घबरा गए हैं वक़्त की तंहाइयों से हम |
उकता चुके हैं अपनी ही परछाइयों से हम ||
ये सोच कर ही खुद से मुख़ातिब रहे सदा |
क्या गुफ़्तुगू करेंगे तमाशाइयों से हम ||
उकता चुके हैं अपनी ही परछाइयों से हम ||
ये सोच कर ही खुद से मुख़ातिब रहे सदा |
क्या गुफ़्तुगू करेंगे तमाशाइयों से हम ||