रविवार, 5 जून 2011

तुम मां हो, बहन हो, बेटी हो, पत्नी भी

इस घर की चारदिवारी बेरंग थी
तुम्हारे आने से पहले
तुम आईं तो रंग आया, रौनक आई
तुम सच एक कड़ी ही तो हो
घर बनाने वाली, नहीं घर जोड़ने वाली
सच, तुम पेंटिंग हो, कविता हो, संगीत हो
जिंदगी को सुंदरता का वर देने वाली देवी
तुम हर दुखियारे की मीत हो
ऐ ईश्वर की अनमोल रचना
तुम मां हो, बहन हो, बेटी हो, पत्नी भी
और किसी पागल प्रेमी की प्रीत हो
ओ ममता की मूरत खामोश न रह, बोल
अपने दिल की गांठें तो खोल
गर तू है बुत तो बुतपरस्त भी हैं
न लगा अपनी हैसियत का मोल
तू हंस, के तू अब आजाद है
आज इस हंसी पर ही जहां आबाद है

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