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गुरुवार, 28 जुलाई 2011

कभी facebook कभी google




मैं आजकल कुछ ऐसे
अपने सायों में छुपा रहता हूँ

न किसी को दिखाई देता हूँ
और न ही आवाज़ों में सुनायी देता हूँ

कल तक जो दोस्त मुझे छोडते न थे
वो अब गलियों में मेरा पता पूछते है
और जो कभी मेरी आँखों में बसा करते थे
वो मुझे कभी facebook पे
और कभी घंटो google पे मुझे ढूंढते रहते हैं

सच में ज़माना बहुत बदल गया है ...

आँखों में भरकर प्यार अमर


आँखों में भरकर प्यार अमर
आशीष हथेली में भरकर
को‌ई मेरा सिर गोदी में रख
मेरे सर को सहलाता, मैं सो जाता
को‌ई गाता गाना मैं सो जाता......



रविवार, 24 जुलाई 2011

वक्त नहीं है.....


हर खुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हँसी के लिए वक्त नहीं
दिन-रात दौड़ती है दुनिया ,
ज़िंदगी के लिए ही वक्त नहीं
माँ की लोरी का एहसास तो है, पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके है,
अब उन्हें दफनाने का भी वक्त नहीं
सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक्त नहीं
गैरों की क्या बात करें, जब अपनों के लिए ही वक्त नहीं है.
आंखों में है नींद भरी,
पर सोने का वक्त नहीं
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक्त नहीं
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े, कि थकने का भी वक्त नहीं है.
पराये एहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनों के लिए ही वक्त नहीं
तू ही बता ऐ ज़िंदगी,
इस ज़िंदगी का क्या होगा,
कि हर पल मरने वालों को, जीने के लिए भी वक्त नहीं........

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

हम वो मस्ताने है............


ये वोही लोग जो पत्थर मारा करते थे कभी मुझे
ये वोही लोग हैं जो आज मुझे तारीफों के पुलों मैं रखा करते है

ये वोही लोग है जो फर्शो पे भी पाँव न रखने देते थे मुझे
ये वोही लोग है जो अर्शो पे बिठाये फिरते है मुझे

ये तो एक दस्तूर है ज़माने का
जानते है की लोग बस चढ़ते सूरज को सलाम करते है

इन लोगो को भी तुम कभी न समझोगे
ये तो बस भीड़ में कभी भी चल देते है

जिस दिन जिधर झुण्ड चलता है
बस उधर मुह उठाये तुरंत चल देते है
भीड़ में तो हर कोई चला करता है


हम वो मस्ताने है जो
बस अपनी धुन में चला करते है
बस अपनी धुन में चला करते है

शनिवार, 16 जुलाई 2011

गुण तुलसी के पौधे की


तुलसी की माला धारण जो लोग करते है उनके शरीर की विद्युत शक्ति कभी समाप्त नहीं होती है.तुलसी की माला पहनने से व्यक्ति की असमय मृत्यु नहीं होती है और किसी बीमारी का संक्रमण भी नहीं होता है.तुलसी के पौधे में जबरदस्त विद्युत शक्ति होती है, जिससे इसके चारों तरफ चुम्बकिय मंडल मौजूद रहता है तुलसी की माला आकर्षण और वशीकरण भी प्रदान करती है.इसकी माला धारण करने से वाला सहज ही रूप में सामने वालों को आकर्षित करने की क्षमता रखता है.तुलसी की माला धारण करने वालों को सभी का प्यार और सम्मान प्राप्त होता है.

तुलसी का पौधा जगत प्रसिद्ध है यही एक पौधा है जिसकी जड़, पत्ती, फूल, मंजरी, डाली यानि सब कुछ मनुष्य के लिए उपयोगी होता है.तुलसी के पौधे का महत्व धर्म और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टि से है.तुलसी का पौधा दिन रात जीवनदायनी आक्सीजन छोड़ता है जिससे इसका महत्व और उपयोगिता बड जाती है. विष्णु पुराण, देवी भागवत में तुलसी से जुड़ी अनेक प्रसंग है.आयुर्वेद में तो तुलसी की पहचान एक महा औषधि के रूप में है.तुलसी का प्रयोग तांत्रिक अनुष्ठान में भी होता है. घर में तुलसी के पौधे की उपस्थिति एक वैद्य समान तो है ही यह वास्तु के दोष भी दूर करने में सक्षम है हमारें शास्त्र इस के गुणों से भरे पड़े है जन्म से लेकर मृत्यु तक काम आती है यह तुलसी.... कभी सोचा है कि मामूली सी दिखने वाली यह तुलसी हमारे घर या भवन के समस्त दोष को दूर कर हमारे जीवन को निरोग एवम सुखमय बनाने में सक्षम है माता के समान सुख प्रदान करने वाली तुलसी का वास्तु शास्त्र में विशेष स्थान है हम ऐसे समाज में निवास करते है कि सस्ती वस्तुएं एवम सुलभ सामग्री को शान के विपरीत समझने लगे है महंगी चीजों को हम अपनी प्रतिष्ठा मानते है कुछ भी हो तुलसी का स्थान हमारे शास्त्रों में पूज्यनीय देवी के रूप में है तुलसी को मां शब्द से अलंकृत कर हम नित्य इसकी पूजा आराधना भी करते है इसके गुणों को आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता है इसकी हवा तथा स्पर्श एवम इसका भोग दीर्घ आयु तथा स्वास्थ्य विशेष रूप से वातावरण को शुद्ध करने में सक्षम होता है शास्त्रानुसार तुलसी के विभिन्न प्रकार के पौधे मिलते है उनमें श्रीकृष्ण तुलसी, लक्ष्मी तुलसी, राम तुलसी, भू तुलसी, नील तुलसी, श्वेत तुलसी, रक्त तुलसी, वन तुलसी, ज्ञान तुलसी मुख्य रूप से विद्यमान है सबके गुण अलग अलग है शरीर में नाक कान वायु कफ ज्वर खांसी और दिल की बिमारिओं पर खास प्रभाव डालती है.
भगवान विष्णु को तुलसी सर्वप्रिय है.भगवान विष्णु, राम, कृष्ण आदि देवताओं की कृपा पाने के लिए तुलसी की माला पर उनके नामो का जप करना अत्यंत ही आवश्यक है. तुलसी की माला गोल, सुंदर एक समान और १०८ दानो की होनी चाहिए. धार्मिक और तांत्रिक कार्यों में स्वर्ण या चांदी के मनकों से बनी माला से तुलसी के मनकों से बनी माला सौ गुणा पवित्र और प्रभावशाली होती है.तुलसी की माला धारण करने वाले व्यक्ति पर लक्ष्मी भी प्रसन्न रहती है.भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करते हुए तुलसी की माला जो व्यक्ति धारण करता है उसके पूर्व जन्म के पाप नष्ट होते है तथा सुख-सौभाग्य उसे प्राप्त होते है...



सामान्य से दिखने वाले तुलसी के पौधे में अनेक दुर्लभ और बेशकीमती गुण पाए जाते हैं। आइये जाने कि तुलसी का पूज्यनीय पौधा हमारे किस-किस काम आ सकता है-

- डेली 5 पत्तियां सुबह खाली पेट चूंसने से बीमार होने की संभावना काफी हद तक समाप्त हो जाती है, क्योंकि इससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कई गुना बढ़ जाती है।

- शरीर के वजन को नियंत्रित रखने में तुलसी बेहद कारगर और गुणकारी है।

- इसके नियमित सेवन से भारी व्यक्ति का वजन घटता है एवं पतले व्यक्ति का वजन बढ़ता है यानी तुलसी शरीर का वजन आनुपातिक रूप से नियंत्रित करती है।

- तुलसी के रस की कुछ बूंदों में थोड़ा-सा नमक मिलाकर बेहोंश व्यक्ति की नाक में डालने से उसे शीघ्र होश आ जाता है। - चाय बनाते समय तुलसी के 4-5 पत्ते साथ में उबाल लिए जाएं तो सर्दी, बुखार एवं मांसपेशियों के दर्द में तत्काल राहत मिलती है।

- 10 ग्राम तुलसी के रस को 5 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से हिचकी एवं अस्थमा के रोगी को ठीक किया जा सकता है।

- तुलसी के काढ़े में थोड़ा-सा सेंधा नमक एवं पीसी सौंठ मिलाकर सेवन करने से कब्ज दूर होती है।

- दोपहर भोजन के पश्चात तुलसी की पत्तियां चबाने से पाचन शक्ति मजबूत होती है।

- 10 ग्राम तुलसी के रस के साथ 5 ग्राम शहद एवं 5 ग्राम पिसी कालीमिर्च का सेवन करने से पाचन शक्ति की कमजोरी समाप्त हो जाती है।

- दूषित पानी में तुलसी की कुछ ताजी पत्तियां डालने से पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है।

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

भूख और बेबसी



उसने चूल्हे में कुछ सूखी लकड़ियाँ डालकर उनमें आग लगा दी और
चूल्हे पर बर्तन चढ़ाकर उसमें पानी डाल दिया।
बच्चे अभी भी भूख से रो रहे थे।
छोटी को उसने उठाकर अपनी सूखी पड़ी छाती से चिपका लिया।
बच्ची सूख चुके स्तनों से दूध निकालने का जतन करने लगी और
उससे थोड़ा बड़ा लड़का अभी भी रोने में लगा था।
उस महिला ने खाली बर्तन में चिमचा चलाना शुरू कर दिया।
बर्तन में पानी के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था पर बच्चों को आस थी
कि कुछ न कुछ पक रहा है। आस के बँधते ही रोना धीमा होने लगा किन्तु
भूख उन्हें सोने नहीं दे रही थी।
वह महिला जो माँ भी थी बच्चों की भूख नहीं देख पा रही थी,
अन्दर ही अन्दर रोती जा रही थी।
बच्चे भी कुछ खाने का इंतजार करते-करते झपकने लगे।
उनके मन में थोड़ी देर से ही सही कुछ मिलने की आस अभी भी थी।
बच्चों के सोने में खलल न पड़े इस कारण माँ खाली बर्तन में
पानी चलाते हुए बर्तनों का शोर करती रही और बच्चे भी
हमेशा की तरह एक धोखा खाकर आज की रात भी सो गये।

रविवार, 10 जुलाई 2011

जन लोकपाल बिल


अन्ना हजारे का प्रयास कितना सफल होगा या असफल यह विषय कुछ तार्किक लोगों के संवाद का हो सकता है परन्तु यह निश्चित है कि हर चीज की इन्तहा होती है,भ्रष्टाचार भी अब अपने चरम पर है इसलिए घटना तो इसको भी पड़ेगा ही. आज अन्ना हजारे ने एक नई शुरुवात की है,कोई भी भारत में ऐसा व्यक्ति नही है जो इस भ्रष्टाचार का शिकार नही हुआ हो. बस लड़ने का साहस नही है, फिर डरना किस्से ! अभी कौन से जिन्दा हो जो मर जाओगे,इसलिए मुर्दे में जान फूंकना है . देश की तरक्की अपने स्वयं के हाथ में है,और जब अपने हाथ भ्रष्टाचारियों से कटवा दोगे तो लड़ोगे कैसे? इसलिए अपने हाथ से दूसरे का फिर तीसरे का हाथ पकड़ कर हाथों की जंजीर बनाकर भ्रष्टाचार से लड़ना पड़ेगा. निश्चित मानिए सुनहरा भारत का उदय होना है देर हम कर रहे हैं. इसलिए जागो ! बहुत सो लिए! जागो वरना सोते ही रह जाओगे..........

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

क्यों कि मैं कन्या भ्रूण हूं





मैं एक भ्रूण हूं। अभी मेरा कोई अस्तित्व नहीं। मैं प्राकृतिक रूप से सृष्टि को आगे बढ़ाने का दायित्व लेकर अपनी मां की कोख में आई हूं। अब आप पहचान गए होंगे कि मैं सिर्फ भ्रूण नहीं बल्कि कन्या भ्रूण हूं। बालक भ्रूण होती तो गर्भ परीक्षण के बाद मुझे पहचाने जाने का स्वागत होता 'जय श्री कृष्ण' के पवित्र सांकेतिक शब्द के साथ । मगर मैं तो कन्या भ्रूण हूं ना, मेरे लिए भी कितना प्यारा पावन सांकेतिक शब्द है 'जय माता दी'। पर नहीं मेरे लिए यह शब्द खुशियों की घंटियां नहीं बजाता, जयकारे का उल्लास नहीं देता क्योंकि इस 'शब्द' के पीछे 'लाल' खून की स्याही

से लिखा एक 'काला' सच है जिससे लिखी जाती है मेरी मौत।



कैसी घोर विडंबना है ना जिस देवी को स्मरण कर मुझे पहचाना जाता है, उसे तो घर-घर सादर साग्रह बुलाया जाता है। और मैं उसी का स्वरूप, उसी का प्रतिरूप, मुझे इस खूबसूरत दुनिया में अपनी कच्ची कोमल आंखे खोलने से पहले ही कितनी कठोरता से कुचला जाता है। क्यों ????

आप लोग सक्षम हैं, समर्थ हैं निर्णय ले सकते हैं। मेरी क्या बिसात कि मैं अपना भविष्य तय कर सकूं। अभी तो मेरे अंग भी गुलाबी और कमजोर है। बस एक नन्हा, मासूम, छुटकू सा दिल धड़कता है मेरा, यह देखने के लिए कि कौन है मेरा सृजक? किसके प्रयासों से मैंने आकार लिया? किसकी मातृत्व की अमृत बूंदें मेरे पोषण के लिए बेताब है?




ओह, यह सिर्फ और सिर्फ मेरी ही कोरी भावुकता है। कन्या भ्रूण हूं ना, भावुक होने का गुण नैसर्गिक रूप से मुझे ही तो मिला है। जिन सृजकों से मिलने के लिए मैं हुलस रही हूं वे नहीं चाहते कि मैं अब और अधिक पनपूं, पल्लवित होऊं। नहीं चाहते कि नौ महीने बाद गर्भ की अंधेरी दुनिया से बाहर आकर उनकी दुनिया की उजली चमक देखूं, परिवार के सपनों में खुशी और ख्याति के सुनहरे रंग भरूं। बालक भ्रूण की तरह उन्हीं का अंश हूं, उतना ही प्यारा हूं फिर भी बेगाना हूं क्योंकि मैं कन्या भ्रूण हूं।


खुद के अस्तित्व के मिटने से कहीं ज्यादा दुख, बल्कि 'आश्चर्यमिश्रित दुख' इस बात का है कि मेरी हत्या के लिए 'जय माता दी' जैसा ‍दिव्य उच्चारण करते हुए क्या नहीं कांपती होगी जुबान? एक बार भी याद नहीं आती होगी 'मां' के सच्चे दरबार की जहां पूरी धार्मिकता और आस्था के सैलाब के साथ दिल से निकलता है जय माता दी? वही जयकारा कैसे एक संकेत बन गया मेरी देह को नष्ट करने के अपवित्र संकल्प का। जिसने भी पहली बार मेरे आकार को तोड़ने और मेरी ही मां की कोख से मुझे बेघर करने के लिए यह प्रयोग किया होगा कितना नीच होगा ना वह? आह, मैं तो इस दुनिया में आई ही नहीं फिर दुनिया की ऐसी गालियां मेरे अंतर्मन से क्यों उठ रही है?


है, इसका भी जवाब है मेरे पास। आंकड़ों की भयावहता ने मुझे मजबूर किया है ऐसे शब्दों के लिए। और मुझे अफसोस इसलिए नहीं कि कम से कम मैंने किसी देवी-देवता का नाम तो नहीं लिया आपको नवाजने के लिए आपकी तरह। मैं कम से कम ईश्वर को तो नहीं छलती। मेरे जैसी कितनी मेरी कच्ची बहनें दुनिया में आने से पहले कुचल कर एक अनजान दुनिया में लौटा दी जाती है। उस दुनिया में जहां जाने से खुद इंसान भी डरता है। फिर मैं तो भ्रूण हूं, सलोना और सुकोमल। नाजुक और नर्म।


आपको पता है 2001-05 के दौरान रोजाना करीब 1800-1900 मुझ जैसी कन्या भ्रूण की हत्याएं हुई हैं। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2001-05 के बीच करीब 6,82,000 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है अर्थात इन चार सालों में रोजाना 1800 से 1900 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है। आपको तो पता होगा, आप ही ने तो की है और करवाई है।


मैं चिखती रहती हूं, तड़पती रहती हूं लेकिन कोई नहीं सुनता मेरी चित्कार। मुझे मांस का एक टुकड़ा समझ कर निर्ममता से निकाल दिया जाता है मेरी ही मां के गर्भ से। मां से क्या शिकायत करूं वह तो खुद बेबस सी पड़ी रहती है जब उसकी देह से मुझको उठाया जाता है। यही तो शिकायत है मेरी अपनी मां से। जब मुझे इस दुनिया में लाने का साहस ही नहीं तुममें तो क्यों बनती हो सृजन की भागीदार। तुम्हें भी तो तुम्हारी मां ने जन्मा होगा ना? तभी तो आज तुम मुझे कोख में ला सकी हो। सोचों, अगर उन्होंने भी ना आने दिया होता तुम्हें तब? तुम अपनी ही बच्ची के साथ ऐसा कैसे होने दे सकती हो? नौ दिन तक छोटी कन्याओं को पूजने वाली मां अपनी ही संतान को नौ माह नहीं रखती क्यों, क्योंकि वह कन्या भ्रूण है।

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संस्था सेंटर फार सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी का कहना है कि यह आंकड़ा भयानक है लेकिन वास्तविक तस्वीर इससे भी अधिक डरावनी हो सकती है। गैरकानूनी और छुपे तौर पर और कुछ इलाकों में तो जिस तादाद में कन्या भ्रूण की हत्या हो रही है उसके अनुपात में यह आंकड़ा कम लगता है। हालांकि आधिकारिक आंकड़े इतने भयावह हैं तो इससे इसका अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि समस्या कितनी गंभीर है।

सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 1981 में 0-6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात 1981 में 962 था जो 1991 में घटकर 945 हो गया और 2001 में यह 927 रह गया है। इसका 'श्रेय' मुख्य तौर पर देश के कुछ भागों में हुई कन्या भ्रूण की हत्या को जाता है। आपको नहीं डराते ये आंकड़े? मुझे तो जब डॉक्टर कहा जाने वाला मनुष्य अपने आधुनिक खंजर से उखाड़ता है उससे भी ज्यादा डरावने लगते हैं ये आंकड़े?


मुझे पता है कि 1995 में बने जन्म पूर्व नैदानिक अधिनियम (प्री नेटल डायग्नास्टिक एक्ट, 1995) के मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर कानूनी है जबकि इसका उल्लंघन सबसे अधिक होता है। क्या आपको नहीं पता? और सुनिए, भारत सरकार ने 2011-12 तक बच्चों का लिंग अनुपात 935 और 2016-17 तक इसे बढ़ा कर 950 करने लक्ष्य रखा है। क्योंकि देश के 328 जिलों में बच्चों का लिंग अनुपात 950 से कम है। क्या अब भी आपको मेरी पीड़ा का आभास नहीं? सृष्टि कैसे बढ़ेगी, कैसे चलेगी जब जन्मदात्री ही दुनिया में आने से वंचित की जाती रहेगी?

मैं तो गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 भी जानती हूं जिसके अंतर्गत गर्भवती स्त्री कानूनी तौर पर गर्भपात केवल इन स्थितियों में करवा सकती है :


1. जब गर्भ की वजह से महिला की जान को खतरा हो।

2. महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो।

3. गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो।

4. बच्चा गंभीर रूप से विकलांग या अपाहिज पैदा हो सकता हो।



इसके साथ ही आईपीसी की धारा 313 में स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात करवाने वाले के बारे में कहा गया है कि इस प्रकार से गर्भपात करवाने वाले को आजीवन कारावास या जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है। पर इन कानूनों के नाम पर मैं किसे डरा रही हूं ? उन्हें जो ईश्वर से भी नहीं डरते और 'जय माता दी' कहकर जीवनदायिनी मां का नाम मेरी मौत से जोड़कर कलंकित करते हैं?

नौ दिनों तक 'स्त्री पूजा और सम्मान का ढोंग करने वालों' अपनी आत्मा से पूछों कि देवी के नाम पर रचा यह संकेत क्या देवी ने नहीं सुना होगा? अगली बार जब किसी नन्ही आत्मा को पहचाने जाने के लिए तुम बोलो 'जय माता दी' तो मेरी कामना है कि तुम्हारी जुबान लड़खड़ा जाए, तुम यह पवित्र शब्द बोल ही ना पाओ, देवी मां करे, नवरात्रि में तुम्हारी हर पूजा व्यर्थ चली जाए... और आंकड़े यूं ही बढ़ते रहे तो तुम्हारे हर 'पाप' पर मेरे सौ-सौ 'शाप' लगे।

मैं सच में दुखी हूं, अकेली हूं, मेरी अनसुनी मत करो, मैं आपकी हूं, मुझे दुनिया के उजाले में आने दो...! हां, मैं कन्या भ्रूण हूं, मुझे भी खुले आकाश तले गुनगुनाने दो..!