ओह.. तो तुम आखिर चले ही गये। बहुत दिनों से दिख नहीं रहे थे तो मन में तरह तरह की आशंकायें उठती थीं। कोई कुछ कहता कोई कुछ। किसकी बात पर भरोसा करते। याद आता है संभवतः दो तीन वर्षों पहले आपके दर्शन हुये थे। फिर तो आप एकदम से अदृश्य ही हो गये। हमने और कईयों से भी पूछा, खोज खबर ली उन्होंने भी आपको न देखने की इत्तिला दी।
और कल खबर मिली कि आप हमेशा के लिए हमें छोड़ गये। और कोई आखिरी निशानी भी नहीं छोड़ी। सार्वजनिक जीवन को त्याग दिया। कहते हैं वे श्रेष्ठजन होते हैं जो अल्पायु होते हैं। और निसंदेह आप अपनी श्रेणी में श्रेष्ठतम थे। कई 'श्रेष्ठ जनों' को आपका जाना बहुत अखर गया है। हम तो ठहरे आम साधारण लोग। संतोष करना सीख गये हैं। मगर कुछ खास तो खासे बेचैन हैं।
ईश्वर आपको सद्गति दें। और इतना क्रूर भी न बने कि ऐसी अल्पायु में किसी की इहलीला समाप्त कर दें। हम भले आपके सानिध्य सुख से प्रायः वंचित रहे हों मगर हम इतने निष्ठुर और अनुदार भी नहीं कि आपके निर्वाण पर शोक संवेदना भी व्यक्त न करें।
- आपका एक शुभ चिन्तक
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