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध 
तक नहीं कर सके 
कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में #नेताजी_सुभाष_चन्द्रबोस 
को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी ने #अपने_प्रिय_सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे गांधी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया...
23 मार्च 1931 को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को 
टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया 
गांधी #कश्मीर_के_हिन्दू_राजा_हरि_सिंह से कहा कि 
#कश्मीर_मुस्लिम_बहुल_क्षेत्र_है_अत:वहां का शासक 
कोई मुसलमान होना चाहिए अतएव राजा हरिसिंह को 
शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने जबकि  हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था गांधी जी की नीतियाँ 
धर्म के साथ बदलती रहती थी उनकी मृत्यु के पश्चात 
सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को 
भारत में मिलाने का कार्य किया गांधी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता 
पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया 
महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा 
के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर 
तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके 
लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय 
प्राप्त हुयी किन्तु गान्धी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया गांधी अपनी मांग 
को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात 
न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम 
निकलवाने में माहिर थे इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे
14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था लेकिन गांधी ने वहाँ पहुँच कर 
प्रस्ताव का समर्थन करवाया यह भी तब जबकि गांधी  
ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश 
पर होगा न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों 
निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी 
ने कुछ नहीं किया....
धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी+उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे  बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का 
चलन शुरू हुआ...
कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने 
पर महात्मा गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत 
का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया 
गांधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी महाराणा प्रताप व 
गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा वही दूसरी 
ओर गांधी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम 
कहकर पुकारते था
कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के 
लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने 
सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का 
राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी जी 
की जिद के कारण उसे बदल कर तिरंगा कर दिया गया 
जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ 
मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य 
भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव 
को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला 
भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये 
दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की 
राशि न देने का निर्णय लिया | जिसका महात्मा गांधी ने 
विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान 
को दे दी महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान 
के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में 
खड़े रहे फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या 
नाजायज गांधी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की 
उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम 
गोड़से जी ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित 
ठहराने का प्रयास किया...
नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि माहात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की  
मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त 
को देश के टुकड़े करने के एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ गांधी की हत्या के 
सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था...!!
#नाथूराम_गोड़सेजी द्वारा अदालत में 
दिए बयान के मुख्य अंश...
मैने गांधी को नहीं मारा
मैने गांधी का वध किया है..
वो मेरे दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के 
लिए घातक साबित हो रहे थे...
जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी 
में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता है...
मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत निति 
के प्रति गांधी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे 
मजबूर किया...
पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुगतान करने की 
गैरवाजिब मांग को लेकर गांधी अनशन पर बैठे..
बटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओ की आपबीती 
और दुर्दशा ने मुझे हिला के रख दिया था...
अखंड हिन्दू राष्ट्र गांधी के कारण मुस्लिम लीग 
के आगे घुटने टेक रहा था...
बेटो के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ो में बटना 
विभाजित होना असहनीय था...
अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे..
मुस्लिम लीग की सारी गलत मांगो को 
गांधी मानते जा रहे थे..
मैने ये निर्णय किया कि भारत माँ को अब और 
विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना है 
तो मुझे गांधी को मारना ही होगा
और मैने इसलिए गांधी को मारा...!!
मुझे पता है इसके लिए मुझे फाँसी ही होगी 
और मैं इसके लिए भी तैयार हूं...
और हां यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध हे 
तो मै यह अपराध बार बार करूँगा हर बार करूँगा ...
और जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने 
लगे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन नहीं करना...!!
मुझे  फाँसी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया ध्वज 
और दूसरे हाथ में #अखंड_भारत का नक्शा हो...
मै फाँसी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय 
जयकार बोलना चाहूँगा...!!
हे भारत माँ मुझे दुःख है मै तेरी इतनी 
ही सेवा कर पाया....!!
#नाथूराम_गोडसे

🙏 🙏🙏

शुक्रवार, 5 जून 2020

सरणार्थी भेड़िया...


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एक भेड़िया था, जन्मजात धूर्त और मक्कार, एक जंगल मे उसने हिरण के बच्चे का शिकार किया और उसे खाने लगा, भेड़िये का परिवार भी उस हिरण के बच्चे का मांस खाने लगा, तभी मांस खाते वक्त भेड़िये और उसके बच्चे के गले में एक हड्डी अटक गई। बच्चा और भेड़िया दोनो तड़पने लगे, उन दोनों के गले लहूलुहान हो गए और उसमें गहरे घाव हो गए। भेड़िया भागा भागा तालाब किनारे रहने वाले सारस के पास पहुँचा और दया की भीख मांगने लगा- 
"सारस भाई मदद करो मेरे और बच्चे दोनों के गले में हड्डी फंस गयीं हैं...केवल तुम ही इसे निकाल सकते हो।"

 सारस को उसपर दया आ गयी, उसने अपनी लम्बी चोंच से दोनों के गले में फंसी हड्डी निकाली और जंगल के पत्तो से बनी औषधी उसके गले में लगाई, सारस रोजाना उनके खाने पीने का भी इंतजाम करता, एक हफ्ते कि चिकित्सा के बाद वे दोनों पूरी तरह ठीक हो गए, भेड़िये ओर उसके बेटे दोनों को उस सारस के रहने की जगह इतनी पसन्द आयी कि वे वही रहने लगे और सारस के दाना पानी को ही खाने लगें और उसपर अपना अधिकार जताने लगे।
  

कुछ दिनों बाद सारस ओर उसका परिवार उन दोनों की हरकतों से परेशान हो गया, उन्होंने भेड़िये से निवेदन किया कि अब वे स्वस्थ हो गए हैं तो अब इस जगह को छोड़कर जाने की कृपा करें, सारस के मुंह से यह सुनते ही भेड़िया भड़क उठा, उसने उल्टा सारस को धमकाना शुरू कर दिया, किन्तु सारस और उसका परिवार विनम्रतापूर्वक अपने घर को मुक्त करने का निवेदन करता रहा, किन्तु अंततः भेड़िये और उसके बच्चे ने क्रोधित होकर अपने सामुदायिक गुणों के अनुसार सारस पर हमला कर दिया और उसके पूरे परिवार को मारकर खा गये और उनकेे घर पर ही कब्जा करके रहने लगे......।
अब अमेरिका चलते है जहां दंगे भड़के हुए है,
 1982 में सोमालिया की राजधानी मोगादिशु में एक शांतिप्रिय परिवार में एक लड़की का जन्म हुआ उसका नाम रखा गया - "इल्हान ओमर"

जब सोमालिया में गृह युद्ध छिड़ा और लाखों लोग उस युद्ध में मारे जाने लगे तब मानवाधिकार संगठनों की सहायता से वह लड़की शरणार्थी बनकर अमेरिका आ गई,  अमेरिका ने उसके ऊपर दया करके उसे अपने यहां शरण दी और उसके जीवन यापन के लिए हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जो आम अमेरिकी नागरिको को मिलती है।

अमेरिकी नागरिकता पाने के लिए उसने एक अमेरिकी नागरिक से विवाह भी किया जिससे उसे अमेरिका की नागरिकता मिल गई और अमेरिकी संसद का चुनाव जीतकर वह अमेरिका की सांसद भी बन गई,

अभी अमेरिका में एक अश्वेत की हत्या अमेरिकी पुलिसकर्मियों के हाथों हो जाने से जो दंगे हो रहे हैं उसमें इस शांतिप्रिय सांसद इल्हान ओमर की बेटी को कई जगह माइक लेकर दंगाइयों को भड़काते देखा जा रहा है, इतना ही नहीं वह अपने ट्विटर पर भी दंगाइयों को भड़का रही है और अमेरिका के वामपंथी हिंसक संगठन एंटीफा (ANTIFA) को सपोर्ट कर रही है, यानी जिस देश ने इनके ऊपर दया करके शरण दी, नागरिकता दी, सांसद बनाया उसी देश को अब ये जला रहे है।

भारत मे भी एक उपराष्ट्रपति थे जो जब तक पद पर रहे भारत की हर तरह की सुविधा को भोगा, पर जब पद से हटे तो उन्हें भारत खतरनाक लगने लगा उन्हें भारत मे रहने से डर लगने लगा।

तो सारांश यह है कि भेड़ियों को चाहे जितनी शरण दो, उच्च पद पर बैठा दो, उन्हें हर तरह की सुविधाएं घर बैठे मुहैया कराई जाए, भेड़िया हमेशा भेड़िया ही रहता है, भले ही वह शरणार्थी हो, वह अपने को 'शरण' देने वाले की ही 'अर्थी' निकाल देता है, क्योकि भेड़िये कभी अपना स्वभाव नहीं बदलते......

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