पृष्ठ

मंगलवार, 31 मई 2011

क्या तरीफ करूं आपकी

एक लब्ज मैं क्या तरीफ करूं आपकी अप लाब्जों मैं कैसे समां पाओगे ,
बस इतना जान लो की जब लोग दोस्ती के बारे मैं पूछेंगे,
तो मेरी आँखों से सिर्फ तुम नजर आओगी !

वादियों से चाँद निकल आया है,
फीजाओं मैं नया रंग छाया हैं ,
आप हो की खामोस बेठे हैं ,
अब तो मुस्कराओ क्यूंकि एक बार फिर हमारा ख़त आया है.

कल फुरसत मिली तो क्या होगा
इतनी मोहलत होगी तो क्या होगा ,
रोज तुम्हारा स्क्रैप की इंतज़ार करता हूँ
कल आँखें रहे तो क्या होगा.

उस दिल से प्यार करो जो तुम्हे दर्द दे.
पर उस दिल को कभी दर्द दो जो तुम्हे प्यार करे .
क्यूंकि तुम दुनिया के लिए कोई एक हो ,
पर किसी एक के लिए सारी दुनिया हो.

फूल से किसी ने पूछा तुने खुशबू दी तुझे क्या मिला
फूल ने कहा लेना और देना तो व्यापर है
जो दे कर कुछ मांगे वो प्यार है.

किसी एक से करो प्यार इतना की किसी और से प्यार करने की गुन्जाय्स रहे,
वो मुस्करा के देखे कर एक बार
तो जिंदगी से फिर कोई ख्वाइस रहे.

सोमवार, 30 मई 2011

कभी सुबह मिले …..

कभी सुबह मिले.
कभी शाम मिले.
घंटों-घंटों हम.
दिन-रात मिले.
न गले लगे, न हाथ छुआ.
और दिल?.
दिल कुछ इस तरह से चाक हुआ.
कि तर्क़ दूँ मैं सारी कायनात.
'गर फिर से वो लम्हात मिलें.
कभी सुबह मिले …..

कभी हाट में.
कभी पेड़ तले.
हम साथ हँसे.
हम साथ चले.
लब पर आ-आ के रूकती बात रही.
और दिल?.
दिल ने दिल से दिल की न बात कही.
मैं रख दूँ खोल के दिल अपना.
'गर कहने को फिर वो बात मिले.
कभी सुबह मिले …..

कभी धूप में.
कभी छाँव में.
हम घूम-घूम के.
सारे गाँव में.
हँसते-हँसाते थे चार सू.
और दिल?.
दिल में आज भी है उनकी आरज़ू.
मैं मान लूँ हर एक बात को.
'गर लौट के फिर वो आज मिलें.
कभी सुबह मिले …..

रविवार, 29 मई 2011

मैं कब पापा जितना बड़ा होऊंगा

जब छोटा था तो
माँ से अक्सर एक ही सवाल पूछता था
मैं कब पापा जितना बड़ा होऊंगा
माँ हंसकर उस बात को टाल जाती थी
फिर जब भी वक़्त मिलता था
तो आईने के सामने
खड़े होकर मैं बड़े होने की
practice भी करता था
अब जब बड़ा हो गया हूँ तो
वापिस उस बचपन को ढूढ़ता हूँ
और अक्सर अपनी उम्र
भूलने की कोशिश भी करता हूँ
लेकिन जब जब भी
आईने के सामने आता हूँ
मेरे सिर के काले बालो
से निकलकर कुछ सफ़ेद
मेरी तरफ देखकर मुझे
मेरी उम्र मुझे बता जाते है ....

शनिवार, 28 मई 2011

सच्ची डरावनी कहानी (कमज़ोर दिल वाले न पढ़ें)

ये कोई 1 साल पहले की

बात है.......

एक व्यक्ति को मुंबई से

पुणे जाना था... परन्तु

उसने नए बने एक्सप्रेस

वे की जगह पुराने रस्ते

से जाने का फैसला किया

ताकि वो रस्ते में पड़ने

वाले सुन्दर नजरों को

देख सके.

पर जब वो घाट के पास

पहुंचा तो उसके साथ कुछ

ऐसा हुआ जो नहीं होना

चाहिए था... उसकी कार बीच

रस्ते में ही ख़राब हो

गयी और आस पास मीलों दूर

तक कोई आबादी नहीं थी.

कोई और रास्ता न होने की

वजह से उसने फैसला किया

की वो पैदल ही जायेगा और

इस उम्मीद में की पास के

सहर तक कोई लिफ्ट मिल

जायेगी वो रोड के

किनारे किनारे पैदल

चलने लगा. तब तक रात हो

चुकी थी और बारिश भी

होने लगी और वो जल्दी ही

पूरी तरह से गीला हो गया

और कपने लगा.

पूरी रात ऐसे ही गुजर

गयी पर उस रस्ते से कोई

गाड़ी नहीं गुजरी और

बारिश इतनी तेज़ हो

चुकी थी की उसे अपने से

महज कुछ फीट दूर तक ही

दिख रहा था.

तभी उसे एक कार आती हुई

दिखाई दी और वो उससे

थोडी दूरी पर रुक गयी और

उसने बिना कुछ सोचे

समझे कार का दरवाजा

खोला और उसमे जाके बेठ

गया.

वो पिछली सीट पर बेठा था

और वो आगे आया उस इंसान

को धन्यवाद देने के लिए

जिसने उसे बचाया था, पर

वो यह देख कर चोंक जाता

है की ड्राईवर की सीट पर

कोई भी नहीं था.

हालाँकि आगे वाली सीट

पर कोई नहीं था और न ही

इंजन के चलने की कोई

आवाज आ रही थी फिर भी कार

धीरे धीरे चलनी शुरू हो

जाती है. वह व्यक्ति फिर

रोड की तरफ देखता है की

उसे एक तेज़ मोड़ दिखाई

देता है आर नीचे एक गहरी

घाई.

वो ये देख कर बहुत ही डर

जाता है और भगवन से अपनी

जिंदगी बचने के लिए

प्राथना करने लगता है.

पर जैसे ही वो मोड़ पास आता है

एक हाथ कहीं से

स्टीरिंग वील पर आता है

और कार को मोड़ देता है

और कार मोड़ से गुजर जाती है.

और फिर से वो

हाथ गायब हो जाती है और

कार फिर से बिना किसी

ड्राईवर के चलने लगती

है.

ऐसे ही बार बार जब भी वो

किसी मोड़ के पास आते एक

हाथ आता और कार को घुमा

देता और वो आराम से उस

मोड़ से निकल जाते.

आखिरकार उस व्यक्ति को

सामने की तरफ रौशनी

दिखाई देती है और वो कार

से उतर कर उस रौशनी की

तरफ भागने लगता है. और

पहुँच के देखता है की वो

एक गाँव है और वो एक ढाबे

पे पहुँचता है.

वो वहां पे पानी मांगता

है और आराम करने लगता

है.

तब वो वहां मोजूद सभी

लोगो को अपने उस डरावने

अनुभव के बारे में सभी

कोई बताता है.

ढाबे में एक घुप

सन्नाटा छा जाता है

जैसे ही वो बोलना बंद

करता है.

और तभी संता बंता ढाबे

में प्रवेश करते है.

संता उसी व्यक्ति की

तरफ इशारा करता है और

कहता है - "देख बंता यही

वो इंसान है जो हमारी

कार में बेठ गया था जब हम

उसे धक्का लगा रहे थे

एक डरावना चुटकला.

यह एक डरावना चुटकला है. कृपया कर कमजोर दिल वालो से प्रार्थना है की वो इसे ना पढ़े.
रात बहुत हो गई थी. सड़क भी सुनसान सी ही थी. इस पर बरसात ने माहौल को और अधिक डरावना कर दिया था. बावजूद इसके एक बुढ़ा आदमी एक सड़क के किनारे अपनी किताबे बेचने की स्टाल लगा कर बैठा था. बेचारा करता भी क्या. इतनी बरसात में कहाँ जाता. इतने में दूर से एक गाड़ी की लाईट नजर आई. उसके चेहरे पर
हलकी मुस्कान दौड़ गई.

गाड़ी उसकी स्टाल के पास आकर ही रुकी. गाड़ी में बैठे-बैठे आदमी ने एक किताब उठाई और बूढ़े आदमी को 300 रूपए दे दिए. लिफाफे में किताब डाल कर बूढ़े आदमी ने गाड़ी वाले को देते हुए कहा की जब तक कोई मुसीबत ना आये किताब का आखिरी पेज खोल कर मत देखना. आदमी ने पूरी किताब पढ़ डाली लेकिन कभी आखरी पेज खोल कर नहीं देखा.

एक दिन उससे रहा नहीं गया और आखरी पेज खोल कर देख लिया. पेज पर नजर पड़ते ही उसकी मौत हो गई.

आखरी पेज पर लिखा था...

MRP: 30/-

शुक्रवार, 27 मई 2011

अगले जनम मोहे तिलचट्टा कीजौ

फाटक बाबू और खदेरन एक संत का व्याख्यान सुन कर घर लौट रहे थे। रास्ते में उस सभा में दिए गए आख्यान और उपदेश, जो उनके दिमाग पर अब भी छाया हुआ था, की चर्चा भी वे आपसे में करते जा रहे थे। संत महोदय ने मनुष्य के कर्म और अगले जन्म से संबंधित विषय पर बहुत ही रोचक बातें बताई थी।

फाटक बाबू ने खदेरन से पूछ दिया, “खदेरन! तुम अगले जन्म में क्या बनना पसन्द करोगे?”

खदेरन ने जवाब दिया, “फाटक बाबू! मैं तो कौकरॉच बनना चाहूंगा।”

फाटक बाबू को खदेरन के जवाब से आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, “क्यों?”

खदेरन ने बताया, “फाटक बाबू, मेरी पत्नी फुलमतिया जी सिर्फ़ कौकरॉच से ही डरती है!”

जनता ने जो दिया समर्थन,

अन्ना ने जब त्यागा अन्न,
पूरा देश रह गया सन्न ।

जनता ने जो दिया समर्थन,
भ्रष्टाचारी करें कीर्तन।

सत्ता हिल गई, नेता हिल गए,
राजनीति के अभिनेता हिल गए।

जनमानस में भर गया जोश,
देशद्रोहियों के उड़ गए होश।

जागृति की अलख जगा दी
गांधीजी की याद दिला दी।

चलती रहें जो ऐसी तदबीर,
देश की फिर बदले तकदीर।

गुरुवार, 19 मई 2011

सुखी कौन है ?



इस नश्वर संसार में सुख नहीं है . सुख पाने में नहीं है - सुख देने में है .

मनुष्य के दुःख का कारण उसकी रूपमती इच्छाएं हैं -इन्हें जितनी

ज्यादा सीमित करेंगे उतना ही सुख की अनुभूति होगी . इच्छाएं ही

दुःख का मूल कारण हैं, यदि पूरी नहीं होंगी तो मन में कसक रहेगी

और यदि वे पूरी हो भी जाएँ तो भी क्षणिक सुख की ही प्राप्ति हो सकती है ,

और तुरंत बाद उनका होना भी दुखदायी लगने लगेगा .अपने व्यक्तिगत

जीवन में हम इसे अक्सर महसूस करते हैं . इस संदर्भ में एक कहानी

का उल्लेख कर रहा हूँ संभव है किसी सज्जन को सोचने की एक नयी

दिशा मिल जाए.


" एक मजदूर घर से करीब ५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित फैक्ट्री में

काम करने रोजाना पैदल जाया करता था . साईकिल से जाने वालो को

देख कर अक्सर उसके मन में इर्ष्या होती थी - की देखो ये कितने सुखी हैं .


समय ने करवट बदली , उसके वेतन में कुछ वृद्धि हुई तो उसने एक

साईकिल खरीद ली . अब वो रोजाना साईकिल से फैक्ट्री जाने लगा .लेकिन

रास्ते में स्कूटर पर जाने वालों को वो बड़ी हसरत भरी निगाह से देखता

और सोचता ये लोग कितने सुखी हैं , बिना श्रम के कैसे आसानी से कितनी

जल्दी पहुँच जाते हैं . संयोग की बात की उसकी तरक्की हो गयी और उसे

सुपरवाईज़र बना दिया गया . उसने एक स्कूटर खरीद लिया , और अब वो

रोज फैक्ट्री स्कूटर से जाने लगा . अब रास्ते से गुजरने वाली कारों को देख

कर उसे बड़ी जलन होती -सोचता देखो कैसी शान से जातें हैं.


शायद ईश्वर ने उसकी इच्छा जान ली और थोड़े समय बाद ही उसे शिफ्ट

इंचार्ज बना दिया गया . अब उसने एक कार खरीद ली और रोजाना कार

से फैक्ट्री जाने लगा . लेकिन कुछ दिनों बाद ही वह बीमार पड़ गया.

डाक्टर ने उसे दवाइयां दी और कहा की उसे कम से कम ४-५ किलोमीटर

रोज पैदल चलना चाहिए , और उसे ठीक होने के लिए ऐसा करना अति

आवश्यक है .


अब घर में साईकिल ,स्कूटर ,कार के होते हुए भी वो रोजाना पैदल ही

फैक्टरी आता जाता है ."

इस डिब्बे में जगह नहीं है

एक छोटा सा उदाहरण देना चाहूँगा की

एक ट्रेन प्लेटफार्म पर आती है . ट्रेन के

अंदर और प्लेटफार्म पर बहूत भीड़ है .

अंदर बैठे लोग बाहर प्लेटफार्म पर

खड़े लोगों से ही कह रहें हैं ' अरे आगे

जाओ इस डिब्बे में जगह नहीं है ' खैर

जैसे तैसे एक दो मुसाफिर डिब्बे में जबरन

चढ़ जाते हैं . ट्रेन चलती है अगले स्टेशन पर

फिर वही नजारा है . डिब्बे के अंदर बैठे लोग कह

रहें है ' अरे आगे जाओ इस डिब्बे में जगह

नहीं है ' ऐसा कहने वालों में वे मुसाफिर

भी शामिल हैं जो अभी पिछले स्टेसन से

ही इस डिब्बे में चढ़े थे .