मुझे जब जब लगा,
कि मैं मुश्किलों से घिर गया हूँ,
लाख कोशिश करने पर भी,
जब मैं बिखर-बिखर गया हूँ,
जब रुकावटें ही रुकावटें दिखती हैं,
मैं जहाँ भी जिधर गया हूँ,
मंज़िलों तक जाने वाले रास्तों पर,
जब मैं दूर तक बिछड़ गया हूँ....
तब तब अपने कंधे पर,
मैंने एक हाथ महसूस किया,
अनेक कमज़ोरियों में,
जिसने मुझे मज़बूत किया,
एक साए की तरह,
जिसे अपने करीब पाया मैंने,
वो कोई और नहीं,
वो कोई और नहीं,
मेरा दोस्त था...
उसे दोस्त कहना,
जाने क्यूँ अटपटा सा लगता है,
वो दोस्त नहीं है,
वो एक देवता है, एक देवता है......
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