जिसको छोड़ आया गाँव की गलियों मैं.......
जीसे भूल आये अपने घर के अमरूद के पेड पर.......
जीसे छोड़ आया मैं अपने ही दोस्तों केबीच में......
मैं अपने उस बचपन को अब भी खोजा करता हूँ........
भाग दौड़ भरी जिंदगी में बचपन जीना चाहता हूँ........
आज मन बहुत कष्ट में है इस मन में कुछ भी नहीं है यहाँ तक कि ना वीराना है और ना ही कोई सन्नाटा आवाज़ो के साथ यहाँ से सन्नाटा भी चला गया है जो कुछ यहाँ हुआ करता था अब वो कुछ भी यहाँ नहीं है लेकिन… इतने विराट खालीपन में भी ना जाने ये कमबख़्त… दर्द जाने ये दर्द कहाँ से उपजता है किस तरह ये दर्द उदयशील है जबकि सृष्टि सारी अस्त में है? आज मन बहुत कष्ट मेंहै..... .......... |
"कब्र के सन्नाटे में से एक आवाज़ आयी,
किसी ने फूल रखके आंसूं की दो बूंद बहायी,
जब तक था जिंदा तब तक ठोकर खायी,
अब सो रहा हूं तो उसको मेरी याद आयी।"
जब भी सोता हूँ तो जाग जाता हूँ
ऐ मेरे दोस्त सोने की कोई तो दवा देदे
बनती नहीं कोई बात बिना पिए हुए
ऐ मेरे यार ना पिने की कोई दुवा दे दे
जबाब जब कोई ना दे
तब क्या समझू मेरे दोस्त
हम तो जबाबो के इंतजार में
मरते मरते बच जाते है......
ना पूछ ऐ मेरे दोस्त दिल की बात
की अपने भी जख्म दे जाते हैं
हम छुपा के रखते थे
वो कुरेद के चले जाते हैं।।।
ए रात यूँ ही क्यूँ आ जाती है
क्यूँ मुझको सुला के जाती है
कम से कम उनको सुला दिया कर
जिसको मेरे याद में नीद नहीं आती है ।
यूँ ही झूठ ही कह देते,
हमें दर्द का एहसास है।
सच में मैं मेरे दर्द को
जानबूझ के यूँ ही भूल जाता ।।