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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

LANCO के बारे में....

LANCO का फुल फॉर्म क्या है..??

अब आप कहेंगे कि LANCO का क्या फुल फॉर्म होना..? LANCO मतलब LANCO इंफ्राटेक, जिसका दिल्ली गुड़गांव के रजोकरी बॉर्डर पर उद्योग विहार की पॉश जमीन पर ऑफिस है।

LANCO का फुल फॉर्म है, 'L'agadapati 'A'marappa 'N'aidu and 'CO'mpany. अब ये एल. अमरप्पा नायडू कौन है जिनके नाम के शब्दों से ये कंपनी बनी है..? तो साहब, ये लगदापति अमरप्पा नायडू, L. राजगोपाल के बड़े पिताजी है (पिताजी के बड़े भाई), जिसके नाम पर इनके भतीजे राजगोपाल ने वर्ष  1991 में LANCO शुरू की। अब आप पूछेंगे ये राजगोपाल कौन है..??

लगदापति (L) राजगोपाल तत्कालीन संयुक्त आंध्रप्रदेश से एक उद्योगपति और कांग्रेस नेता है, जो मौन-मोहन सिंह के UPA2 में विजयवाड़ा से कांग्रेस सांसद भी रह चुके हैं। राजगोपाल के पास कंपनी के मेजर शेयरहोल्डिंग रही, जबकि उनके भाई  मधुसूदन राव कंपनी के चेयरमैन बने। इस पूरी कहानी में याद रखियेगा कि एक जमाने में आंध्रप्रदेश में कांग्रेस का दबदबा होता था। तब YSR रेड्डी कांग्रेस की तरफ से आंध्र के मुख्यमंत्री थे, और तेलुगुदेशम के चंद्रबाबू नायडू चुनाव हारे विपक्ष में बैठे थे। फिर तेलंगाना वाला मूवमेंट हुआ तो राजगोपाल ने राज्य के विभाजन के विरोध में फरवरी14 में संसद से इस्तीफा दे दिया। ये बात और है कि तब तक LANCO को सरकारी बैंकों से 44,000 करोड़ का कर्जा मिल चुका था। जी हां, 44,000 करोड़।

सरकार बदली, चौकीदार आया। उसने कहा, पैसा लौटाना पड़ेगा, नहीं तो हलक में हाथ डाल के निकाल लूंगा। राजगोपाल और मधुसूदन राव को लगा, सेटिंग हो जाएगी, एक जमाने में तूती बोलती थी। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। Insolvency and Bankruptcy Code आया, और सबसे पहले 12 बड़े कॉरपोरेट लोन की बात आई तो राजगोपाल की कंपनी LANCO उसमें से एक थी। आप आज अगर कंपनी की वेबसाइट पर जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि जो 44,000 करोड़ बकाया है बैंकों का, उसमें से मोटामोटी 38,000 करोड़ unsecured है, मतलब बिना किसी संपत्ति, बिना किसी गारंटी दिया हुआ है।
एक 10 लाख के होमलोन में भी सारी जमीन के कागज बैंकों के पास रहते हैं, यहां 2004 से 2014 तक lanco को 40,000 करोड़ किसी asset-backed ना होने के बावजूद मिल गए। अब कैसे मिले, ये तो वो बैंक के अधिकारी ही बता पाएंगे जिनको गूंगे प्रधानमंत्री के बोलते मिनिस्टरों से फ़ोन आये। और आज उसी कंपनी का 72 रुपये का शेयर 30 पैसे का हो गया है।

आज की तारीख में LANCO liquidation में हैं, और माल्या, चौकसी की क्या बात करें, ये घर में बैठे 'राज'-गोपालों का पैसा वापस लाना भी मोदी की ही जिम्मेदारी है। बाकी, थोड़ा सा google को कष्ट देंगे तो आपको ये भी पता चल जाएगा कि कैसे Air India के सारे प्रॉफिटेबल रूट और टाइमिंग धीरे धीरे माल्या की किंगफिशर को ट्रांसफर होते गए। Air India बर्बाद होती रही, और माल्या उस पैसे से लंदन में संपत्ति खरीद कैलेंडर बनाता रहा। थोड़ा और गूगलेंगे तो माल्या के पिछली सरकार के उड्डयन मंत्री प्रफ्फुल पटेल के साथ तस्वीर भी मिलेगी, जिसमें सिर्फ 3 लोग - पटेल, शरद पंवार और विदेश मंत्री SM कृष्णा - के लिए एक बड़ा प्लेन चल रहा है, जो बाकी पूरा खाली है। किस तरह से बैंकों का पैसा चमचों ने चोरी का पहला भोग परिवार को चढ़ाते हुए जबरदस्त लूट मचाई,  थोड़ा दिमाग लगाने पर सोचने से सिहरन उठ जाती है। आप कोई भी घोटाला उठाएंगे, कहीं ना कहीं कांग्रेस का 'हाथ' दिख ही जायेगा - LANCO इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।

ऐसे में जब खानदानी चोर 'चौकीदार चोर है' का नारा देते हैं तो फिर भी समझ में आता है। यहां सोशल मीडिया पर जब परिवार के चरण-चाटुकारों को ये नारा लगाते देखता हूँ तो सोचता हूँ, इतनी नफरत के लिए कितनी शिद्दत से इन्होंने अपने ज़मीर को मारा होगा।

बाकी, आप सोचिएगा, क्या चौकीदार चोर है..

सोमवार, 24 सितंबर 2018

रुपया / डॉलर

        आज 1 डॉलर की कीमत लगभग 70 रुपए से भी अधिक है, लेकिन अगर में कहूँ की एक समय एक रुपए की कीमत 13 डॉलर के बराबर हुवा करती थी तो शायद कुछ लोगों को यकीन नही होगा,

        भारत में करंसी का इतिहास 2500 साल पुराना हैं। बात सन 1917 की है जब 1 रुपया 13 डॉलर के बराबर हुआ करता था। फिर 1947 में भारत आजाद हुआ, 1 रूपया 1 डॉलर कर दिया गया। आजादी के वक्‍त देश पर कोई कर्ज नहीं था। 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना के लिए सरकार ने कर्ज लिया। 1948 से 1966 के बीच एक डॉलर 4.‍66 रूपए के आसपास रहा। 1975 में एक डॉलर 8.39 रूपए, 1985 में एक डॉलर 12 रूपए।
1991 में बेतहाशा मंहगाई, विकास दर कम होना और फॉरेन रिर्जव कम होने से एक डॉलर 17.90 रूपए पर पहुंच गया।1993 में एक डॉलर 31.37 रूपए। 2000-2010 के दौरान यह एक डॉलर की कीमत 40-50 रूपए तक पहुंच गई। 2013 में तो यह हद पार हो गई और यही एक डॉलर की कीमत लगभग 70रूपए तक पहुंच गई।

        मेरा देश महान था, और सोने की चिड़या भी था लेकिन आज सब महँगाई का रोना रोते है उसकी वजह नही जानते, किसी कांग्रेसी से पूछो की जब देश आजाद हुआ था तब 1रुपये और डॉलर बराबर थे उसके बाद कांग्रेस  नें विकास की ऐसी लड़ी लगाई की आज डॉलर रुपए के सर पे जाके बैठा है, कांग्रेस के पास मौका भी था दस्तूर भी लेकिन देश का विकास नही किया किया तो सिर्फ विनाश, वरना नोटेबन्दी जैसा कदम अगर कांग्रेस ने पहले उठा लिया होता तो आज भ्रस्टाचार पर लगाम कस ली होती,

      कर्जा लेते रहे, अपनी जेब भरते रहे, विकास के नाम पर जनता का मूर्ख  बनाते रहे, और अपने कर्मो का फल आज दिख रहा है तो आरोप मोदी पर लगाते है, में एक सामान्य इंसान हु, और राजनीति करनी मुझे नही आती और कांग्रेस से मुझे सख्त नफरत है और उसका पक्ष लेने वाले के में हमेसा खिलाफ रहूंगा क्योंकि मेरे पास कांग्रेस से नफरत के एक नही हज़ार वजह है।

रविवार, 16 सितंबर 2018

तलाक.....


राधिका और नवीन को आज तलाक के कागज मिल गए थे। दोनो साथ ही कोर्ट से बाहर निकले। दोनो के परिजन साथ थे और उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे। चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला हो गया था।
दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ मे छः साल ही रह पाए थे। चार साल तो तलाक की कार्यवाही में लग गए। राधिका के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी नवीन के घर से लेना था और नवीन के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो राधिका से लेने थे।

साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि नवीन  दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त राधिका को चुकाएगा। राधिका और नवीन दोनो एक ही टेम्पो में बैठकर नवीन के घर पहुंचे।  दहेज में दिए समान की निशानदेही राधिका को करनी थी। इसलिए चार वर्ष बाद ससुराल जा रही थी। आखरी बार बस उसके बाद कभी नही आना था उधर।
सभी परिजन अपने अपने घर जा चुके थे। बस तीन प्राणी बचे थे।नवीन, राधिका और राधिका की माता जी।

नवीन घर मे अकेला ही रहता था।  मां-बाप और भाई आज भी गांव में ही रहते हैं। राधिका और नवीन का इकलौता बेटा जो अभी सात वर्ष का है कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक वह राधिका के पास ही रहेगा। नवीन महीने में एक बार उससे मिल सकता है।

घर मे परिवेश करते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गई। कितनी मेहनत से सजाया था इसको राधिका ने। एक एक चीज में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना था।एक एक ईंट से  धीरे धीरे बनते घरोंदे को पूरा होते देखा था उसने। सपनो का घर था उसका। कितनी शिद्दत से नवीन ने उसके सपने को पूरा किया था। नवीन थकाहारा सा सोफे पर पसर गया। बोला "ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नही रोकूंगा" राधिका ने अब गौर से नवीन को देखा। चार साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी झांकने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई।

वह स्टोर रूम की तरफ बढ़ी जहाँ उसके दहेज का अधिकतर  समान पड़ा था। सामान ओल्ड फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया था। मिला भी कितना था उसको दहेज। प्रेम विवाह था दोनो का। घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे।
प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की। क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है।
बस एक बार पीकर बहक गया था नवीन। हाथ उठा बैठा था उसपर। बस वो गुस्से में मायके चली गई थी।
फिर चला था लगाने सिखाने का दौर । इधर नवीन के भाई भाभी और उधर राधिका की माँ। नोबत कोर्ट तक जा पहुंची और तलाक हो गया।

न राधिका लौटी और न नवीन लाने गया।

राधिका की माँ बोली" कहाँ है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता। बेच दिया होगा इस शराबी ने ?"  "चुप रहो माँ"
राधिका को न जाने क्यों नवीन को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा।

फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट में मिलाया गया।  बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया। राधिका ने सिर्फ अपना सामान लिया नवीन के समान को छुवा भी नही।  फिर राधिका ने नवीन को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया।  नवीन ने बैग वापस राधिका को दे दिया " रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में ।" गहनों की किम्मत 15 लाख से कम नही थी।  "क्यूँ, कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था"

"कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, राधिका। वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है।" सुनकर राधिका की माँ ने नाक भों चढ़ाई।

"नही चाहिए। वो दस लाख भी नही चाहिए" "क्यूँ?" कहकर नवीन सोफे से खड़ा हो गया। "बस यूँ ही" राधिका ने मुँह फेर लिया। "इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ,,, काम आएगें।" इतना कह कर नवीन ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था।

राधिका की माता जी गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी। राधिका को मौका मिल गया। वो नवीन के पीछे उस कमरे में चली गई। वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर।  जैसे भीतर के सैलाब को दबाने दबाने की जद्दोजहद कर रहा हो। राधिका ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था। आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला।

मग़र ज्यादा भावुक नही हुई। सधे अंदाज में बोली "इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक?"

"मैंने नही तलाक तुमने दिया"  "दस्तखत तो तुमने भी किए" "माफी नही माँग सकते थे?" "मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया।" "घर भी आ सकते थे"?

"हिम्मत नही थी?"  राधिका की माँ आ गई। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई। "अब क्यों मुँह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया"

मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी।  राधिका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी। जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के उसने और नवीन ने वो सोफा खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था।" फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई। कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी। उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई।

घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया। नवीन बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आई उस पर। मग़र  वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है।

उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। अस्त व्यस्त हो गया है पूरा कमरा। कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं। कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से? फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वो नवीन से लिपट कर मुस्करा रही थी। कितने सुनहरे दिन थे वो।

इतने में माँ फिर आ गई। हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई।

बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। राधिका सुन सी बैठी थी। नवीन गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया।

अचानक नवीन कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया।
बोला--" मत जाओ,,, माफ कर दो" शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए। राधिका ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया ।

और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई नवीन से। साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे।

दूर खड़ी राधिका की माँ समझ गई कि कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही।
काश उनको पहले मिलने दिया होता?

रविवार, 17 जून 2018

हमने.....


हमने उन यादों को संभाल के रखा है,
जो हमारे जीने का सहारा हुवा करते थे

बुधवार, 6 जून 2018

बद्दुआ.....

आज बद्दुआ देखकर वह मुझे छोड़ गई
अब अकेले रहना यह कह कर छोड़ गई

मंगलवार, 5 जून 2018

पर्यावरण दिवस पर....

5 जून पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.....

         मेरा जन्म महाराष्ट्र की एक विशाल हरी भरी नर्सरी में हुआ। इस नर्सरी का माली मेरी बहुत खुशामद करता था।सुबह शाम पानी देना जब आवश्यक हो जैविक खाद देशी खाद का पोषण मिलता था। शेशवस्था में भरपूर पोषण मिलने से में काफी तंदुरुस्त हो चुका था। समय तेजी से गुजरने लगा कि अचानक जीवन मे ऐसा तूफान आया कि में और मेरे जैसे करोड़ों पौधों को नाशिक की संस्थाओं ने ख़रीद लिया और 5 जुलाई 2015 को माँ गोदावरी के अंचल में बसे नाशिक जिलों में सभी जगह भेजे गए। और यही वो तारीख थी कि सांसद, विधायक, नगरसेवक बहुत सारी संस्था के पदाधिकारियों ने एक साथ मिलकर 12 घण्टे में पौधे लगाने का  एक नया रिकार्ड तो बना लिया पर मुझे और मेरे करोड़ों भाइयों को लावारिस कर दिया। हम लोगों की देखभाल की कोई विशेष योजना न होना और प्रदेश में व्याप्त जल संकट से मेरे लाखों भाई दम तोड़ चुके हैं और बाकी कुछ को छोड़कर जो किसी खास नेता मंत्री द्वारा स्थापित किये गये थे अंतिम सांसे गिन रहे हैं।मानसून आने में काफी समय है हो सकता है ये मेरी आत्मकथा कब मेरी अंतिम कथा बन जाये इसलिए हो सके तो आप सब खुद ही मेरे भाई बहनों को बचाना जिससे आपकी आने वाली पीढ़ी का जीवन मंगलमय हो।

जय हिंद जय भारत।

( पेड़ लगाने के पश्चात 2 वर्ष तक देखभाल की जिम्मेदारी भी लें। श्री विश्वकर्मा चैरिटेबल ट्रस्ट के तरफ से लगाये गए सभी वृक्षों की देखभाल हर हप्ते किया जाता है। )

शनिवार, 12 मई 2018

परोपकार.....

एक आदमी ने दुकानदार से पूछा - केले और सेब क्या भाव लगाऐ हैं ? केले 20 रु.दर्जन और सेब 100 रु. किलो । उसी समय एक गरीब सी औरत दुकान में आयी और बोली मुझे एक किलो सेब और एक दर्जन केले चाहिये - क्या भाव है भैया ? दुकानदार: केले 5 रु दर्जन और सेब 25 रु किलो। औरत ने कहा जल्दी से दे दीजिये । दुकान में पहले से मौजूद ग्राहक ने खा जाने वाली निगाहों से घूरकर दुकानदार को देखा । इससे पहले कि वो कुछ कहता - दुकानदार ने ग्राहक को इशारा करते हुये थोड़ा सा इंतजार करने को कहा।

औरत खुशी खुशी खरीदारी करके दुकान से निकलते हुये बड़बड़ाई - हे भगवान  तेरा लाख- लाख शुक्र है , मेरे बच्चे फलों को खाकर बहुत खुश होंगे । औरत के जाने के बाद दुकानदार ने पहले से मौजूद ग्राहक की तरफ देखते हुये कहा : ईश्वर गवाह है भाई साहब ! मैंने आपको कोई धोखा देने की कोशिश नहीं की यह विधवा महिला है जो चार अनाथ बच्चों की मां है । किसी से भी किसी तरह की मदद लेने को तैयार नहीं है। मैंने कई बार कोशिश की है और हर बार नाकामी मिली है।तब मुझे यही तरीकीब सूझी है कि जब कभी ये आए तो  मै उसे कम से कम दाम लगाकर चीज़े दे दूँ। मैं यह चाहता हूँ कि उसका भरम बना रहे और उसे लगे कि वह किसी की मोहताज नहीं है। मैं इस तरह भगवान के बन्दों की पूजा कर लेता हूँ ।

थोड़ा रूक कर दुकानदार बोला : यह औरत हफ्ते में एक बार आती है। भगवान गवाह है जिस दिन यह आ जाती है उस दिन मेरी बिक्री बढ़ जाती है और उस दिन परमात्मा मुझपर मेहरबान होजाता है । ग्राहक की आंखों में आंसू आ गए, उसने आगे बढकर दुकानदार को गले लगा लिया और बिना किसी शिकायत के अपना सौदा खरीदकर खुशी खुशी चला गया ।

कहानी का मर्म  :-

खुशी अगर बांटना चाहो तो तरीका भी मिल जाता है l

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

वक्त को बढ़ते देखा…

कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है जरुरत की सभी चीजें हमारी उम्र के हिसाब से शुरू होती चली गईं, हमने सिर्फ १९वी सदी को २०वीं सदी में बदलते ही नहीं देखा है बल्कि इस समय में होने वाले बदलावों को खुले दिल से अपनाया भी है....

हमारा सफ़र टीवी के एकमात्र चैनल डीडी १ से शुरू होकर आज डिश टीवी के ५०० चैनलों तक पंहुचा है,......
अपट्रान की ब्लैक एन्ड व्हाईट टीवी का सफ़र आज स्मार्ट टीवी तक पहुच गया है .....
मोबाइल में नोकिया ११०० से शुरू होकर आज एक से बढ़कर एक स्मार्टफोन्स तक पहुच गया है, .......
क्रिकेट मैच राहुल द्रविड़ की टेस्ट पारी से शुरू होकर युवी के १२ गेंद में हाफसेंचुरी तक पहुँच गयी है, .....
हमने टेप वाले कैसेट से लेकर वी सी आर, वाकमैन, सीडी, डीवीडी , पेन ड्राईव से होते हुए मेमोरी कार्ड का सफ़र तय किया है ....

कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि हमने वक्त को बदलते हुए देखा … वक्त को बढ़ते देखा… वक्त को खुद के साथ जवान होते देखा और सिर्फ देखा ही नहीं है बल्कि दिल खोलकर जीया है ...!!

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

बन्द कर दो डाकखाने....

बन्द कर दो  डाकखाने

अब चिट्ठी नही आती

किसी के हाथ की खुश्बू

स्याही में नहीं आती

ख्वाबों और खयालों की

अब बारिश नही होती

संग जीने और मरने की

वो कसमे अब नही होती

भींगे लफ्ज की सिहरन

दिलों में अब नही होती

पन्नो में तड़फते अश्क़ की

अब बूंदें नहीं गिरती

वो मिलने की बिछड़ने की

तारीखें तय नही होती

गली में डाकिया आने की

अब खबरें नही होती

मैंने.....

एक ही दिन में कैसे पढ़ लोगे तुम मुझे......

मैंने ख़ुद को लिखने में ही कई साल लगायें हैं.....

निशब्द.....

कभी ख़ामोशी बोल गई,
  कभी शब्द नि:शब्द कर गए,

कभी कोई बात चुभ गई,
  कभी बात न होना चुभ गया!

गुरुवार, 8 मार्च 2018

अपने...

जीत लेते हैं हम मुहब्बत से गैरों का भी दिल
पर ये हुनर जाने क्यूँ अपनो पर चलता ही नहीं

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

रेड_ब्रिगेड...

रेड_ब्रिगेड


यातायात सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव सौहार्द को बनाये रखने के लिए श्री रविंद्र सिंघल जी (पुलिस कमिश्नर नाशिक) द्वारा "नाशिक मैराथन" का आयोजन १८ फ़रवरी २०१८ को नाशिक में किया गया। 
इस अवसर पर नाशिक जिले के साथ साथ महाराष्ट्र के अन्य जिलों से हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे। इस मौजूदगी में कई बड़ी बड़ी संस्थाओं के साथ साथ विद्यार्थी, युवक-युवति, महिलाएं, पुरुष, बुजुर्ग, दिव्यांग उपस्थित रहे तथा इस कार्यक्रम के सभी आयोजकों के साथ सभी दौड़ में भाग सहभागी होकर नाशिक मैराथन को सफल बनाया।

नाशिक मैराथन में श्री विश्वकर्मा चैरिटेबल ट्रस्ट - रेड ब्रिगेड का यह प्रथम वर्ष था लेकिन मुंबई मैराथन की ही भांति नाशिक की टीम पुरे जोश और पूरी तैयारी के साथ सुबह ४ बजे से ही कार्यक्रम स्थल पर मैजूद थी। यातायात सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव सौहार्द को बनाये रखने के लिए आयोजकों ने अलग अलग थीम (उद्देश्य से सम्बंधित विषय) रखा हुआ था। रेड ब्रिगेड नाशिक ने वाहतूक विभाग और आम जनता के बीच के सौहार्द को बनाये रखने के लिए वाहतूक से सम्बंधित विषयों को अपना थीम बनाया और उन विषयों को आम जनता तक पहुँचाने के लिए ३ किलोमीटर की थीम मैराथन में सहभागी भी हुए। नाशिक मैराथन की समाप्ति के साथ संस्था सफलता की एक और सीढ़ी चढ़ गयी तथा भविष्य में यातायात सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव सौहार्द को बनाये रखने का निर्णय और भी दृढ हुआ।






नाशिक मैराथन को सफल बनाने के लिए नाशिक से श्याम विश्वकर्मा, अशोक विश्वकर्मा, अरविन्द विश्वकर्मा, नंदकिशोर विश्वकर्मा, सुभाष विश्वकर्मा, प्रदीप विश्वकर्मा, राजेंद्र विश्वकर्मा, राजेंद्र भालेराव, प्रवीण शर्मा, राम वर्मा; मुंबई से रवि विश्वकर्मा, अनिल विश्वकर्मा, नन्दलाल विश्वकर्मा तथा स्थानीय चर्चित समाजसेवक श्री प्रकाश चौहान जी के साथ नाशिक की पूरी टीम मौजूद थी।





इस कार्यक्रम में सहभागिता के लिए रेड ब्रिगेड की पूरी टीम श्री रविंद्र सिंघल जी (पुलिस कमिश्नर नाशिक) का आभार व्यक्त करती है और उन्हें सहृदय धन्यवाद देती है कि, उन्होंने रेड ब्रिगेड नाशिक को इस कार्यक्रम में एक अच्छी उपस्थिति के साथ एक अच्छी प्रस्तुति का मौका दिया। साथ ही उन्होंने निरतंर ऐसे कार्यक्रमों में रेड ब्रिगेड के उपस्थिति की कामना करते हुए आशीर्वाद भी दिया।
#रेड_ब्रिगेड #Red_Brigade #Nashik_Marathon















बिटिया की बिदाई....


एक पिता का अपनी बिटिया की बिदाई के वक़्त का बहुत ही ख़ूबसूरत गाया हुआ गीत...