फाटक बाबू और खदेरन एक संत का व्याख्यान सुन कर घर लौट रहे थे। रास्ते में उस सभा में दिए गए आख्यान और उपदेश, जो उनके दिमाग पर अब भी छाया हुआ था, की चर्चा भी वे आपसे में करते जा रहे थे। संत महोदय ने मनुष्य के कर्म और अगले जन्म से संबंधित विषय पर बहुत ही रोचक बातें बताई थी।
फाटक बाबू ने खदेरन से पूछ दिया, “खदेरन! तुम अगले जन्म में क्या बनना पसन्द करोगे?”
खदेरन ने जवाब दिया, “फाटक बाबू! मैं तो कौकरॉच बनना चाहूंगा।”
फाटक बाबू को खदेरन के जवाब से आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, “क्यों?”
खदेरन ने बताया, “फाटक बाबू, मेरी पत्नी फुलमतिया जी सिर्फ़ कौकरॉच से ही डरती है!”
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