पृष्ठ

शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

वक़्त की तन्हाईयाँ.......

घबरा गए हैं वक़्त की तंहाइयों से हम |
उकता चुके हैं अपनी ही परछाइयों से हम ||
ये सोच कर ही खुद से मुख़ातिब रहे सदा |
क्या गुफ़्तुगू करेंगे तमाशाइयों से हम ||

बड़ा उदास है............

आज बड़ा उदास है मेरे दिल का मौसम
                                                          लगता है तू आज फिर मुझे याद करके रोया है

एक तेरी इस उदासी की वजह से मैंने अपना
                                                         चैन सुकून खोया और खुद को अश्क़ों से भिगोया है।

बुधवार, 12 नवंबर 2014

सन्नाटे में.....

"कब्र के सन्नाटे में से एक आवाज़ आयी,
किसी ने फूल रखके आंसूं की दो बूंद बहायी,
जब तक था जिंदा तब तक ठोकर खायी,
अब सो रहा हूं तो उसको मेरी याद आयी।"