कहीं कुछ लफ्ज़ छुपे होते हैं खामोशी में भी...
कहीं लफ़्ज़ों में भी एक खामोशी सी होती है....
सोमवार, 26 अक्तूबर 2015
ख़ामोशी.....
खामोशियाँ.....
आज मैंने एक नया सबक सीखा ज़िन्दगी में।
खामोशियाँ ही बेहतर हैं,
शब्दों से लोग रूठते बहुत है।।
रविवार, 25 अक्तूबर 2015
मेरी तलाश.....
मौत मेरी तलाश में दिन ,
रात यूँ ही भटकती रही.....
कभी उसे मेरा घर न मिला ,
तो कभी उसे मैं घर पर न मिला......
हम छोड़ चले है.....
हम छोड़ चले है महफ़िल को
याद आये कभी तो मत रोना
इस दिल को तसल्ली दे देना
घबराये कभी तो मत रोना
एक ख्वाब सा देखा था हमने
जब आँख खुली तो टूट गया
यह प्यार तुम्हें सपना बनकर
तडपाये कभी तो मत रोना
तुम मेरे ख़यालों में खोकर
बरबाद ना करना जीवन को
जब कोई सहेली बात तुम्हें
समझाये कभी तो मत रोना
जीवन के सफ़र में तनहाई
मुझको तो ना ज़िंदा छोड़ेगी
मरने की खबर ऐ जान-ए-जिगर
मिल जाये कभी तो मत रोना
फ़िल्म... जी चाहता है (1962)
मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015
नींद में.....
नींद में भी गिरते है मेरी आंखो से आसुँ,,
जब भी तुम ख्वाबो में मेरा हाथ छोड़ देती हो...♌
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