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शुक्रवार, 29 जून 2012

कितना अच्छा होता की हम फिर से बच्चे बन जाते.......


कितना अच्छा होता की हम फिर से बच्चे बन जाते.......
रोज सुबह माँ के हमें जगाती......
रोज रोते रोते हम पढ़ने जाते.........
गाँव में गिल्ली डंडा खेलता...........
दोस्तों के साथ कबड्डी खेलता......
कितना अच्छा होता की हम फिर से बच्चे बन जाते.......

जब हम खुद को ढूंढने निकले..........


खुद में कुछ अपना ढूंढने निकले
खुली जमीं पे आसमां ढूंढने निकले
उठाए तो बहुत सवाल मेरे वजूद पर
जिद में जवाबों को ही ढूंढने निकले
अपने ही डिगाने लगे है हौंसला मेरा
समंदर में हम बूंद को ढूंढने निकले

वो दोस्त नहीं है..............

मुझे जब जब लगा,
कि मैं मुश्किलों से घिर गया हूँ,
लाख कोशिश करने पर भी,
जब मैं बिखर-बिखर गया हूँ,
जब रुकावटें ही रुकावटें दिखती हैं,
मैं जहाँ भी जिधर गया हूँ,
मंज़िलों तक जाने वाले रास्तों पर,
जब मैं दूर तक बिछड़ गया हूँ....

तब तब अपने कंधे पर,
मैंने एक हाथ महसूस किया,
अनेक कमज़ोरियों में,
जिसने मुझे मज़बूत किया,
एक साए की तरह,
जिसे अपने करीब पाया मैंने,
वो कोई और नहीं,
वो कोई और नहीं,
मेरा दोस्त था...

उसे दोस्त कहना,
जाने क्यूँ अटपटा सा लगता है,
वो दोस्त नहीं है,
वो एक देवता है, एक देवता है......

रविवार, 3 जून 2012

मेरे अहसास..................

मैंने महसूस किया है
मानव की हर उन
भावनाओं को
जो उसके अंतर्मन में
छुपी हुई हैं............

मैंने महसूस किया है
हर उस ताकत को
जो मनुष्य को हर समय
घेरे रहती है...........

मैंने महसूस किया है
हर उस खुशी को
जो उन छोटी-छोटी बातों से
मिलती हैं................

मैने महसूस किया है
हर उस गतिविधि को
जो इस ब्रम्हांड में
हर पल होती रहती है..............

और मैने महसूस किया है
उस अनजान शक्ति को
जो जीवन को हर तरह से
नियंत्रित करती है.............