नयी इच्छाओँ ने जन्म लेना
शुरू कर दिया है...
ये कैसे हो गया?
अभी तो कई पुरानी इच्छाएँ,
अपने साकार होने की
प्रतीक्षा कर रही हैँ...
अब इतनी सारी इच्छाएँ
कैसे पूरी होँगी?
दिमाग ने सोचने से
मना कर दिया है,
कह रहा है- "मन से जन्मी इच्छाएँ,
मैँ नहीँ सुलझाऊँगा.."
और मन कह रहा है-
"फिक्र मत करना और सबकुछ
परिस्थितियोँ पर छोड़ देना,
क्योँकि ये परिस्थितियाँ
या तो इच्छाएँ पूरी कर देँगी
या फिर स्वत: ही उन्हेँ दबा देँगी.."
अब सोच रहा हूँ कि
क्योँ ना अपनी नयी-पुरानी इच्छाओँ के साथ,
करूँ परिस्थितियोँ का इंतजार...
आखिर,
परिस्थितियोँ पर ही तो निर्भर है,
इन इच्छाओँ की परिणीती............
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