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मंगलवार, 13 जून 2023

100 रुपये उधार के…

 


             बाहर बारिश हो रही थी और अन्दर क्लास चल रही थी, तभी टीचर ने बच्चों से पूछा कि अगर तुम सभी को 100-100 रुपये दिए जाए तो तुम सब क्या क्या खरीदोगे? किसी ने कहा कि मैं वीडियो गेम खरीदुंगा। किसी ने कहा मैं क्रिकेट का बेट खरीदुंगा। किसी ने कहा कि मैं अपने लिए प्यारी सी गुड़िया खरीदुंगी, तो किसी ने कहा मैं बहुत सी चॉकलेट्स खरीदुंगी। 

            एक बच्चा कुछ सोचने में डुबा हुआ था। टीचर ने उससे पुछा कि तुम क्या सोच रहे हो? तुम क्या खरीदोगे? बच्चा बोला कि टीचर जी, मेरी माँ को थोड़ा कम दिखाई देता हैं तो मैं अपनी माँ के लिए एक चश्मा खरीदूंगा। टीचर ने पूछा, तुम्हारी माँ के लिए चश्मा तो तुम्हारे पापा भी खरीद सकते हैं, तुम्हें अपने लिए कुछ नहीं खरीदना? बच्चे ने जो जवाब दिया उससे टीचर का भी गला भर आया। 

             बच्चे ने कहा कि मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं है। मेरी माँ लोगों के कपड़े सिलकर मुझे पढ़ाती हैं और कम दिखाई देने की वजह से वो ठीक से कपड़े नहीं सिल पाती है इसीलिए मैं मेरी माँ को चश्मा देना चाहता हुँ ताकि मैं अच्छे से पढ़ सकूँ, बड़ा आदमी बन सकूँ और माँ को सारे सुख दे सकूँ। टीचर ने कहा, बेटा तेरी सोच ही तेरी कमाई है। ये 100 रूपये मेरे वादे के अनुसार और ये 100 रूपये और उधार दे रहा हूँ। जब कभी कमाओ तो लौटा देना। और मेरी इच्छा है तू इतना बड़ा आदमी बने कि तेरे सर पर हाथ फेरते वक्त मैं धन्य हो जाऊं।

                 15 वर्ष बाद। बाहर बारिश हो रही है। अंदर क्लास चल रही हैं। अचानक स्कूल के आगे जिला कलेक्टर की बत्ती वालीगाड़ी आकर रूकती है। स्कूल स्टाफ चौकन्ना हो जाता है। स्कूल में सन्नाटा छा जाता है। मगर ये क्या? जिला कलेक्टर एक वृद्ध टीचर के पैरों में गिर जाते है और कहते है " सर मैं दामोदर दास उर्फ़ झंडू। आपके उधार के 100 रूपये लौटाने आया हूँ "पूरा स्कूल स्टॉफ स्तब्ध। वृद्ध टीचर झुके हुए नौजवान कलेक्टर को उठाकर भुजाओं में कस लेता है और रो पड़ता है। हम चाहें तो अपने आत्मविश्वास और मेहनत के बल पर अपना भाग्य खुद लिख सकते है और अगर हमको अपना भाग्य लिखना नहीं आता तो परिस्थितियां हमारा भाग्य लिख देंगी l

शनिवार, 10 जून 2023

नालायक बेटा ….

 #नालायक

बेटा , हमारा एक्सीडेंट हो गया है,मुझे तो ज्यादा चोट नहीं आई लेकिन तेरी माँ की हालत गंभीर है, कछ पैसों की जरुरत है और तेरी माँ को खुन भी देना है....बासठ साल के माधव जी ने अपने बडे बेटे से फोन पर कहा

पापा, मैं बहुत व्यस्त हूं,आजकल, मेरा आना नही हो सकेगा। मुझे विदेश मे नौकरी का पैकेज मिला है तो उसी की तैयारी कर रहा हूँ। आपका भी तो यही सपना था ना❓😀 इसलिये हाथ भी तंग चल रहा है,पैसे की व्यवस्था कर लीजिए मैं बाद मे दे दूंगा😎उनके बडे इंजिनियर बेटे ने जबाब दिया

उन्होनें अपने दूसरे डाॅक्टर बेटे को फोन किया तो उसने भी आने से मना कर दिया। उसे अपनी ससुराल मे शादी मे जाना था। हाँ इतना जरुर कहा कि पैसों की चिंता मत कीजिए, मै भिजवा दूंगा😎

यह अलग बात है कि उसने कभी पैसे नहीं भिजवाए😎 उन्होंने मायुसी से फोन रख दिया.....

अब उस नालालक को फोन करके क्या फायदा❓😎जब ये दो लायक बेटे कुछ नही कर रहे तो वो नालायक क्या कर लेगा😎

उन्होंने सोचा और बोझिल कदमों से अस्पताल मे पत्नी के पास पहुंचे और कुर्सी पर ढेर हो गये...

पुरानी बातें याद आने लगी.... 


माधव राय जी स्कुल मे शिक्षक थे। उनके तीन बेटे और एक बेटी थी।बडा इंजिनियर और मंझला डाक्टर था। दोनों की शादी बडे घराने मे हुई थी और अपनी पत्नियों के साथ अलग अलग शहरों मे रहते थे....

बेटी की शादी भी उन्होंने खुब धुमधाम से की थी


सबसे छोटा बेटा पढाई मे ध्यान नही लगा पाया था, ग्यारहवीं के बाद उसने पढाई छोड दी और घर मे ही रहने लगा। कहता था मुझे नौकरी नहीं करनी अपने माता पिता की सेवा करनी है, इसी बात पर मास्टर साहब उससे बहुत नाराज रहते थे.... 

उन्होंने उसका नाम ही नालायक रख दिया था। दोनों बडे भाई पिता के आज्ञाकारी थे पर वह गलत बात पर उनसे भी बहस कर बैठता था। इसलिये माधव जी उसे पसंद नही करते थे..... 😎

जब माधव जी रिटायर हुए तो जमा पुँजी कुछ भी नहीं थी। सारी बचत दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा और बेटी की शादी मे खर्च हो गई थी। शहर मे एक घर्,थोडी जमीन और गाँव मे थोडी सी जमीन थी। घर का खर्च उनकी पेंशन से चल रहा था.... 


माधव जी को जब लगा कि छोटा सुधरने वाला नही तो उन्होंने बँटवारा कर दिया और उसके हिस्से की जमीन उसे देकर उसे गाँव मे ही रहने भेज दिया। हालाँकि वह जाना नही चाहता था पर पिता की जिद के आगे झुक गया और गाँव मे ही झोंपडी बनाकर रहने लगा।


माधव जी सबसे अपने दोनों होनहार और लायक बेटों की बड़ाई किया करते। उनका सीना गर्व से चौडा हो जाता था। पर उस नालायक का नाम भी नही लेते थे।


दो दिन पहले दोनों पति पत्नी का एक्सीडेन्ट हो गया था, वह अपनी पत्नी के साथ सरकारी अस्पताल मे भर्ती थे और डाॅक्टर ने उनकी पत्नी को आपरेशन करने को कहा था।

पापा, पापा! सुन कर तंद्रा टुटी तो देखा सामने वही नालायक खड़ा था। उन्होंने गुस्से से मुंह फेर लिया। पर उसने पापा के पैर छुए और रोते हुए बोला:-

पापा आपने इस नालायक को क्यों नही बताया❓😎 पर मैने भी आप लोगों पर जासुस छोड रखे हैं।खबर मिलते ही भागा आया हूं.... 


पापा के विरोध के वावजुद उसने उनको एक बडे अस्पताल मे भरती कराया। माँ का आपरेशन कराया और अपना खुन दिया। दिन रात उनकी सेवा मे लगा रहता कि एक दिन वह गायब हो गया।

वह उसके बारे मे फिर बुरा सोचने लगे थे कि तीसरे दिन वह वापस आ गया। महीने भर मे ही माँ एकदम भली चंगी हो गई। वह अस्पताल से छुट्टी लेकर उन लोगों को घर ले आया। माधव जी के पुछने पर बता दिया कि खैराती अस्पताल था पैसे नही लगे हैं।

घर मे नौकरानी थी ही। वह उन लोगों को छोड कर वापस गाँव चला गया।

धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया....😀

एक दिन यूँ ही उनके मन मे आया कि उस नालायक की खबर ली जाए। दोनों जब गाँव के खेत पर पहुँचे तो झोपडी मे ताला देख कर चौंके। उनके खेत मे काम कर रहे आदमी से पुछा तो उसने कहा:-

यह खेत अब मेरे हैं


क्या..❓😎पर यह खेत तो....उन्हे बहुत आश्चर्य हुआ। हां,उसकी माँ की तबीयत बहुत खराब थी। उसके पास पैसे नहीं थे तो उसने अपने सारे खेत बेच दिये। वह रोजी रोटी की तलाश मे दूसरे शहर चला गया है,बस यह झोपडी उसके पास रह गई है। यह रही उसकी चाबी....उस आदमी ने कहा

वह झोपडी मे दाखिल हुये तो बरबस उस नालायक की याद आ गई। टेबुल पर पडा लिफाफा खोल कर देखा तो उसमे रखा अस्पताल का नौ लाख का बिल उनको मुँह चिढाने लगा।

उन्होंने अपनी पत्नी से कहा:-जानकी तुम्हारा बेटा "नालायक" तो था ही "झूठा" भी निकला

अचानक उनकी आँखों से आँसू गिरने लगे और वह जोर से चिल्लाये:-

तु कहाँ चला गया नालायक❓😭अपने पापा को छोड कर,एक बार वापस आ जा फिर मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूंगा...उनकी पत्नी के आँसू भी वहे जा रहे थे।


और माधव जी को इंतजार था अपने नालायक बेटे को अपने गले से लगाने का।

सचमुच बहुत नालायक था वो.... 

🙏🙏🙏

शुक्रवार, 9 जून 2023

विवाह मज़ाक़ नहीं है !

 

विवाह उपरांत जीवन साथी को छोड़ने के लिए 2 शब्दों का प्रयोग किया जाता है 

1-Divorce (अंग्रेजी) 

2-तलाक (उर्दू) 

कृपया हिन्दी का शब्द बताए...??


कहानी आजतक के Editor... संजय सिन्हा की लिखी है...। 


तब मैं... 'जनसत्ता' में... नौकरी करता था...। एक दिन खबर आई कि... एक आदमी ने झगड़े के बाद... अपनी पत्नी की हत्या कर दी...। मैंने खब़र में हेडिंग लगाई कि... "पति ने अपनी बीवी को मार डाला"...! खबर छप गई..., किसी को आपत्ति नहीं थी...। पर शाम को... दफ्तर से घर के लिए निकलते हुए... प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी... सीढ़ी के पास मिल गए...। मैंने उन्हें नमस्कार किया... तो कहने लगे कि... "संजय जी..., पति की... 'बीवी' नहीं होती...!"


“पति की... 'बीवी' नहीं होती?” मैं चौंका था


" “बीवी" तो... 'शौहर' की होती है..., 'मियाँ' की होती है..., पति की तो... 'पत्नी' होती है...! "


भाषा के मामले में... प्रभाष जी के सामने मेरा टिकना मुमकिन नहीं था..., हालांकि मैं कहना चाह रहा था कि... "भाव तो साफ है न ?" बीवी कहें... या पत्नी... या फिर वाइफ..., सब एक ही तो हैं..., लेकिन मेरे कहने से पहले ही... उन्होंने मुझसे कहा कि... "भाव अपनी जगह है..., शब्द अपनी जगह...! कुछ शब्द... कुछ जगहों के लिए... बने ही नहीं होते...! ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है...।"


खैर..., आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया..., आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं...। लेकिन इसके लिए... आपको मेरे साथ... निधि के पास चलना होगा...।


निधि... मेरी दोस्त है..., कल उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था...। फोन पर उसकी आवाज़ से... मेरे मन में खटका हो चुका था कि... कुछ न कुछ गड़बड़ है...! मैं शाम को... उसके घर पहुंचा...। उसने चाय बनाई... और मुझसे बात करने लगी...। पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं..., फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि... नितिन से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है...।


मैंने पूछा कि... "नितिन कहां है...?" तो उसने कहा कि... "अभी कहीं गए हैं..., बता कर नहीं गए...।" उसने कहा कि... "बात-बात पर झगड़ा होता है... और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया है..., ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि... अलग हो जाएं..., तलाक ले लें...!"


निधि जब काफी देर बोल चुकी... तो मैंने उससे कहा कि... "तुम नितिन को फोन करो... और घर बुलाओ..., कहो कि संजय सिन्हा आए हैं...!"


निधि ने कहा कि... उनकी तो बातचीत नहीं होती..., फिर वो फोन कैसे करे...?!!!


अज़ीब सँकट था...! निधि को मैं... बहुत पहले से जानता हूं...। मैं जानता हूं कि... नितिन से शादी करने के लिए... उसने घर में कितना संघर्ष किया था...! बहुत मुश्किल से... दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे..., फिर धूमधाम से शादी हुई थी...। ढ़ेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं... ऐसा लगता था कि... ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई है...! पर शादी के कुछ ही साल बाद... दोनों के बीच झगड़े होने लगे... दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे... और आज उसी का नतीज़ा था कि... संजय सिन्हा... निधि के सामने बैठे थे..., उनके बीच के टूटते रिश्तों को... बचाने के लिए...!


खैर..., निधि ने फोन नहीं किया...। मैंने ही फोन किया... और पूछा कि... "तुम कहां हो...  मैं तुम्हारे घर पर हूँ..., आ जाओ...। नितिन पहले तो आनाकानी करता रहा..., पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया...।


अब दोनों के चेहरों पर... तनातनी साफ नज़र आ रही थी...। ऐसा लग रहा था कि... कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी... आंखों ही आंखों में एक दूसरे की जान ले लेंगे...! दोनों के बीच... कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी...!!


नितिन मेरे सामने बैठा था...। मैंने उससे कहा कि... "सुना है कि... तुम निधि से... तलाक लेना चाहते हो...?!!!


उसने कहा, “हाँ..., बिल्कुल सही सुना है...। अब हम साथ... नहीं रह सकते...।"


मैंने कहा कि... "तुम चाहो तो... अलग रह सकते हो..., पर तलाक नहीं ले सकते...!"


“क्यों...???


“क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है...!”


"अरे यार..., हमने शादी तो... की है...!"


“हाँ..., 'शादी' की है...! 'शादी' में... पति-पत्नी के बीच... इस तरह अलग होने का... कोई प्रावधान नहीं है...! अगर तुमने 'मैरिज़' की होती तो... तुम "डाइवोर्स" ले सकते थे...! अगर तुमने 'निकाह' किया होता तो... तुम "तलाक" ले सकते थे...! लेकिन क्योंकि... तुमने 'शादी' की है..., इसका मतलब ये हुआ कि... "हिंदू धर्म" और "हिंदी" में... कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद... अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं....!!!"


मैंने इतनी-सी बात... पूरी गँभीरता से कही थी..., पर दोनों हँस पड़े थे...! दोनों को... साथ-साथ हँसते देख कर... मुझे बहुत खुशी हुई थी...। मैंने समझ लिया था कि... रिश्तों पर पड़ी बर्फ... अब पिघलने लगी है...! वो हँसे..., लेकिन मैं गँभीर बना रहा...


मैंने फिर निधि से पूछा कि... "ये तुम्हारे कौन हैं...?!!!"


निधि ने नज़रे झुका कर कहा कि... "पति हैं...! मैंने यही सवाल नितिन से किया कि... "ये तुम्हारी कौन हैं...?!!! उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि..."बीवी हैं...!"


मैंने तुरंत टोका... "ये... तुम्हारी बीवी नहीं हैं...! ये... तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं.... क्योंकि... तुम इनके 'शौहर' नहीं...! तुम इनके 'शौहर' नहीं..., क्योंकि तुमने इनसे साथ "निकाह" नहीं किया... तुमने "शादी" की है...! 'शादी' के बाद... ये तुम्हारी 'पत्नी' हुईं..., हमारे यहाँ जोड़ी ऊपर से... बन कर आती है...! तुम भले सोचो कि... शादी तुमने की है..., पर ये सत्य नहीं है...! तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ..., मैं सबकुछ... अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा...!"


बात अलग दिशा में चल पड़ी थी...। मेरे एक-दो बार कहने के बाद... निधि शादी का एलबम निकाल लाई..., अब तक माहौल थोड़ा ठँडा हो चुका था..., एलबम लाते हुए... उसने कहा कि... कॉफी बना कर लाती हूं...।"


मैंने कहा कि..., "अभी बैठो..., इन तस्वीरों को देखो...।" कई तस्वीरों को देखते हुए... मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई..., जहाँ निधि और नितिन शादी के जोड़े में बैठे थे...। और पाँव~पूजन की रस्म चल रही थी...। मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली... और उनसे कहा कि... "इस तस्वीर को गौर से देखो...!"


उन्होंने तस्वीर देखी... और साथ-साथ पूछ बैठे कि... "इसमें खास क्या है...?!!!"


मैंने कहा कि... "ये पैर पूजन का रस्म है..., तुम दोनों... इन सभी लोगों से छोटे हो..., जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं...।"


“हां तो....?!!!"


“ये एक रस्म है... ऐसी रस्म सँसार के... किसी धर्म में नहीं होती... जहाँ छोटों के पांव... बड़े छूते हों...! लेकिन हमारे यहाँ शादी को... ईश्वरीय विधान माना गया है..., इसलिए ऐसा माना जाता है कि... शादी के दिन पति-पत्नी दोनों... 'विष्णु और लक्ष्मी' के रूप हो जाते हैं..., दोनों के भीतर... ईश्वर का निवास हो जाता है...! अब तुम दोनों खुद सोचो कि... क्या हज़ारों-लाखों साल से... विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं...?!!! दोनों के बीच... कभी झिकझिक हुई भी हो तो... क्या कभी तुम सोच सकते हो कि... दोनों अलग हो जाएंगे...?!!! नहीं होंगे..., हमारे यहां... इस रिश्ते में... ये प्रावधान है ही नहीं...! "तलाक" शब्द... हमारा नहीं है..., "डाइवोर्स" शब्द भी हमारा नहीं है...!"


यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि... "बताओ कि... हिंदी में... "तलाक" को... क्या कहते हैं...???"


दोनों मेरी ओर देखने लगे उनके पास कोई जवाब था ही नहीं फिर मैंने ही कहा कि... "दरअसल हिंदी में... 'तलाक' का कोई विकल्प ही नहीं है...! हमारे यहां तो... ऐसा माना जाता है कि... एक बार एक हो गए तो... कई जन्मों के लिए... एक हो गए तो... प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता..., उसे करने की कोशिश भी मत करो...! या फिर... पहले एक दूसरे से 'निकाह' कर लो..., फिर "तलाक" ले लेना...!!"


अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ... काफी पिघल चुकी थी...!


निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी...। फिर उसने कहा कि... "भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूं...।"


वो कॉफी लाने गई..., मैंने नितिन से बातें शुरू कर दीं...। बहुत जल्दी पता चल गया कि... बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं..., बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएं हैं..., जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं...।


खैर..., कॉफी आई मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली...। नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि... निधि ने रोक लिया..., “भैया..., इन्हें शुगर है... चीनी नहीं लेंगे...।"


लो जी..., घंटा भर पहले ये... इनसे अलग होने की सोच रही थीं...। और अब... इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं...!


मैं हंस पड़ा मुझे हंसते देख निधि थोड़ा झेंपी कॉफी पी कर मैंने कहा कि... "अब तुम लोग... अगले हफ़्ते निकाह कर लो..., फिर तलाक में मैं... तुम दोनों की मदद करूंगा...!"


शायद अब दोनों समझ चुके थे.....


हिन्दी एक भाषा ही नहीं - संस्कृति है...!


इसी तरह हिन्दू भी धर्म नही - सभ्यता है...!!


👆उपरोक्त लेख मुझे बहुत ही अच्छा लगा..., जो सनातन धर्म और संस्कृति से जुड़ा है...। आप सभी से निवेदन है कि... समय निकाल कर इसे पढ़ें और आगे शेयर ज़रूर करें 🙏

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रविवार, 4 जून 2023

परोपकार….

 

रात तक़रीबन 9 बजे दफ़्तर से लौटने के क्रम में प्रफुल्ल बाबू की चमचमाती मर्सिडीज कार जैसे ही उनके घर के मुख्य फाटक में घुसी,ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मी तेज़ी से दौड़कर उनके पास पहुंचा औऱ उन्हें सैल्यूट करते हुए कहा...“साहब, एक महिला आपके लिए लिखी गई किसी व्यक्ति की एक चिट्ठी लेकर न जाने कब से यहाँ भटक रही हैं औऱ बार बार आपसे मिलने का अनुरोध कर रही है। मेरे मना करने के बाद भी यहाँ से भाग नहीं रही है , उसके साथ उसका एक बच्चा भी है ।” 


प्रफुल्ल जी ने गार्ड की बातों को सुन बेहद अचरज से उस महिला को अपने नज़दीक बुलाया औऱ उससे जानना चाहा..."आप कहाँ से आई हैं और मुझसे क्यों मिलना चाहती हैं , किसने मुझें ये चिट्ठी लिखी है" ??


कपकपाती हाथों से महिला ने बिना कुछ ज़्यादा बोले प्रफुल्ल जी को एक चिट्ठी पकड़ाई औऱ फ़िर मद्धिम आवाज़ में सिसकते हुए बोली...." साहब, मैं अभागन बड़ी भयानक मुसीबत में हूँ , तत्काल आपकी मदद चाहिए , आपके पिताजी ने मुझें ये चिट्ठी देकर आपके पास भेजा है ।मेरा एकलौता बेटा बहुत बीमार है । इसे किसी भी तरह किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दीजिए ।आपका जीवनभर उपकार रहेगा ।गांव में इसके इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण मज़बूरी में मैं आपके पास आई हूँ "।


चिट्ठी देते हुए महिला प्रफुल्ल जी के सामने अपना दोनों हाथ जोड़कर खड़ी हो गई ।


प्रफुल्ल जी ने उस चिट्ठी को ध्यान से पढ़ा और कुछ पल के बाद बेहद गंभीर व शांत हो गए । उसके बाद वे मैली कुचैली साड़ी पहनी क़भी उस महिला की तरफ़ अपनी आँखें फेरते तो क़भी उस चिट्ठी की तरफ़ । कुछ देर तक बेहद गहरी चिंता में प्रफुल्ल बाबू गोताखोरी करते रहे ।


दरअसल उस चिट्ठी के साथ साथ वो महिला अपने गंभीर रूप से बीमार बच्चे को लेकर उनके पास इलाज़ हेतु मदद के लिए अपने गांव से शहर पहुँची थी ।


"आप कब से मेरा इंतज़ार कर रही हैं , क्या आपने कुछ खाया है"....?? प्रफुल्ल जी ने महिला से जानना चाहा ।


इसके उत्तर में महिला कुछ बोल न सकी , बस उनको लगातार एक टक देखती रही ।


प्रफुल्ल जी ने उसी क्षण अपने सुरक्षाकर्मी को बोल उस महिला औऱ उसके बीमार बच्चे के लिए अपने आउट गेस्ट रूम में रहने का इंतजाम करवाया औऱ फ़िर वहीं कुछ देर बाद दोनों के लिए भोजन का प्रबंध किया गया ।


उन दोनों के भोजन करते करते प्रफुल्ल जी फ़िर अपने मोबाइल फोन से किसी से कुछ बात करते हुए उनके सामने उपस्थित हो गए ।


महिला ने पुनः उनसे फरियाद करते हुए कहा..."साहब , भगवान के लिए मेरी मदद कीजिए और मेरे एकलौते बीमार बच्चे को किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दीजिए , नहीं तो इसका बचना मुश्किल है "।


महिला बोलते बोलते उनके पैरों पर गिर पड़ी ।


"अरे माताजी ऐसा मत कीजिए, आप मेरी मां समान हैं , आप चिंता मत कीजिए, सब ठीक हो जाएगा"....प्रफुल्ल बाबू ने उसकी हिम्मत बढ़ाई ।


इतने में रात के बेहद ख़ामोश सन्नाटे को चीरती हुई  हॉर्न बजाती एक दूसरी गाड़ी तेज़ी से घर के अंदर घुसी औऱ कुछ पल बाद एक डॉक्टर वहाँ उपस्थित हुए ।


"आईए डॉक्टर साहब , ये बच्चा बीमार है , इसको ज़रा बेहद गंभीरता से पड़ताल कर इसका इलाज़ कीजिए"...प्रफुल्ल जी ने कहा ।


डॉक्टर बाबू ने बिना अपना वक़्त गवाएं तकरीबन बीस मिनट तक उस बच्चे का गहन निरीक्षण किया औऱ फ़िर कुछ जाँच करने के साथ साथ कुछ दवाईयों की पर्ची भी वहाँ खड़े प्रफुल्ल बाबू के हाथों में पकड़ा दी ।


"ये कुछ दवाइयां औऱ इंजेक्शन मेडिकल स्टोर से तत्काल मंगा लीजिए , अभी देने हैं और मैं अपने साथ जांच के लिए इस बच्चे का रक्त नमूना लेकर जा रहा हूँ ,इनके रिपोर्ट लेकर कल फ़िर आऊंगा" ......डॉक्टर ने प्रफुल्ल बाबू से कहा औऱ फिर वहां से निकल गए ।


प्रफुल्ल बाबू ने डॉक्टर की पर्ची औऱ कुछ पैसे अपने ड्राइवर को पकड़ाते हुए उसे तुरंत सारी दवाइयां लाने का निर्देश दिया औऱ फ़िर ख़ुद अपने घर के अंदर जाने के लिए वहाँ से बरामदे की ओर मुड़े ।


"साहब बस आप मेरे बच्चे को किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करा देते , मैं ग़रीब कहाँ से दे पाऊंगी इलाज़ के इतने पैसे, मेरे पास तो रहने खाने के भी पैसे नहीं हैं"....महिला गिड़गिड़ाई ।


"माता जी , बस आप निश्चिंत रहें औऱ जाकर आराम करें , रात बहुत हो चुकी है ".....इतना कहकर प्रफुल्ल बाबू वहां से निकल अपने घर के अंदर प्रवेश कर गए ।


सुबह डॉक्टर बाबू बच्चे के तमाम रिपोर्ट के साथ फ़िर हाज़िर हुए और उसे एक दो इंजेक्शन तथा कुछ दवाइयां दीं ।


अपने दफ़्तर जाने से ठीक पहले प्रफुल्ल बाबू ने भी बीमार बच्चे के साथ साथ उस महिला का अच्छी तरह से ख़ैर मखदम लिया और सबको उन दोनों का बेहतर ख़याल रखने के लिए निर्देशित कर वहाँ से निकल गए । प्रफुल्ल बाबू एक निजी दूरसंचार कंपनी में बड़े ओहदे पर कार्यरत थे ।


डॉक्टर बाबू अब नियमित रूप से आकर उस बीमार बच्चे की जाँच करते औऱ साथ ही बेहतर ढंग से उसका इलाज़ भी ।


प्रफुल्ल बाबू भी सुबह शाम जब भी उनको समय मिलता उन दोनों की खोज ख़बर ले लेते ।


महिला जब भी उनको देखती रोते हुए उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती , हालांकि प्रफुल्ल बाबु उसको बार बार औऱ लगातार ये न करने के लिए कहते रहते  ।


दिन बीतने के साथ साथ बच्चे का नियमित रूप से बेहतर इलाज़ होता रहा , साथ ही रहने खाने का भी भरपूर ख़याल रखा जाता ।


तक़रीबन एक महीने के बाद जब बच्चा पूरी तरह से तंदरुस्त हो गया तो महिला प्रफुल्ल बाबू के सामने जाकर बोली . ."साहब, मेरा बच्चा बिलकुल ठीक हो चुका है , हम अब वापस अपने गांव जाना चाहते हैं । आपने जो मेरे लिए किया उसके लिए मैं जीवन भर आपका औऱ आपके पिता कृष्णकांत जी का एहसानमंद रहूंगी" ।


जब वो महिला अपने बच्चे के साथ वहाँ से विदा होने लगी तो प्रफुल्ल बाबू ने कुछ रुपयों के साथ दोनों को नए कपड़े औऱ दो जोड़ी नए चप्पल उपहार स्वरूप दी औऱ साथ ही उसे एक चिट्ठी भी देते हुए कहा कि "इसे उन्हें ही दे दीजिएगा जिन्होंने आपको यहाँ भेजा था "।


महिला हाथ जोड़कर कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हुए उन्हें लगातार अनगिनत दुआएं देती वहाँ से बढ़ चली ।


ठीक दूसरे ही दिन अपने गाँव पहुँच कृष्णकांत जी को वह चिट्ठी देते हुए महिला उनसे  प्रफुल्ल जी की बहुत तारीफ़ करने लगी....“ बाबा , आपका बेटा तो देवता है देवता , कितना ख़याल रखा हमारा...ऐसा बेटा किस्मत वाले को नसीब होता है, ऊपरवाला उन्हें औऱ उनके समूचे परिवार को हमेशा सलामत रखे ।”


कृष्णकांत जी उस चिट्ठी को पढ़कर दंग रह गए...उसमें लिखा था, “ परम आदरणीय बाबू जी ,मैं आपको नहीं जानता औऱ न ही क़भी आपसे मिला हूँ लेकिन अब आपका बेटा इस पते पर नहीं रहता ... कुछ महीने पहले ही उसने ये मकान बेच दिया है । अब मैं यहाँ रहने लगा हूँ, पर मुझे भी आप अपना बेटा ही समझिए । बचपन से ही मैं अपने पिता से महरूम रहा हूँ , लेकिन मैंने जब आपका पत्र पढ़ा तो मुझें ऐसा लगा जैसे मेरे सगे बाप ने मुझें कुछ करने के लिए आदेश दिया है । आप कृपया इनसे कुछ मत कहिएगा। आपकी वजह से मुझे इस माता के द्वारा जितना आशीर्वाद और दुआएँ मिली हैं, उस उपकार के लिए मैं आपका ताउम्र ऋणी रहूँगा .. आपका अपना प्रफुल्ल शर्मा ।”


कुछ बेहद ख़ामोश लम्हों के बाद कृष्णकांत जी का सिर कुछ सोचकर ख़ुद ब ख़ुद उस अनजान पवित्र आत्मा के सम्मान में झुक गया......औऱ उनकी आंखें तो नम थीं ही !!

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परहित सरिस धर्म नहीं भाई...

परपीड़ा सम नहीं अधमाई...!!


गोस्वामी तुलसीदासजी.......

परोपकार से बड़ा कोई धर्म नही है......!!

रविवार, 21 मई 2023

एक शोक संवेदना! 😭



ओह.. तो तुम आखिर चले ही गये। बहुत दिनों से दिख नहीं रहे थे तो मन में तरह तरह की आशंकायें उठती थीं। कोई कुछ कहता कोई कुछ। किसकी बात पर भरोसा करते। याद आता है संभवतः दो तीन वर्षों पहले आपके दर्शन हुये थे। फिर तो आप एकदम से अदृश्य ही हो गये। हमने और कईयों से भी पूछा, खोज खबर ली उन्होंने भी आपको न देखने की इत्तिला दी। 


और कल खबर मिली कि आप हमेशा के लिए हमें छोड़ गये। और कोई आखिरी निशानी भी नहीं छोड़ी। सार्वजनिक जीवन को त्याग दिया। कहते हैं वे श्रेष्ठजन होते हैं जो अल्पायु होते हैं। और निसंदेह आप अपनी श्रेणी में श्रेष्ठतम थे। कई 'श्रेष्ठ जनों' को आपका जाना बहुत अखर गया है। हम तो ठहरे आम साधारण लोग। संतोष करना सीख गये हैं। मगर कुछ खास तो खासे बेचैन हैं।


ईश्वर आपको सद्गति दें। और इतना क्रूर भी न बने कि ऐसी अल्पायु में किसी की इहलीला समाप्त कर दें। हम भले आपके सानिध्य सुख से प्रायः वंचित रहे हों मगर हम इतने निष्ठुर और अनुदार भी नहीं कि आपके निर्वाण पर शोक संवेदना भी व्यक्त न करें। 


- आपका एक शुभ चिन्तक

बुधवार, 17 मई 2023

बागेश्वर धाम ( धीरेंद्र शास्त्री )


           पटना एयरपोर्ट से जब धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री निकलते है उस समय बीजेपी के नेता मनोज तिवारी इनका ड्राइवर बन जाते हैं । भीड़ के बीच मनोज तिवारी के किसी बात पर धीरेंद्र जी आदत के अनुसार SUV के डेस्क बोर्ड पर जोर से हाथ पटकते हुए किसी बालक की तरह खिलखिला कर हंसने लगते है । 

          एक टीवी चैनल में पत्रकार ने इस विषय पर जब जब मनोज तिवारी से पूछते है तब मनोज जी बताते हैं "SUV मे पीछे बैठे कोई सज्जन विरोध करने वालो पर चर्चा करते हैं, उसी विषय पर धीरेंद्र शास्त्री कहते है "जो समर्थक है ओ उत्तम है,जो विरोधी हैं ओ अतिउत्तम हैं" इतना कहकर जोर से हंसने लगते हैं । 

             मध्यप्रदेश के छतरपुर के पास एक छोटे से गुमनाम गांव "गढ़ा" से निकलकर एक पच्चीस वर्ष का युवा कथावाचक बिहार जैसे राज्य में आता है और दूसरे ही दिन आठ से दस लाख की भीड़ उमड़ पड़ती है, तो यह सिद्ध होता कि अब भी इस देश की सबसे बड़ी शक्ति उसका धर्म है। मैं यह इसलिए भी कह रहा हूँ कि इसी बिहारभूमि पर किसी बड़े राजनेता की रैली में 50 हजार की भीड़ जुटाने के लिए द्वार द्वार पर गाड़ी भेजते और पैसे बांटते हम सब ने देखा है। वैसे समय में कहीं दूर से आये किसी युवक को देखने के लिए पूरा राज्य दौड़ पड़े, तो आश्चर्य होता है । मेरे लिए यही धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का सबसे बड़ा चमत्कार है।


       वह दस लाख की भीड़ किसी एक जाति की भीड़ नहीं है, उसमें सभी हैं। बाभन-ठाकुर,भुइंहार हैं, तो कोइरी कुर्मी भी, राजपूत हैं तो बनिया भी, यादव भी, हरिजन भी यह वही बिहार है जहां हर वस्तु को जाति के चश्मे से देखने की ही परम्परा सी बन गयी है ।

             स्वार्थी नेताओं तो बिखेरे गए, उस टूटे हुए बिहार को एक युवक पहली बार में इतना बांध देता है, तो यह विश्वास दृढ़ होता है कि हमें बांधना असम्भव नहीं है । राजनीति हमें कितना भी तोड़े, धर्म हमें जोड़ ही लेगा.।

      आयातित तर्कों के दम पर कितना भी बवंडर बतिया लें, पर यह सत्य है कि इस देश को केवल और केवल धर्म एक करता है । कश्मीर से कन्याकुमारी के मध्य हजार संस्कृतियां निवास करती हैं । भाषाएं अलग हैं, परंपराएं अलग हैं, विचार अलग हैं, दृष्टि अलग है, भौगोलिक स्थिति अलग है, परिस्थितियां अलग हैं, फिर भी हम एक राष्ट्र हैं तो केवल और केवल धर्म के कारण ।  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उसी धर्म की डोर से सबको बांध रहे हैं।

     कुछ लोग उनके चमत्कारी होने को लेकर उनकी आलोचना करते हैं। मैं अपनी कहूँ तो चमत्कारों पर मेरा अविश्वास नहीं। एक महाविपन्न परिवार से निकला व्यक्ति यदि युवा अवस्था में ही देश के सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल हो जाता है, तो इस चमत्कार पर पूरी श्रद्धा है मेरी... 


     धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अपने समय के मुद्दों पर स्पष्ट बोलते हैं, यह उनकी शक्ति है। नवजागृत हिन्दू चेतना को अपने संतों से जिस बात का असंतोष था कि वे हमारे विषयों पर बोलते क्यों नहीं, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उस असन्तोष को शांत कर रहे हैं। यह कम सुखद नहीं...

     कुछ लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को रोकने के दावे कर रहे थे। मैं जानता हूँ, उन्हें ईश्वर रोके तो रोके, अब अन्य कोई नहीं रोक सकेगा... धीरेंद्र समय की मांग हैं। यह समय ही धीरेंद्र शास्त्री का है।

     मैं स्पष्ट मानता हूँ कि यह भारत के पुनर्जागरण का कालखंड है, अब हर क्षेत्र से योद्धा नायक निकलेंगे। राजनीति, धर्म, अर्थ, विज्ञान, रक्षा... हर क्षेत्र नव-चन्द्रगुप्तों की आभा से जगमगायेगा। देखते जाइये...

💐‼️जय श्री राम‼️🌺

🌸‼️जय हनुमान‼️🌼

शनिवार, 18 मार्च 2023

शाम होते होते…

मैं गुजरे हुए कल को
तलाशता रहा दिनभर...
और शाम होते-होते
मेरा आज भी चला गया...

आँखों से बोलो…

शब्दों को अधरों पर रख कर 
मन का भेद ना खोलो…
शब्दों को अधरों पर रख कर 
मन का भेद ना खोलो…

मैं आँखों से सुन सकता हूँ
तुम आँखों से बोलो…
https://drive.google.com/uc?export=view&id=1q4O8DbZslhQD4_eXXamXY7XyFxXajo_5

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

शालिग्राम...

 

ये  पत्थर 6 करोड़ साल पुराने है ।
       हो सकता है ये पत्थर 6 करोड़ साल से अभिशप्त हो और मुक्ति के लिए तपस्या कर रहे हो ।
   मुक्ति भी मिली तो नेपाल के गंडक नदी से मुक्त हुए और ईश्वर की कृपा हुई तो ये पत्थर स्वयं भगवान हो गए।

मेरा ईश्वर में अतिविश्वास है, मैं घोर आस्तिक हूँ मुझे पता है कि कण-कण में भगवान है, हमारे अगल-बगल हर जगह विद्यमान है ।



सब कुछ वही कर और करा रहे है । हम सभी तो कठपुतली मात्र हैं । 
   अब देखिए अयोध्या जी में उत्सव का माहौल है क्योंकि राम लला वर्षों बाद अपने जन्मस्थान पर जा रहे है तो ऐसे शुभ कार्य में उनके ससुराल वाले कैसे पीछे रहते ।
नेपाल की गंडकी नदी से वर्षो पुराने शालिग्राम बाहर निकले है।
मानो ये पत्थर भक्ति में 6 करोड़ साल से डूबे हुए थे ।
प्रभु के कहने से बाहर आए।
अब तय किया गया कि इनसे राम मंदिर के गर्भगृह के लिए सीताराम की मूर्ति बनाई जाएगी ।

प्रभु की लीला देखिए ।
वर्षो से तपस्या में लीन शालिग्राम को आशीर्वाद में श्रीराम होना मिला है, कहते है न कि कण कण में राम है तो शालिग्राम के कण से राम है ।

जब नेपाल से शालिग्राम ने राम होने की यात्रा शुरू की, तो रामभक्तों का जमावड़ा सड़क किनारे लगने लगा और देखने लगी कि "किस भाग्यवान पत्थर के हिस्से में राम होना लिखा है" और लंबी प्रतीक्षा के बाद शालिग्राम पत्थर से श्रीराम होना है । उसके उस स्वरूप को आँख भर देख लेना चाहते है ।

बूढ़े-बुजुर्ग अपनी पीढ़ियों को बतला रहे होंगे, आँखें इन पलों को देखने के लिए व्याकुल थी । न जाने कितनी आँखें इस घड़ी की प्रतीक्षा में सो गई। उन्हें राम को जाते देखना न लिखा था । "देखो, राम जा रहे है और अयोध्या जी की गोद में बैठ जाएंगे"। 


युवा इन दृश्यों को समेटकर अपनी सबसे बड़ी विरासत में जोड़ लेंगे और आने वाली पीढ़ियों को बतलाएँगे कि "शालिग्राम को जाते व राम होते, अपनी आँखों से देखा था
मेरे राम यही होकर गुजरे और विश्राम को ठहरे थे, हमने उन्हें स्पर्श भी किया था" । तुम जिन्हें अयोध्या में देख रहे हो वो मेरे श्री राम है । हमने उन्हें राम होते देखा था" । इन आँखों ने जीवन का सबसे सुखद पल संभालकर रखा हुआ है । ताकि तुन्हें अपनी विरासत सौंप सके । राम को देखने लोग घरों से निकल आए, किसी ने आवाज़ तक न लगाई, ना किसी से निमंत्रण दिया ।
बस अपने प्रभु के जाने की आहट से पहचान गए कि उनके प्रभु अयोध्याजी के लिए निकल रहे है और कभी भी उनके द्वार से होकर गुजर सकते है। उनके स्वागत में हजारों की संख्या में श्रदालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा। आखिर राम जाते कौन न देखना चाहेगा। 

उन शिलाओं ने न जाने कितनी तपस्या की होगी, कि स्वयं प्रभु श्रीराम मिले उनका कद भी अयोध्याजी के मुकाबले रहा होगा । क्योंकि दोनों में राम बसे है, सारे जग में राम है।

उन आँखों को देखना चाहिए, जो पूछती थी ।  राम कब आएंगे ?  देखिए राम जा रहे है । रामभक्त उनका दर्शन लाभ ले रहे है और बार बार मोदी को याद कर रहे हैं जिनके सुशासन में श्री राम लला के मंदिर के पक्ष में फैसला आया ।