याद रख कर भी मैं एक काम करना भूल जाता हूँ
सुबह खोलता हूँ अपना आसमाँ मगर शाम करना भूल जाता हूँ
मेरी राह देखकर अकेले ही डूब जाता है समंदर में सूरज
कभी कभी तो यूँ भी होता है कि मैं आराम करना भूल जाता हूँ
यूँ तो हर वक़्त किया करता हूँ मैं याद अपने चाहने वालों को
इंसान हूँ, खुशी में तुझे प्रणाम करना भूल जाता हूँ
मुझे मालूम हैं कई राज़ हैं मेरे दुश्मन के यूँ तो
ज़ाहिर उन्हें मैं सरे आम करना भूल जाता हूँ
चिल्ला के तो शांत कर लेता हूँ हर अपने अंदर के शैतान को
उलझता हूँ ज़िन्दगी में ऐसे कि अंजाम करना भूल जाता हूँ
मैं यूँ ही लिख कर हर सपने को मिटा दिया करता हूँ
ज़िन्दगी बस तुझको अपने नाम करना भूल जाता हूँ
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