पृष्ठ

शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

वक़्त की तन्हाईयाँ.......

घबरा गए हैं वक़्त की तंहाइयों से हम |
उकता चुके हैं अपनी ही परछाइयों से हम ||
ये सोच कर ही खुद से मुख़ातिब रहे सदा |
क्या गुफ़्तुगू करेंगे तमाशाइयों से हम ||

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you .............