शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

उस लम्हों की याद आती है........

जब कभी बीते उस लम्हों की याद आती है........
अनायास ही आँखों में पानी भर जाते है.........
आज भी जब कभी मै बेचैन होता हूँ.........
उस बेचैनी को पार निकालने तुम आ जाती हो........
मुझे तो अब भी याद है ओ हसीं यादें........
जब हम और तुम साथ में पढ़ा करते थे.........
पढने में तुम हमेशा ही मेरी मदत करती थी........
हमारे ना आने पार तुम कितना डांट सुनाती थी.....
तब मुझे ये एहसास ना था ये अपना पन क्यों है.....
पर तुमने भी कभी एहसास न दिलाई एसा क्यूँ .......
तुम्हारी एक आदत भी बहुत अजीब थी.........
कुछ भी दिल की बात कह के मजाक में उड़ा देती थी.....
उस मजाक को जब मै समझ पाया तो बहुत देर हो चुकी थी....
मै किसी और का हो चूका था और तुम मेरे इंतजार में थी.....
फिर भी तुमने ये न बताया की तुम्हारी हालत क्या है.....
फिर मेरे एक दोस्त में मुझ पर बिज़ली गिराई......
वो आज भी तेरे इंतजार में आखिरी सांसे गिन रही है......
ये बातें सुन कर मै हैरान हो गया,
क्या वो अपनापन प्यार हो गया.....
तुमसे मिलने जब मै अस्पताल आया....
सच कहूँ कितना हिम्मत कर के तुम्हारे सामने आया.....
तुम्हारा मुझसे गले लग कर फुट फुट कर रोना.....
तुम्हारे आंसुओं से मेरे कन्धों को भिगजाने पर......
मैं अपने आप को कितना बेबस महसूस कर रहा था.....
इतना दर्द में भी मुझसे हंस कर बात कर रही थी......
क्यूँ अपने दर्द को तुम मुझसे छुपा रही थी.....
क्यों तुमने मुझे नहीं बताया क्यूँ मुझे नहीं बुलाया......
अब तुम तो नहीं हो सिर्फ तुम्हारी यादें है.......
अब तुम तो नहीं हो सिर्फ तुम्हारी यादें है.......
श्याम विश्वकर्मा.........

मेरा परिचय...........

“परिचय”
आधे गिलास से भरा मेरा “परिचय”
कभी बदलता कभी छलकता मेरा “परिचय”
किसी की उम्मीद, तो किसी के जीने का सहारा
नाकामयाब हर डगर पे मचलता मेरा “परिचय”
कभी किसी का साथ खो कर,
कभी किसी के साथ हो कर
आज अकेला हैं खडा, फिर बदलता मेरा “परिचय”
जाये कहाँ बोल जिंदगीं तेरे गोल सफर पे
सूखे पत्तें सा पूछ रहा डगमगाता मेरा “परिचय”
खुद को ढूढतें कहीं खुद में ना खो जाये
आज जो ना मिला मुझसे मेरा “परिचय”
आधे गिलास से भरा छलकता मेरा “परिचय”

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

बिछड़ गए......

एक एक कर के सब बिछड़ गए...........
अब तो सायद तू भी बिछड़ गया............
बची है तो सिर्फ साशें मेरी..........
सायद ये भी जल्दी ही बिछड़ गए......

कम्बखत ख़ामोशी.......

मन इतना बेचैन क्यूँ है
कलम भी अब खामोश है
खुरच दे सारा बदन
महसूस कर उस दर्द को

कम्बखत ख़ामोशी में उस दर्द का
एहसास बड़ा प्यारा होता है.........

बुधवार, 12 दिसंबर 2012

मेरी परी का जन्मदिन........

शुभ प्रभात मित्रों.......
आज हमारी नन्ही परी ( आकांक्षा ) का जन्म दिन है....... आज बहुत खुश है हमारी बिटिया..... 12 /12 /2005  को हमारे घर में आगमन हुवा था हमारी बिटिया का...... और आज का दिनांक है 12/12/12........आप सभी के आशीष की अपेक्षा है.......

यूँ  तो हर  दिन  ख़ास  है ,
जो  मेरा  परिवार  मेरे  साथ  है ,
पर  आज  मुझे  कुछ  कहना  मेरी  बेटी  से ,
मुझे  गर्व  है  उसपर  और  उसके  हर  दर्द  का  अहसास  है....…


बुधवार, 14 नवंबर 2012

आम आदमी??????????


"आम आदमी" आज हर कोई ये समझता है की जो महंगाई की मार झेल रहा है , वो आम आदमी है,परन्तु सच्चाई इससे कहीं हट कर है आज भी कई ऐसे लोग है जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं अब उनकी गिनती किसमे होगी आम आदमी की केटेगरी में या फिर गरीबों में ये भी अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है , भगवान ही जाने की हमारे भारत देश की ये समस्या कभी सुलझ भी पायेगी या नहीं जबसे हमें आज़ादी मिली है तब से लेकर आज तक समस्या वही की वही पहले अंग्रेज़ हम पर राज़ करते थे और अब इन गरीबों पर अमीरों का शासन है , आज भी इन लोगो की स्थिति वैसी की वैसी है सच तो ये है की ये लोग पहले भी गुलाम थे और आज भी गुलाम हैं, इन्हें तो आज़ादी की ख़ुशी ही नहीं , आज के इस दौर में महंगाई नाम की डायन ने सबको अपना शिकार बना रखा है, लेकिन ये जो दिन रात कचरे के ढेर पर अपनी रोज़ी रोटी तलाशते हैं इन्हें क्या पता की कब महंगाई बढ़ रही है या कब घट रही है , लेकिन हाँ ये बात तो बिलकुल सच है महंगाई बढ़ तो जरुर रही है , कितनी अजीब बात है आज भी कहीं न कहीं हमारे देश की स्थिति वैसी की वैसी है ,हमारे देश में बहरत की पहचान एक गरीब देश के रूप में दी जाती है एक तरफ भारत एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है वहीँ दूसरी तरफ भारत की ये तस्वीर भी किसी से छुपी नहीं है, आज भी कितने ही लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हैं फिर हम ये कैसे कह सकते हैं की भारत एक संपूर्ण शक्ति बन चुका है क्यूंकि आज भी न जाने कितनी बच्चों का भविष्य बाल मजदूरी करने में कहीं खो जाता है और आम आदमी सबसे आम बनाकर ही रह गया है वो आम आदमी जिसे आम होने का मतलब भी नहीं पता.....................

मैं आम आदमी हूं..........


मेरे लिए हर खास आदमी चिंतित है........
पर मेरी चिंता उसे और खास बना देती है.........
मैं वहीं का वहीं रह जाता हूं.........
क्योंकि मैं आम आदमी हूं...........

सारी योजनाओं का केंद्र मैं हूं...........
पर योजनाओं के आम का पेड़.........
जब फल देने लगता है........
तब उसका स्वाद खास चखता है.......
मेरा मुंह खुला का खुला ही रह जाता है.......
क्योंकि मैं आम आदमी हूं..........

आम और खास का अंतर मिटाने की कवायदें जारी हैं.........
पर इन पर नीयत भारी है...........
ये दिखाती हैं, वो लकदक गलियां, जो भ्रष्टाचारी हैं.........
पर, मेरी आत्मा मुझे इनसे गुजरने की इजाजत नहीं देती.....
इसलिए कि मैं आम आदमी हूं.............
(सुरेश माहेश्वरी शिवम्‌)

शनिवार, 3 नवंबर 2012

चूल्हे की आग................



क्या वो बचपन के दिन थे 
जब हम अपने घर के बहार खेला करते थे......... 
और  शाम होते ही अडोस पड़ोस
की औरतें एक दुसरे के घर से 
आग मांग कर अपने घर की 
चूल्हा जलाया करती थी............

मिटटी का चूल्हा में गोबर की 
उपली और लकड़ी जला करती थी......
क्या बताऊँ वही राख,
खाद का काम किया करती थी.........

वो स्वाद वो देशी अंदाज 
अब हमेशा ही याद आता है.......
इस भाग दौड़ की शहरी जिंदगी में
लिट्टी चोखा भी हमको तरसता है........

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

दोस्त और दोस्ती............

दोस्त और दोस्ती एक दिन के लिये तो नही होती ना!
बल्कि हमेशा के लिये होती है तो आज कुछ
पन्क्तियां दोस्त और दोस्ती के लिये…

 ” उलझन मे हूं, या दुख मे मै,
दोस्त है मेरा, फ़िक्र करेगा!
 दूर है फ़िर भी भूलेगा ना,
कभी तो मेरा जिक्र करेगा!
दुनिया में कहीं भी होता हो मगर,
दोस्त का घर दूर कहाँ होता है!
जब भी चाहूँ आवाज लगा लेता हूँ,
वो मेरे दिल मे छुपा होता है!
जाने कैसे वो दर्द मेरा जान लेता है,
दुखों पे मेरे वो भी कहीं रोता है!
“यूं तो कहने को परिवार, रिश्तेदार साथ हैं,
जिन्दगी बिताने को, फ़िर भी एक दोस्त चाहिये,
दिल की कहने- सुनने, बतियाने को!!
 हर कोई ऐसा एक मित्र पाए, जो बातें सुनते थके नही,
और मौन को भी जो पढ जाए!!
 पुराने दोस्त और दोस्ती हमारे पुराने गांव की तरह होते हैं..
बरसों बाद जब हम फ़िर उनसे मिलते हैं तो कुछ बदल जाते हैं,
लेकिन बहुत कुछ पहले की तरह ही होते हैं..
 और अब कुछ पन्क्तियां और, जो किसी मित्र से ही कही जा सकती है.:)
किसी बात पर मैने अपने मित्र से कहा था…. ”
आत्म ज्ञान से इतना भी तृप्त मत हो जाइये कि और
कुछ जानने कि ख्वाहिश ही न रहे,
गर्व से इतना भी मत बिगड़ जाईये कि सुधार की गुंजाइश ही न रहे!!
 ज्ञानी होने ( दिखने) के चक्कर मे जमाना tense बहुत है,
हम तो कहेंगे, सबसे उपर रहने के लिये common sense बहुत है!!
 किसी की बात समझ न सको तो इतना न बौखलाइये!
बेहतर है आप अपनी समझ को समझाइये!! “

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

दिशाशुल विचार.........


दिशाशूल क्या होता है ? क्यों बड़े बुजुर्ग तिथि देख कर आने जाने की रोक टोक करते हैं ? आज की युवा पीढ़ी भले हि उन्हें आउटडेटेड कहे ..लेकिन बड़े सदा बड़े ही रहते हैं ..इसलिए आदर करे उनकी बातों का ;
दिशाशूल समझने से पहले हमें दस दिशाओं के विषय में ज्ञान होना आवश्यक है|
हम सबने पढ़ा है कि दिशाएं ४ होती हैं |

१) पूर्व
२) पश्चिम
३) उत्तर
४) दक्षिण

परन्तु जब हम उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं तो ज्ञात होता है कि वास्तव में
दिशाएँ दस होती हैं |
१) पूर्व
२) पश्चिम
३) उत्तर
४) दक्षिण
५) उत्तर - पूर्व
६) उत्तर - पश्चिम
७) दक्षिण – पूर्व
८) दक्षिण – पश्चिम
९) आकाश
१०) पाताल

हमारे सनातन धर्म के ग्रंथो में सदैव १० दिशाओं का ही वर्णन किया गया है,
जैसे हनुमान जी ने युद्ध इतनी आवाज की कि उनकी आवाज दसों दिशाओं में सुनाई
दी | हम यह भी जानते हैं कि प्रत्येक दिशा के देवता होते हैं |

दसों दिशाओं को समझने के पश्चात अब हम बात करते हैं वैदिक ज्योतिष की |
ज्योतिष शब्द “ज्योति” से बना है जिसका भावार्थ होता है “प्रकाश” |
वैदिक ज्योतिष में अत्यंत विस्तृत रूप में मनुष्य के जीवन की हर
परिस्तिथियों से सम्बन्धित विश्लेषण किया गया है कि मनुष्य यदि इसको तनिक
भी समझले तो वह अपने जीवन में उत्पन्न होने वाली बहुत सी समस्याओं से बच
सकता है और अपना जीवन सुखी बना सकता है |

दिशाशूल क्या होता है ? दिशाशूल वह दिशा है जिस तरफ यात्रा नहीं करना
चाहिए | हर दिन किसी एक दिशा की ओर दिशाशूल होता है |

१) सोमवार और शुक्रवार को पूर्व
२) रविवार और शुक्रवार को पश्चिम
३) मंगलवार और बुधवार को उत्तर
४) गुरूवार को दक्षिण
५) सोमवार और गुरूवार को दक्षिण-पूर्व
६) रविवार और शुक्रवार को दक्षिण-पश्चिम
७) मंगलवार को उत्तर-पश्चिम
८) बुधवार और शनिवार को उत्तर-पूर्व

परन्तु यदि एक ही दिन यात्रा करके उसी दिन वापिस आ जाना हो तो ऐसी दशा
में दिशाशूल का विचार नहीं किया जाता है | परन्तु यदि कोई आवश्यक कार्य
हो ओर उसी दिशा की तरफ यात्रा करनी पड़े, जिस दिन वहाँ दिशाशूल हो तो यह
उपाय करके यात्रा कर लेनी चाहिए –

रविवार – दलिया और घी खाकर
सोमवार – दर्पण देख कर
मंगलवार – गुड़ खा कर
बुधवार – तिल, धनिया खा कर
गुरूवार – दही खा कर
शुक्रवार – जौ खा कर
शनिवार – अदरक अथवा उड़द की दाल खा कर

साधारणतया दिशाशूल का इतना विचार नहीं किया जाता परन्तु यदि व्यक्ति के
जीवन का अति महत्वपूर्ण कार्य है तो दिशाशूल का ज्ञान होने से व्यक्ति
मार्ग में आने वाली बाधाओं से बच सकता है | आशा करते हैं कि आपके जीवन
में भी यह गायन उपयोगी सिद्ध होगा तथा आप इसका लाभ उठाकर अपने दैनिक जीवन
में सफलता प्राप्त करेंगे |

हिंदी की पाती......


मेरे नाम पर "हिंदी दिवस" जोर सोर से मनाया जाता है। मेरे प्रचार व प्रशार के लिए बड़े बड़े भाषण दिए जा रहे हैं। सरकारी कार्यालयों में कही हिंदी पखवाडा और कही हिंदी महिना मनाया जा रहा है। मै इससे काफी खुश हूँ........ लेकिन दुःख इस बात का है की मेरा हर दिन हिंदी दिवस की तरह क्यूँ नहीं होता ? आप को मेरी याद केवल एक ही दिन क्यों आती है? आप रोज मुझे याद क्यूँ नहीं करते? स्वतंत्रता प्राप्ति के ६४ वर्षो के पश्चात भी मै आप के दिन चर्या की हिस्सा क्यूँ नहीं बन पाई ?
क्या आप को याद है की आजादी के बाद आप ने ही मुझे देश की राष्ट्र भाषा बनने का गौरव प्रदान किया। पर आज मुझे अपने आस्तित्व को बाचने की चिंता सता रही है। लोगो ने अपने स्वार्थ शिद्धि के लिए मेरा तो उपयोग किया, लेकिन जब मुझे अपनाने की बात आई तब मुंह फेर लिया गया।

हिंदी भाषी फ़िल्में विचारों के अदन प्रदान का एक सशक्त माध्यम रही है, लेकिन मेरे ही माध्यम से लोकप्रियता हासिल करने वाले अभिनेता व अभिनेत्रियों को टीवी पर अपना साक्षात्कार अंग्रेजी में देते है तब मुझे दुःख होता है।

देश के राज नेताओं ने भी मेरा बहुत उपयोग किया, लेकिन मेरे आश्तित्व की रक्षा के लिए कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाये। ऐसा नहीं है की लोगो ने मेरा महत्वा को न समझा हो। विश्व के सर्वोच्च मंच पर ( अंतर्राष्ट्रीय संघ की बैठक) श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपना भाषण हिंदी में दे कर मुझे गौरवान्वित किया। क्या ये स्वर्णिम क्षण आप ने भुला दिया। इस लिए मै सभी को याद दिलाना चाहती हूँ की इतनी उपेक्षाओं के बावजूद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली और समझी जाने वाली भाषा मै ही हूँ। सारे देश को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा मै ही हूँ।

सारे अवरोधों के बावजूद विश्व में मेरा तीसरा स्थान बना हुवा है। अगर हमारी भारतीय संस्कृत को संमृद्ध बनाना है तो मुझे अपनाना ही होगा। तभी सही मायने में मैं देश की राष्ट्रभाषा बन पाऊँगी।

इन्ही आशाओं और अपेक्षाओं के साथ..........

आपकी अपनी "हिंदी"

सोमवार, 10 सितंबर 2012

कैक्टस घर में ना लगायें..............


**वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में केक्टस का पेड़ न लगायें
**वास्तु शास्त्र के अनुसार घर ,दुकान ,फेक्टरी या व्यवसायिक परिसरों में केक्टस का पेड़ लगाने से मना किया जाता है
**केक्टस में कांटे होते हैं और कांटे वाले कोई भी पौधे घर के आसपास में नही होना चाहिए
**जिस घर में कांटे होंगे वहाँ पर रहने वाले लोग एक दुसरे को चुभने वाली बात कहते रहेंगे
**केक्टस मूलतः रेगिस्थान में होता है इसका अर्थ है केक्टस ऐसे स्थान पर होता है जहाँ पर कुछ भी नही होता
**इसलिए केक्टस के पौधे को घर में लगाने से घर उजाड़ हो जायेगा ,घर को रेगिस्तान में बदलते देर नही लगेगी
**केक्टस के पौधे से दूध जैसा सफेद द्रव्य निकलता है और वास्तु शास्त्र में दूध वाले पौधे को लगाने से दोष होता है
**शायद इसी वजह से केक्टस को घर में लगाने से मना किया जाता है

जब तुम पौधा केक्टस का लगाओगे
तो जूही के फूलों की खुशबू
कहाँ से पाओगे..................
By Deonarayan Sharma Vastu Shastri

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

नारियल के प्रयोग.............


हिंदुत्व शंखनाद

जानिए की नारियल के प्रयोग द्वारा केसे करें अपनी सभी परेशानियों का निदान—-

जेसा की आप सभी जानते हें की नारियल एक ऐसी वस्तु है जो कि किसी भी सात्त्विक अनुष्ठान, सात्त्विक पूजा, धार्मिक कृत्यों तथा हरेक मांगलिक कार्यों के लिये सबसे अधिक महत्वपूर्ण सामग्री है. इसकी कुछ विभिन्न विधियों द्वारा हम अपने पारिवारिक, दाम्पत्य तथा आर्थिक परेशानियों से निजात पा सकते हैं. ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु विशेषज्ञ पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार

—–घर में किसी भी प्रकार की आर्थिक समस्या हो तो—-
एक नारियल पर चमेली का तेल मिले सिन्दूर से स्वास्तिक का चिन्ह बनायें. कुछ भोग (लड्डू अथवा गुड़ चना) के साथ हनुमान जी के मन्दिर में जाकर उनके चरणों में अर्पित करके ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करें. तत्काल लाभ प्राप्त होगा.

—यदि कुण्ड़ली में शनि, राहू, केतु की अशुभ दृष्टि, इसकी अशुभ दशा , शनि की ढ़ैया या साढ़े साती चल रही तो-
एक सूखे मेवे वाला नारियल लेकर उस पर मुँह के आकार का एक कट करें. उसमें पाँच रुपये का मेवा और पाँच रुपये की चीनी का बुरादा भर कर ढ़क्कन को बन्द कर दें. पास ही किसी किसी पीपल के पेड़ के नीचे एक हाथ या सवा हाथ गढ्ढ़ा खोदकर उसमें नारियल को स्थापित कर दें. उसे मिट्टी से अच्छे से दबाकर घर चले जायें. ध्यान रखें कि पीछे मुड़कर नही देखना. सभी प्रकार के मानसिक तनाव से छुटकारा मिल जायेगा.

—-यदि आपके व्यापार में लगातार हानि हो रही हो, घाटा रुकने का नाम नही ले रहा हो तो -
गुरुवार के दिन एक नारियल सवा मीटर पीले वस्त्र में लपेटे. एक जोड़ा जनेऊ, सवा पाव मिष्ठान के साथ आस-पास के किसी भी विष्णु मन्दिर में अपने संकल्प के साथ चढ़ा दें. तत्काल ही लाभ प्राप्त होगा. व्यापार चल निकलेगा.

यदि धन का संचय न हो पा रहा हो, परिवार आर्थिक दशा को लेकर चिन्तित हो तो-
शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के मन्दिर में एक जटावाला नारियल, गुलाब, कमल पुष्प माला, सवा मीटर गुलाबी, सफ़ेद कपड़ा, सवा पाव चमेली, दही, सफ़ेद मिष्ठान एक जोड़ा जनेऊ के साथ माता को अर्पित करें. माँ की कपूर व देसी घी से आरती उतारें तथा श्रीकनकधारास्तोत्र का जाप करें. धन सम्बन्धी समस्या तत्काल समाप्त हो जायेगी.

—–शनि, राहू या केतु जनित कोई समस्या हो, कोई ऊपरी बाधा हो, बनता काम बिगड़ रहा हो, कोई अनजाना भय आपको भयभीत कर रहा हो अथवा ऐसा लग हो कि किसी ने आपके परिवार पर कुछ कर दिया है तो इसके निवारण के लिये-
शनिवार के दिन एक जलदार जटावाला नारियल लेकर उसे काले कपड़े में लपेटें. 100 ग्राम काले तिल, 100 ग्राम उड़द की दाल तथा एक कील के साथ उसे बहते जल में प्रवाहित करें. ऐसा करना बहुत ही लाभकारी होता है

.—–किसी भी प्रकार की बाधा, नजर दोष, किसी भी प्रकार का भयंकर ज्वर, गम्भीर से गम्भीर रोगों की समस्या विशेषकर रक्त सम्बन्धी हो तो-
शनिवार के दिन एक नारियल, लाल कपड़े में लपेटकर उसे अपने ऊपर सात बार उवारें. किसी भी हनुमान मन्दिर में ले जाकर उसे हनुमान जी के चरणों में अर्पित कर दें. इस प्रयोग से तत्काल लाभ होगा.

—-यदि राहू की कोई समस्या हो, तनाव बहुत अधिक रहता हो, क्रोध बहुत अधिक आ रहा हो, बनता काम बिगड़ रहा हो, परेशानियों के कारण नींद न आ रही हो तो-
बुधवार की रात्रि को एक नारियल को अपने पास रखकर सोयें. अगले दिन अर्थात् वीरवार की सुबह वह नारियल कुछ दक्षिणा के साथ गणेश जी के चरणों में अर्पित कर दें. मन्दिर में यथासम्भव 11 या 21 लगाकर दान कर कर दें. हर प्रकार का अमंगल, मंगल में बदल जायेगा

.—–यदि आप किसी गम्भीर आपत्ति में घिर गये हैं. आपको आगे बढ़ने का कोई रास्ता नही दिख रहा हो तो -
दो नारियल, एक चुनरी, कपूर, गूलर के पुष्प की माला से देवी दुर्गा का दुर्गा मंदिर में पूजन करें. एक नारियल चुनरी में लपेट कर (यथासम्भव दक्षिणा के साथ) माता के चरणों में अर्पित कर दें. माता की कपूर से आरती करें. ‘हुं फ़ट्’ बोलकर दूसरा नारियल फ़ोड़कर माता को बलि दें. सभी प्रकार के अनजाने भय तथा शत्रु बाधा से तत्काल लाभ होगा. —

शनिवार, 25 अगस्त 2012

" महाभारत " के ध्रितराष्ट्र...........

" महाभारत " के ध्रितराष्ट्र को कौन नहीं जानता ,
उसके अंधेपन को कौन नहीं जानता !
हम सभी ने महाभारत को कई बार पढ़ा है
उसकी कहानी को कईयों बार सुना है ,
साथ में ध्रितराष्ट्र के बारे में भी .........
कुछ की नजर में मजबूर और लाचार ,
शकुनी और दुर्योधन की शाजिश का शिकार .........
फिर भी इतिहास ध्रितराष्ट्र को ही दोषी मानता है !

खैर मुझे भी इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है !
बात हम अंधेपन की कर रहे हैं ........
उस अंधेपन की जो आँख होते हुए भी आँखें बंद कर बैठे हैं !
अभी हाल ही में हमने और पूरे देश ने आसाम मुंबई और
लखनऊ में हुए दंगे और " ईमान " वालों का बहशीपन को देखा है ,
और देखा वहां उपस्थित अंधे -बहरे , हाड - मांस के बने पुतलों ने
जिन्हें हम शायद इंसान कहते हैं , या कहते हुए भी शर्म आती है !
हाड-मांस के बने पुतलों में इंसान अब शायद ही बचे हों ........

इस तरह की घटनाओं ने एक बार फिर ये साबित कर
दिया कि हम ध्रतराष्ट्र की तरह अंधे हो चुके हैं जो सही
और गलत में अंतर नहीं कर पाते ,
सब कुछ हमारी आँखों के सामने हो जाता और
हम कुछ भी नहीं कर पाते .... शायद करना चाहते हों पर
हमारा जमीर तो मर चुका है ....शायद हम लकवाग्रस्त
शरीर और मन में हिम्मत ना जुटा पाए हों ......
कुछ भी हो पर सच तो ये है कि हम अंधे और बहरों
की तरह इस देश में जी रहे हैं ! क्या सही है क्या गलत है
सब जानते हैं फिर भी ......?

जब हम अपने साथ हुए
गलत का ही विरोध नहीं कर पाते ... जब हम अपने घर और
अपने आसपास होने वाली गलत बातों का ही विरोध नहीं
कर पाते तो ये समाज और देश में होने वाले गलत काम
और बुराई का विरोध कैसे कर पायेंगे ,
जब विरोध ही नहीं करेंगे तो खत्म कैसे करेंगे ........
शायद हमें सिर्फ और सिर्फ अपने आप से ही मतलब है
और हमें इसके अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है .....
जब कभी हम पर कुछ घटित होता है या हम ऐसी किसी
घटना का शिकार होते हैं तब शायद हमारा अंधापन दूर होता है !
ये देश अब एक जंगल बन गया है जहाँ शेर कम इंसान की खाल
पहने भेड़िये ज्यादा हो गए हैं !

सब कुछ हमारे सामने घटित हो रहा है ,
हमारी आँखों के सामने देश के दुश्मन देश को लूट रहे हैं और हम ........
हमारे अपने ही हमारे संस्कारों को मिटटी में मिला रहे हैं और हम ..............
हम भ्रष्ट राजनेताओं की गन्दी राजनीति का शिकार होकर अपनों की ही छाती में खंजर घोंप रहे है और हम .........
हम औरतों और बच्चों पर होते निर्मम अत्याचार को होते देख रहे हैं फिर भी हम ........
गरीब जनता की मेहनत और हक का पैसा भ्रष्ट अधिकारीयों और सफेदपोश नेताओं की तिजोरियों में जमा हो रहा है और हम ..........
हम जानबूझकर हर गलत और बुरे का साथ दे रहे हैं क्यों ? ..........
क्योकि अंधापन और बहरापन हमें विरासत में मिला है और विरासत में मिली हुई चीज बहुत लम्बे समय तक हमारे साथ चलती है !

ध्रितराष्ट्र से विरासत में मिले इस अंधेपन को मिटा दो और अपनी आँखें खोलो और देखो , ये दुनिया अब बदलाव चाहती है ............

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

फिर तिरंगा लहराने चले.......


फिर आज चले लहराने तुम , लालकिले पर वही तिरंगा ।
जिसकी कसमें खाकर जाने , कितने क्रांति के बीज उगे ।
जिसकी छवि आँखों में रखकर , बेंत चंद्रशेखर ने खाए ।
जिसकी खातिर असेम्बली में , भगतसिंह बटुकेश्वर ने पर्चे लहराए ।
जिसकी खातिर बिस्मिल ने , काकोरी में लूटा था ट्रेन ।
जिसकी खातिर असफाक ने , दे दी यौवन की क़ुरबानी ।

जिसकी खातिर भेष बदल कर , जीने को विवश सुभाष हुए ।
जिसकी खातिर सर्वस लुटाकर, गोली अपनों की खायी थी ।
बोलो क्या अब तक हम कर पाये , पूरे उनके सपनो को ???
या फिर पाल कर भ्रम को केवल , जीते रहे हम सपनों को ???
है भले देश में अपनी सत्ता , लेकिन हम क्या कर पाये है ?
भूँख , अशिक्षा, बेरोजगारी,बीमारी का, क्या हम हल दे पाये है ?

लुटी जाती अस्मत अब भी , अब भी जलती बहुएं है ।
भींख मांगता बचपन है , और वही अपाहिज बुढ़ापा है ।
सौतेली है अब भी वो भाषा , जो राष्ट्र भाषा कहलाती है ।
सत्ता के चारो खम्भों पर , भारत मां रोती जाती हैं ।
लूट घसोट मची है हर दिन, भ्रस्टाचार में सब कोई रंगा।
फिर भी देखो फहराने चले, लाल किले पर आज तिरंगा ।

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

बरसो रे मेघा बरसो......

सुख गये कुए , सुख गये तालाब
नहरों में पानी नही रहा
वाटर सप्लाई हुई बंद
पशु प्यासे , पक्षी प्यासे
प्यासा है दो हाथ , दो पैरो वाला इंसान
होठो पर आ रही पापड़ी
तन पसीने से तरबतर
सुखी है धरती सारी , कर रही त्राहिमाम
उस मजदूर पर रहम करो
जिसका होता सूरज से रोज टकराव
उस किसान पर रहम करो जो बैठा फसल की आस में
रहम करो उस व्यापारी पर
जो बैठा सुबह से शाम ग्राहक की आस में
बरसो इंद्र देवता, रहम करो अब आप
धरती कर रही त्राहिमाम और धरती पर रहने वाले भी कर रहे त्राहिमाम
बरसो इंद्र , हे बरसो इंद्र , अब तो बरसो इंद्र
इतना बरसो की गड्ढो में पानी भर जाए
नहरों में पानी आ जाए
तालाब पानी से लबालब हो
किसान खुशहाल हो
सबको मिले इस गर्मी से राहत
अब तो बरसो इंद्र , हे इंद्र अब तो बरसो

शुक्रवार, 29 जून 2012

कितना अच्छा होता की हम फिर से बच्चे बन जाते.......


कितना अच्छा होता की हम फिर से बच्चे बन जाते.......
रोज सुबह माँ के हमें जगाती......
रोज रोते रोते हम पढ़ने जाते.........
गाँव में गिल्ली डंडा खेलता...........
दोस्तों के साथ कबड्डी खेलता......
कितना अच्छा होता की हम फिर से बच्चे बन जाते.......

जब हम खुद को ढूंढने निकले..........


खुद में कुछ अपना ढूंढने निकले
खुली जमीं पे आसमां ढूंढने निकले
उठाए तो बहुत सवाल मेरे वजूद पर
जिद में जवाबों को ही ढूंढने निकले
अपने ही डिगाने लगे है हौंसला मेरा
समंदर में हम बूंद को ढूंढने निकले

वो दोस्त नहीं है..............

मुझे जब जब लगा,
कि मैं मुश्किलों से घिर गया हूँ,
लाख कोशिश करने पर भी,
जब मैं बिखर-बिखर गया हूँ,
जब रुकावटें ही रुकावटें दिखती हैं,
मैं जहाँ भी जिधर गया हूँ,
मंज़िलों तक जाने वाले रास्तों पर,
जब मैं दूर तक बिछड़ गया हूँ....

तब तब अपने कंधे पर,
मैंने एक हाथ महसूस किया,
अनेक कमज़ोरियों में,
जिसने मुझे मज़बूत किया,
एक साए की तरह,
जिसे अपने करीब पाया मैंने,
वो कोई और नहीं,
वो कोई और नहीं,
मेरा दोस्त था...

उसे दोस्त कहना,
जाने क्यूँ अटपटा सा लगता है,
वो दोस्त नहीं है,
वो एक देवता है, एक देवता है......

रविवार, 3 जून 2012

मेरे अहसास..................

मैंने महसूस किया है
मानव की हर उन
भावनाओं को
जो उसके अंतर्मन में
छुपी हुई हैं............

मैंने महसूस किया है
हर उस ताकत को
जो मनुष्य को हर समय
घेरे रहती है...........

मैंने महसूस किया है
हर उस खुशी को
जो उन छोटी-छोटी बातों से
मिलती हैं................

मैने महसूस किया है
हर उस गतिविधि को
जो इस ब्रम्हांड में
हर पल होती रहती है..............

और मैने महसूस किया है
उस अनजान शक्ति को
जो जीवन को हर तरह से
नियंत्रित करती है.............

सोमवार, 28 मई 2012

उठो देश के वीर जवानों..........

उठो देश के वीर जवानों
वक्त तुम्हारा आया है।
रच दो आज इतिहास नया
ये समय तुम्हारे पास आया है।

उठो देश के वीर जवानों
वक्त तुम्हारा आया है।
रच दो आज इतिहास नया
ये समय तुम्हारे पास आया है।

हे जननी तुम शक्ति हमें दो...................


हे जननी तुम शक्ति हमें दो
कुछ एसा हम कर जाएँ
मत्री भूमि की खातिर हम
कुछ एसा हम कर जाएँ...............

है अभिमान हमें इस धरती पर
जिसपर हमने जनम लिया
उसकी खातिर सर अपना हम
हस्ते हस्ते कटवा जाएँ..........

जो आ जाये बिच हमारे
उसको हमना टिकने देंगे
ईंट का जबाब हमको भी
पत्थर से देना आता है..........

सर पर बांधी कफ़न है हमने
उसको ना हम टिकने देंगे
देश की खातिर यूँ उसको हम
अपने देश में ना रहने देंगे..........

गुरुवार, 17 मई 2012

चल पड़े मेरे कदम............

चल पड़े मेरे कदम, जिंदगी की राह में,
दूर है मंजिल अभी, और फासले है नापने..........
जिंदगी है बादलों सी, कब किस तरफ मुड जाय वो,
बनकर घटा घनघोर सी, कब कहाँ बरस जाय वो...............
क्या पता उस राह में, हमराह होगा कौन मेरा,
ये तो  इश्वर ही जानता, या जानता जो साथ होगा.............

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

मुझको नही दिलचस्पी............

मुझको नही दिलचस्पी
बिन लादेन को किसने मरा
मेरी दिलचस्पी बस इसमें हें
उसका घोसला कहाँ मिला

आंखे खोलने की जब भी हमने
की सच्ची कोशिश
दरकिनार कर हमारी कोशिश
सबकी आँखों पर पर्दा डाला

भारत मे जितने भी हुए आतंकी हमले
पैसा बस तुम्हारा ही था
अब क्यों दुनिया को नही बताते
कि किसके घर मे घुस कर उसको मारा

रविवार, 25 मार्च 2012

मत पूछो यारो.............

मत पूछो यारो हमसे क्या चीज जवानी है ।

छेड़ो तो नगमा है वर्ना खामोश कहानी है।

उम्र का ऐसा दौर है ये जब दिल बेकाबू होता है,

रोक सका न इसको कोई ये वो दरिया तूफानी है ।

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

जिंदगी की तलाश.............


जिंदगी को जिंदगी की तलाश है,
इन आंखों में भी एक आस है।
कानों में भी कुछ सुनने की आस है,
हर किसी को किसी की तलाश है।
बुझते हुए दीये को रोशनी की तलाश है,
पतझड़ को सावन की प्यास है।
ज्येष्ठ के महीने को सावन से आस है,
जिंदगी को हमसे नहीं,
हमें जिंदगी से शिकायत है।
दगा करते हैं हमसे क्यों अपने,
जबकि हमें अपनों से ही आस है।
हमें खुशी की और खुशी को हमारी तलाश है,
जिंदगी को जिंदगी की तलाश है।

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

मुझे भी भ्रष्टाचार कर लेने दो..........


भाई साहब मैं मर जाऊंगा
मेरी धड़कनें रुक जायेंगी
सांस लेना मुश्किल हो जाएगा
मेरी बीवी घर से निकाल देगी
शान-सौकत सब चली जायेगी
किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहूँगा
मुझे करने दो, थोड़ा-बहुत ही सही
पर मुझे भ्रष्टाचार कर लेने दो........$...........
.........
मैं भ्रष्ट हूँ, भ्रष्टाचारी हूँ
इरादतन भ्रष्टाचार का आदि हो गया हूँ
आज तक एक भी ऐसा काम नहीं किया
जिसमे भ्रष्टाचार न किया हो
लोग मेरे नाम की मिसालें देते हैं
मुझे जीने दो, मेरी हाय मत लो
मेरी हाय तुम्हें चैन से बैठने नहीं देगी
क्यों, क्योंकि मैं एक ईमानदार भ्रष्टाचारी हूँ........$.........
.........
मेरी नस नस में भ्रष्टाचार दौड़ रहा है
दिल की धड़कनें भ्रष्टाचार से चल रही हैं
मान लो, मेरी बात मान लो
मुझे, सिर्फ मुझे, भ्रष्टाचार कर लेने दो
तुम हाय से बच जाओगे
और मेरी दुआएं भी मिलेंगी
यही मेरी पहली और अंतिम अर्जी है
क्यों, क्योंकि मैं एक ईमानदार भ्रष्टाचारी हूँ........$..........

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

गाँव मेरा मुझे याद आता है.............


भागता मैं रहा इस शहर से उस शहर ..............
पर कोई था ............................
जो मुझको बुलाता रहा.............
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा.............
एक प्यारा सा गाँव..
जिसमें पीपल की छाँव,
पेड़ जामुन के कुछ
खेत सरसों के कुछ
मीठा पानी कुँए का
मुझको बुलाता रहा .................
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा.............
धान की बालियाँ..............
महकी अमराइयाँ.............
माटी की सौंधी महक............$.............
बीता बचपन मुझे.............
बुलाता रहा ..................
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा..
माँ के आँचल का प्यार
दादी का दुलार................
वो सावन के झूले,
वो मीठी सी गुझिया
जिसमें कितना था लाड़...............
वो होली का फाग.................
रंग होली का मुझको बुलाता रहा .........
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा..............
गाँव मेरा मुझे बुलाता रहा.............
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा.............


हौसला बुलंद कर ले..............

रख हौसला खुद पे.................
यकीं एकबार कर ले.............
सामने तेरे खुला आकाश है..........
जीतने की कोशिश तू बस एकबार कर ले ...........

रास्तें की ठोकरें क्या रोक पाएंगी तुझे?
चल उठ! अपनी जीत का आगाज कर दे.............
स्वप्न जो आधे-अधूरे थे कभी...............
चल जाग जा तू नींद से...............
आज अपनी जीत का ऐलान कर दे,...............


है कंटीली राह तो क्या?
हार कर रुकना नही है तुझे...........
चल उठ!जीत का सेहरा तू अपने नाम कर ले..........

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

दिमाक और मन..........


नयी इच्छाओँ ने जन्म लेना
शुरू कर दिया है...
ये कैसे हो गया?
अभी तो कई पुरानी इच्छाएँ,
अपने साकार होने की
प्रतीक्षा कर रही हैँ...
अब इतनी सारी इच्छाएँ
कैसे पूरी होँगी?
दिमाग ने सोचने से
मना कर दिया है,
कह रहा है- "मन से जन्मी इच्छाएँ,
मैँ नहीँ सुलझाऊँगा.."
और मन कह रहा है-
"फिक्र मत करना और सबकुछ
परिस्थितियोँ पर छोड़ देना,
क्योँकि ये परिस्थितियाँ
या तो इच्छाएँ पूरी कर देँगी
या फिर स्वत: ही उन्हेँ दबा देँगी.."
अब सोच रहा हूँ कि
क्योँ ना अपनी नयी-पुरानी इच्छाओँ के साथ,
करूँ परिस्थितियोँ का इंतजार...
आखिर,
परिस्थितियोँ पर ही तो निर्भर है,
इन इच्छाओँ की परिणीती............

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

उतावला मन..........


मन बहुत उतावला होता है |

इसमे न जाने कितने सवाल उठते है या जबाब मिलते है |

चाहे उनमे मै स्वयं ही घिरा हूं या फ़िर समाज या देश के प्रति मेरी उदासीनता या फ़िर जिम्मेदारी |

.

आप भी मेरी इस कशमकश के साथी हैं,

साथ चलकर या अपनी प्रतिक्रिया, विचार और राय के साथ् |

मेरे मन मे आज क्या है लिख दूँ पर हर पल न जाने किस ख्यालों में खोया रहता हूँ |





.

सोमवार, 16 जनवरी 2012

जिंदगी का अनुभव.......सत्य......

ज़िन्दगी के राह से अक्सर गुजरते हुये मैने अपने अनुभव से बहुत सी बाते समझी है ऐसा मै मानता हुं अब ये कहा तक सही है या गलत है
ये तो सदियो से वक्त पर छोडते आये है, जैसे-जैसे बाते जहन मे आती है मै आपसे कहता रहूंगा क्योकि जब तक जहन से बाते बाहर न आ जाये तब तक एक बेखुदी सी छाई रहती है...............

अक्सर ये सवाल जहन मे आता है मै कौन हूं और कई बाते सोचने लगता है ये जहन, यदि ये मान कर चले कि मेरा नाम " श्याम " है तो ये मेरे शरीर का नाम है और उस शरीर से मै अपने आप को प्रस्तुत करता हूं मगर फ़िर एक बात जहन मे आती है कि शरीर भी अपना नही है ये पंचतत्व से बना है और उस मे विलीन हो जायेगा ऐसा शास्त्र मे लिखा है,,,, यहां पर ये बात आती है कि शरीर से मै प्रस्तुत होता हूं लेकिन शरीर मेरा नही है वो इन तत्वो से बना है और नाम देने से मजहब का पता चलता है इस लिये मै सिर्फ़ शरीर हुं और विचार मेरे है जो कि इस शरीर की संपत्ति है वही मेरी दौलत है क्योकि उसी
विचार के माध्यम से आप मुझे जानते है कि ये व्यक्ति " श्याम " है.
मेरा ये मानना है कि शरीर या किसी अस्तित्व को हम सिर्फ़ विचारो के आधार पर ही समझते है और उन्हे आधारो के माध्यम से नज़रिया तय होता है, यहां पर सोच और नज़र के दायरे पर ही इन्सान का व्यक्तित्व निर्भर करता है..................

अब इन सब बातो को जान लेने के बाद अक्सर मै जब नये-नये लोगो से मिलता हूं तो ये देखने की कोशिश करता हूं कि क्या ये आदमी उस स्तर से सोच सकता है अपने बारे और अपने परिवार के बारे मे या नही क्योकि हर व्यक्ति की सोच मे परिवेश का असर होता है कि वो किस प्रकार के माहौल मे पला-बढा है, और कितना धीरज के साथ सोचता है अक्सर लोग पहले से बनी हुई धारणाओ के आधार पर ही सोचते है अर्थात जरा गंभीरता से नही सोचते आनन-फ़ानन मे जो रास्ता पूर्व धारणा से निर्मित है उसी पर चलते आ रहे है एक परम्परा को ही दोहराते आ रहे है आखिर पहले के हालात और अब के हालात मे काफ़ी फ़र्क है तब की धारणाओ को अब अमल मे लाते रहना कितना सार्थक है यदि तब हालात समाज उतने उन्नतशील नही थे, मगर अब हम उतने उन्नतशील है मगर फ़िर भी हम आज के हालातो के अनुसार नही सोचना चाहते पता नही क्यो ?

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