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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

थोड़ी सी.....

थोड़ी मुस्कराहट मुझे भी उधार दे दे ऐ जिंदगी
कुछ अपने भी आ रहे हैं मिलने की रस्म निभानी है.....

सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

ख़ामोशी.....

कहीं कुछ लफ्ज़ छुपे होते हैं खामोशी में भी...
कहीं लफ़्ज़ों में भी एक खामोशी सी होती है....

खामोशियाँ.....

आज मैंने एक नया सबक सीखा ज़िन्दगी में।
खामोशियाँ ही बेहतर हैं,
शब्दों से लोग रूठते बहुत है।।

रविवार, 25 अक्तूबर 2015

मेरी तलाश.....

मौत मेरी तलाश में दिन ,
रात यूँ ही भटकती रही.....
कभी उसे मेरा घर न मिला ,
तो कभी उसे मैं घर पर न मिला......

हम छोड़ चले है.....

हम छोड़ चले है महफ़िल को
याद आये कभी तो मत रोना
इस दिल को तसल्ली दे देना
घबराये कभी तो मत रोना

एक ख्वाब सा देखा था हमने
जब आँख खुली तो टूट गया
यह प्यार तुम्हें सपना बनकर
तडपाये कभी तो मत रोना

तुम मेरे ख़यालों में खोकर
बरबाद ना करना जीवन को
जब कोई सहेली बात तुम्हें
समझाये कभी तो मत रोना

जीवन के सफ़र में तनहाई
मुझको तो ना ज़िंदा छोड़ेगी
मरने की खबर ऐ जान-ए-जिगर
मिल जाये कभी तो मत रोना

फ़िल्म... जी चाहता है (1962)

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

नींद में.....

नींद में भी गिरते है मेरी आंखो से आसुँ,,
जब भी तुम ख्वाबो में मेरा हाथ छोड़ देती हो...♌

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

यूँ ना रूठे कोई.....

दुश्मन के सितम का खौफ नहीं हमको,
हम तो अपनों के रूठ जाने से डरते हैं…

रविवार, 6 सितंबर 2015

ऐ उम्र.....

ऐ उम्र...
कुछ कहा मैंने, शायद तूने सूना नहीं,
तू छीन सकती है बचपन मेरा,
पर मेरा बचपना नहीं ।

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

ये दिन.....

तुम्हें क्या पता हमने कैसे दिन गुजरे हैं
30 रुपये के दहीपुरी की जगह
10 रुपये के वडापाव खाके गुजारे हैं

सोमवार, 27 जुलाई 2015

भगवान तो है सिर्फ देखो.....

कौन कहता है की भगवान् नहीं हैं
सिर्फ देखने का नजरिया चाहिए
हमने तो एक इंसान में भगवान् देखा है
जिसने हर कदम पर मुझ गिरते हुवे को संभाला है।

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

ऊँचा पद.....









यूँ ही खीच तान में जब बिखर गया समाज
बड़ा पद हमको चाहिए पर करना नहीं कुछ काम
करना नहीं है कुछ काम पर पद बड़ा ही चाहिए....$.
झूठे दिखावे की चाह में बनगया और एक समाज
जब बनायेंगे एक नया समाज
उसमें ऊँचा होगा मेरा नाम....$.
एसा करते करते कितना बनेगा समाज
लोगों में भ्रम होगया अब कौन करेगा बढियां काम.....

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

हार गया हूँ.....

प्रियवर तुमसे हार गया हूं ,
नेह नदी के पार गया हूं ।
जब जब मैंने प्यार किया हैं ,
आशाओं से मार गया हूं ॥

देखा था मैंने इक सपना ,
मानूंगा तुमको मैं अपना ।
झंझावत में पड़ अपनों से ,
छुप कर तेरे द्वार गया हूं ।।

प्रियवर तुमसे हार गया हूं ,
नेह नदी के पार गया हूं ।

पागल मन को बहुत मनाया ,
फिर भी उसकी समझ न आया ।
मन मितवा से घड़ी मिलन की ,
बातों मे मैं टार गया हूं ।।

प्रियवर तुमसे हार गया हूं ,
नेह नदी के पार गया हूं ।।

आखें तुम बिन बनीं बदरिया ,
ढ़ूढ़ रहीं वो अपना संवरिया ।
मीन पिआसी जल मे रह कर ,
“प्रखर” विरह मे जार गया हूं ।।

प्रियवर तुमसे हार गया हूं ,
नेह नदी के पार गया हूं ।। ***

बुधवार, 8 जुलाई 2015

समय

🕛🕛🕛🕛🕛🕛🕛🕛
बहुत खुश किस्मत होते है वे लोग
जिन्हें "समय"
और "समझ" एक साथ मिलती है,
क्योंकी अक्सर "समय" पर "समझ" नही आती
और जब "समझ" आती है तो "समय" हात से
निकल जाता है...!!

गुरुवार, 28 मई 2015

ऐ मौत.....


बहुत रुलाया है इन बेवफा लोगो ने...
ऐ मौत...अगर तुम साथ दो,
तो सबको रुलाने का इरादा है मेरा....!

खामोश आँखें......


वो तो आँखें थी मेरी जो सब सच बयां कर गयी ।
वरना लफ्ज होते तो कब के मुकर गए होते....!

बुधवार, 20 मई 2015

आजकल राख से जल जाता हूँ......

रोज गिरता हूँ ,सँभल जाता हूँ.... वक्त के साथ बदल जाता हूँ.... भीड काफी है उनकी महेफिल में..... चल किसी ओर निकल जाता हूँ..... तुम बिना बात खौफ खाते हो..... जाने क्यों मैं भी दहल जाता हूँ ..... यार तुम कल सवाल कर लेना..... आज कुछ देर को टल जाता हूँ..... कल सुबह होगी लोग कहते हैं..... रोज सुनता हूँ बहल जाता हूँ..... आग तो आग है ,न जाने क्यों...... आजकल राख से जल जाता हूँ...... आजकल राख से जल जाता हूँ......

कैसे करूँ माँ बखान......



एक मित्र ने कहा ~ ~ माँ के बारे में .. करो कुछ बखान ..
पर क्यों लिखूँ .. और क्यों करूँ .. माँ की महिमा का बखान .. !!
इस पृथ्वी पर .. कौन है ऐसा .. जो है .. माँ की महानता से अंजान ..
और फिर माँ ~ माँ की ममता ~ तो होती है ~ इतनी महान ..
शब्दों में .. किया जा सके चित्रण .. शब्दों की कहाँ है इतनी उङान ..!!
हर प्राणी की .. जीवन से .. जगत से .. करवाती है जो पहचान ..
हर प्राणी के होने में .. अस्तित्व में .. जिसका होता है सर्वाधिक योगदान ..
हिमालय के उत्तुंग शिखर सी .. होती है उच्च .. जिस माँ की शान ..
छोटे छोटे पंख वाले शब्दों के पंछी .. कैसे करवाये उस शिखर का भान .. !!
वो माँ ~ जो अपनी संतान के मंगल का .. सदा चाहती है वरदान ..
वो माँ ~ जो अपनी ममता का आँचल .. सदा ही रखती है तान ..
वो माँ ~ जो संतान को .. अमृत भी पिलाये .. तो पहले लेती है छान ..
वो माँ ~ जो सभी संतानों को .. बिना फर्क के .. रखती है एक समान ..
वो माँ ~ जो अपना सुख चैन .. कर देती है संतान के लिये कुर्बान ..
वो माँ ~ जो सदा चाहती है .. कि उसकी संतान हो महान .. गुणवान .. !!
ओ माँ ~ मेरे हृदय में .. सदा ही है तेरा ~ ~ ईश्वर तुल्य स्थान ..
ओ माँ ~ तू ही बता .. मेरी लेखनी .. कैसे करे माँ की महिमा का बखान .. !!

कुछ देर रूको तो सही.....

कुछ देर रूको तो सही आ रहा हूँ मैं.....
बस एक नया रास्ता बना रहा हूँ मैं.....

एक पंख टूट गया था, तितली का.....
बस उसी पर मरहम लगा रहा हूँ मैं.....

रविवार, 17 मई 2015

बड़े सपने.....

बड़े सपनों को पाने वालेहर व्यक्ति को सफलता के कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है।"-
पहले लोग मजाक उड़ाऐंगे,-
फिर लोग साथ छोडेगे,-
फिर विरोध करेंगे,-
फिर वही लोग कहेंगे कि
हम तो पहले से ही जानते थे कि एक न एक दिन तुम कुछ बड़ा करोगे...

जंजीर क्या डराएँगी......

बिखरती इन हवाओं को कोई जंजीर क्या डराएँगी
जिसकी यारी हैं मौत से, उसे तकदीर क्या डराएँगी.....

वाकीफ हूँ मैं वक्त की इस बदलती फितरत से
ये धूप-छाँव सी जिंदगी की तस्वीर क्या डराएँगी......


रह रह के दिल.....


रह रह के दिल भी अब यहीं सोचता रहता हैं
क्या हैं जो दिन रात इसे बस नोचता रहता हैं।

खाली कुआ भी हैरानी से प्यासे को देखता हैं
जब उम्मीद लिए बाल्टी वो खींचता रहता हैं।

जुबान झूठी होकर भी आँखे जवाब दे देती हैं
अपने बारे में कोई, जब हाल पुंछता रहता हैं।

मुकद्दर जैसे हैवानियत का दूसरा नाम हैं
जो जख्मों को बार बार खरोचता रहता हैं।

शनिवार, 9 मई 2015

विश्वकर्मा वंशीय समाज जन जागृति अभियान २०१५

विश्वकर्मा वंशीय समाज जन जागृति अभियान २०१५
मित्रों ३ मई से लेकर ३ जून तक पुरे एक महीने तक श्री विश्वकर्मा रथ यात्रा ( महाराष्ट्र ) 30 जिला, 56 (तालूके) तहसील,100 शहर व 4000 किलो मीटर का यात्रा का आयोजन किया गया हैं अतः सभी समाज के बंधुओं और पुरे महाराष्ट्र मे कार्यरत संस्थाओं से नम्र निवेदन है की इस ऐतिहासिक रथयात्रा में लाखो की संख्या में पहुँच कर अपनी उपस्तिथि दर्ज कराएँ और कार्यक्रम को सफल बनाने मे अपना सहयोग प्रदान करे..........

रथ यात्रा प्रारम्भ :- 
03/05/15 परभणी
03/05/15 उस्मानाबाद
04/05/15 पंढरपुर
05/05/15 सातारा
06/05/15 इस्लामपुर
07/05/15 कोल्हापुर
08/05/15 अम्बोली
09/05/15 सिंधुदुर्ग
10/05/15 रत्नागिरी
11/05/15 महाड
12/05/15 पनवेल
12/05/15 मुंबई ( वाशी )
13/05/15 आळंदी ( पुणे )
14/05/15 संगमनेर
15/05/15 नाशिक
16/05/15 सटाणा
17/05/15 धुळे
18/05/15 जळगांव
19/05/15 अकोला
20/05/15 अमरावती
21 & 22/05/15 नागपूर
23/05/15 चंद्रपूर
24/05/15 वणी
25/05/15 उमरखेड
26/05/15 वाशिम
27/05/15 मोहकर
28/05/15 लोणार
29/05/15 मंठा
30/05/15 जालन
31/05/15 से 02/06/15 औरंगाबाद
03/06/15 वेरूळ यात्रा समापन और
श्री विश्वकर्मा जी की प्राण प्रतिष्ठा

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

अपना बेगाना.....

कौन अपना है कौन बेगाना है
बातों से ही समझ में आता है
किसने कितना जख्म दिया
उसके चेहरे पे नजर आता है

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

अपनी कीमत.......

अपनी कीमत उतनी रखिए,
जो अदा हो सके !
अगर अनमोल हो गए तो,
तन्हा हो जाओगे..!
खेल ताश का हो या ज़िन्दगी का,
अपना इक्का तभी दिखाना जब सामने
वाला बादशाह निकाले..

सब जल गया.....

आग लगी थी. . मेरे घर को 
किसी सच्चे
दोस्त ने पूछा -:"क्या बचा है. . ? ?".
मैने कहा -: "मैं बच गया हूँ. . ! !".
उसने गले लगाकर कहा -: 
"फिर जला ही क्या है।"

छोड़ दो..............

छोड़ दो साथ उनका
की वो अब पैसों से आमिर हो गए हैं

दोस्ती कभी भी बराबरी में होती है