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गुरुवार, 18 अगस्त 2022

रक्षा बंधन...


एक बहन ने अपनी भाभी को फोन किया और जानना चाहा....." भाभी , मैंने जो भैया के लिए राखी भेजी थी , मिल गयी क्या आप लोगों को " ???

भाभी : " नहीं दीदी, अभी तक तो नहीं मिली "।
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बहन : " भाभी कल तक देख लीजिए , अगर नहीं मिली तो मैं खुद जरूर आऊंगी राखी लेकर , मेरे रहते भाई की हाथ सुनी नहीं रहनी चाहिए रक्षाबंधन के दिन " ।
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अगले दिन सुबह ही भाभी ने खुद अपनी ननद को फोन किया : " दीदी आपकी राखी अबतक नहीं मिली , अब क्या करें बताईये " ??

ननद ने फोन रखा , अपने पति को गाड़ी लेकर साथ चलने के लिए राजी किया और चल दी राखी , मिठाई लेकर अपने मायके ।

दो सौ किलोमीटर की दूरी तय कर लगभग पांच घंटे बाद बहन अपने मायके पहुंची ।

फ़िर सबसे पहले उसने भाई को राखी बांधी , उसके बाद घर के बाक़ी सदस्यों से मिली, खूब बातें, हंसी मजाक औऱ लाजवाब व्यंजनों का लंबा दौर चला ।

अगले दिन जब बहन चलने लगी तो उसकी भाभी ने उसकी गाड़ी में खूब सारा सामान रख दिया....कपड़े , फल , मिठाइयां वैगेरह । 

विदा के वक़्त जब वो अपनी माँ के पैर छूने लगी तो माँ ने शिकायत के लहजे में कहा..... " अब ज़रा सा भी मेरा ख्याल नहीं करती तू , थोड़ा जल्दी जल्दी आ जाया कर बेटी , तेरे बिना उदास लगता है मुझें , तेरे भाई की नज़रे भी तुझें ढूँढ़ती रहती हैं अक़्सर "।

बहन बोली- " माँ , मैं समझ सकती हूँ आपकी भावना लेकिन उधर भी तो मेरी एक माँ हैं और इधर भाभी तो हैं आपके पास , फ़िर आप चिंता क्यों करती हैं , जब फुर्सत मिलेगा मैं भाग कर चली आऊंगी आपके पास "।

आँखों में आंसू लेकर माँ बोली- " सचमुच बेटी , तेरे जाने के बाद तेरी भाभी बहुत ख्याल रखती है मेरा, देख तुझे बुलाने के लिए तुझसे झूठ भी बोला, तेरी राखी तो दो दिन पहले ही आ गयी थी, लेकिन उसने पहले ही सबसे कह दिया था कि इसके बारे में कोई भी दीदी को बिलकुल बताना मत, राखी बांधने के बहाने इस बार दीदी को जरुर बुलाना है, वो चार सालों से मायके नहीं आयीं " ।

बहन ने अपनी भाभी को कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया और रोते हुए बोली...." भाभी , मेरी माँ का इतना भी ज़्यादा ख़याल मत रखा करो कि वो मुझें भूल ही जाए " ।

भाभी की आँखे भी डबडबा गईं ।

बहन रास्ते भर गाड़ी में गुमसुम बेहद ख़ामोशी से अपनी मायके की खूबसूरत , सुनहरी , मीठी यादों की झुरमुट में लिपटी हुई बस लगातार यही प्रार्थना किए जा रही थी....." हे ऊपरवाले , ऐसी भाभी हर बहनों को मिले !"

शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

भूली बिसरी यादें...

बात उन दिनों की है जब मैं स्कूल में पढ़ता था, उस स्कूली दौर में निब वाले पैन का चलन जोरों पर था...

तब कैमलिन की स्याही प्रायः हर घर में मिल ही जाती थी, कोई कोई टिकिया से स्याही बनाकर भी उपयोग करते थे और बुक स्टाल पर शीशी में स्याही भर कर रखी होती थी 5 पैसा दो और ड्रापर से खुद ही डाल लो ये भी सिस्टम था...

 जिन्होंने भी पैन में स्याही डाली होगी वो ड्रॉपर के महत्व से  भली भांति परिचित होंगे...

कुछ लोग ड्रापर का उपयोग कान में तेल डालने में भी करते थे...

महीने में दो-तीन बार निब पैन को खोलकर उसे गरम पानी में डालकर उसकी सर्विसिंग भी की जाती थी और  लगभग सभी को लगता था की निब को उल्टा कर के लिखने से हैंडराइटिंग बड़ी सुन्दर बनती है...

सामने के जेब मे पेन टांगते थे और कभी कभी स्याही लीक होकर सामने शर्ट नीली कर देती थी जिसे हम लोग सामान्य भाषा मे पेन का पोंक देना कहते थे...

पोंकना अर्थात लूज मोशन...

हर क्लास में एक ऐसा एक्सपर्ट होता था जो पैन ठीक से नहीं चलने पर ब्लेड लेकर निब के बीच वाले हिस्से में बारिकी से कचरा निकालने का दावा  करता था...

निब के नीचे के हड्डा को घिस कर परफेक्ट करना भी एक आर्ट था...

हाथ से निब नहीं निकलती थी तो दांतों के उपयोग से भी निब निकालते थे, दांत, जीभ औऱ होंठ भी नीला होकर भगवान महादेव की तरह हलाहल पिये सा दिखाई पड़ता था...

दुकान में नयी निब खरीदने से पहले उसे पैन में लगाकर सेट करना फिर कागज़ में स्याही की कुछ बूंदे छिड़क कर निब उन गिरी हुयी स्याही की बूंदो पर लगाकर निब की स्याही सोखने की क्षमता नापना ही किसी बड़े साइंटिस्ट वाली फीलिंग दे जाता था...

निब पैन कभी ना चले तो हम सभी ने हाथ से झटका देने के चक्कर में आजू बाजू वालों पर स्याही जरूर छिड़कायी होगी...

कुछ बच्चे ऐसे भी होते थे जो पढ़ते लिखते तो कुछ नहीं थे लेकिन घर जाने से पहले उंगलियो में स्याही जरूर लगा लेते थे, बल्कि पैंट पर भी छिड़क लेते थे ताकि घरवालों  को देख के लगे कि बच्चा स्कूल में बहुत मेहनत करता है...