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सोमवार, 30 मई 2011

कभी सुबह मिले …..

कभी सुबह मिले.
कभी शाम मिले.
घंटों-घंटों हम.
दिन-रात मिले.
न गले लगे, न हाथ छुआ.
और दिल?.
दिल कुछ इस तरह से चाक हुआ.
कि तर्क़ दूँ मैं सारी कायनात.
'गर फिर से वो लम्हात मिलें.
कभी सुबह मिले …..

कभी हाट में.
कभी पेड़ तले.
हम साथ हँसे.
हम साथ चले.
लब पर आ-आ के रूकती बात रही.
और दिल?.
दिल ने दिल से दिल की न बात कही.
मैं रख दूँ खोल के दिल अपना.
'गर कहने को फिर वो बात मिले.
कभी सुबह मिले …..

कभी धूप में.
कभी छाँव में.
हम घूम-घूम के.
सारे गाँव में.
हँसते-हँसाते थे चार सू.
और दिल?.
दिल में आज भी है उनकी आरज़ू.
मैं मान लूँ हर एक बात को.
'गर लौट के फिर वो आज मिलें.
कभी सुबह मिले …..

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