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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

जिंदगी की तलाश.............


जिंदगी को जिंदगी की तलाश है,
इन आंखों में भी एक आस है।
कानों में भी कुछ सुनने की आस है,
हर किसी को किसी की तलाश है।
बुझते हुए दीये को रोशनी की तलाश है,
पतझड़ को सावन की प्यास है।
ज्येष्ठ के महीने को सावन से आस है,
जिंदगी को हमसे नहीं,
हमें जिंदगी से शिकायत है।
दगा करते हैं हमसे क्यों अपने,
जबकि हमें अपनों से ही आस है।
हमें खुशी की और खुशी को हमारी तलाश है,
जिंदगी को जिंदगी की तलाश है।

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

मुझे भी भ्रष्टाचार कर लेने दो..........


भाई साहब मैं मर जाऊंगा
मेरी धड़कनें रुक जायेंगी
सांस लेना मुश्किल हो जाएगा
मेरी बीवी घर से निकाल देगी
शान-सौकत सब चली जायेगी
किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहूँगा
मुझे करने दो, थोड़ा-बहुत ही सही
पर मुझे भ्रष्टाचार कर लेने दो........$...........
.........
मैं भ्रष्ट हूँ, भ्रष्टाचारी हूँ
इरादतन भ्रष्टाचार का आदि हो गया हूँ
आज तक एक भी ऐसा काम नहीं किया
जिसमे भ्रष्टाचार न किया हो
लोग मेरे नाम की मिसालें देते हैं
मुझे जीने दो, मेरी हाय मत लो
मेरी हाय तुम्हें चैन से बैठने नहीं देगी
क्यों, क्योंकि मैं एक ईमानदार भ्रष्टाचारी हूँ........$.........
.........
मेरी नस नस में भ्रष्टाचार दौड़ रहा है
दिल की धड़कनें भ्रष्टाचार से चल रही हैं
मान लो, मेरी बात मान लो
मुझे, सिर्फ मुझे, भ्रष्टाचार कर लेने दो
तुम हाय से बच जाओगे
और मेरी दुआएं भी मिलेंगी
यही मेरी पहली और अंतिम अर्जी है
क्यों, क्योंकि मैं एक ईमानदार भ्रष्टाचारी हूँ........$..........

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

गाँव मेरा मुझे याद आता है.............


भागता मैं रहा इस शहर से उस शहर ..............
पर कोई था ............................
जो मुझको बुलाता रहा.............
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा.............
एक प्यारा सा गाँव..
जिसमें पीपल की छाँव,
पेड़ जामुन के कुछ
खेत सरसों के कुछ
मीठा पानी कुँए का
मुझको बुलाता रहा .................
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा.............
धान की बालियाँ..............
महकी अमराइयाँ.............
माटी की सौंधी महक............$.............
बीता बचपन मुझे.............
बुलाता रहा ..................
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा..
माँ के आँचल का प्यार
दादी का दुलार................
वो सावन के झूले,
वो मीठी सी गुझिया
जिसमें कितना था लाड़...............
वो होली का फाग.................
रंग होली का मुझको बुलाता रहा .........
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा..............
गाँव मेरा मुझे बुलाता रहा.............
गाँव मेरा मुझे याद आता रहा.............


हौसला बुलंद कर ले..............

रख हौसला खुद पे.................
यकीं एकबार कर ले.............
सामने तेरे खुला आकाश है..........
जीतने की कोशिश तू बस एकबार कर ले ...........

रास्तें की ठोकरें क्या रोक पाएंगी तुझे?
चल उठ! अपनी जीत का आगाज कर दे.............
स्वप्न जो आधे-अधूरे थे कभी...............
चल जाग जा तू नींद से...............
आज अपनी जीत का ऐलान कर दे,...............


है कंटीली राह तो क्या?
हार कर रुकना नही है तुझे...........
चल उठ!जीत का सेहरा तू अपने नाम कर ले..........

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

दिमाक और मन..........


नयी इच्छाओँ ने जन्म लेना
शुरू कर दिया है...
ये कैसे हो गया?
अभी तो कई पुरानी इच्छाएँ,
अपने साकार होने की
प्रतीक्षा कर रही हैँ...
अब इतनी सारी इच्छाएँ
कैसे पूरी होँगी?
दिमाग ने सोचने से
मना कर दिया है,
कह रहा है- "मन से जन्मी इच्छाएँ,
मैँ नहीँ सुलझाऊँगा.."
और मन कह रहा है-
"फिक्र मत करना और सबकुछ
परिस्थितियोँ पर छोड़ देना,
क्योँकि ये परिस्थितियाँ
या तो इच्छाएँ पूरी कर देँगी
या फिर स्वत: ही उन्हेँ दबा देँगी.."
अब सोच रहा हूँ कि
क्योँ ना अपनी नयी-पुरानी इच्छाओँ के साथ,
करूँ परिस्थितियोँ का इंतजार...
आखिर,
परिस्थितियोँ पर ही तो निर्भर है,
इन इच्छाओँ की परिणीती............