पृष्ठ

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

कवि हलवाई की दुकान पे....

एक बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुँचे, जलेबी दही ली और वहीं खाने बैठ गये। 

इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला।
पर हलवाई ने उसे देख लिया। हलवाई ने कोयले का एक टुकड़ा उठाया और कौए को दे मारा।
कौए की किस्मत ख़राब, कोयले का टुकड़ा उसे जा लगा और वो मर गया।

कवि महोदय ये घटना देख रहे थे । कवि हृदय जगा । जब वो जलेबी दही खाने के बाद पानी पीने पहुँचे तो उन्होने कोयले के टुकड़े से एक पंक्ति लिख दी।
कवि ने लिखा 
"काग दही पर जान गँवायो"

तभी वहाँ एक लेखपाल महोदय जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे, पानी पीने पहुँचे। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुँह से निकल पड़ा  , कितनी सही बात लिखी है! क्योंकि उन्होने उसे कुछ इस तरह पढ़ा-
"कागद ही पर जान गँवायो"

तभी एक मजनू टाइप आदमी भी पिटा पिटाया सा वहाँ पानी पीने पहुँचा। उसे भी लगा कितनी सच्ची और सही बात लिखी है काश उसे ये पहले पता होती, क्योंकि उसने उसे कुछ यूँ पढ़ा था-
"का गदही पर जान गँवायो"

सो तुलसीदास जी की लाइनें देखिए।

"जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी"


शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

पिता जी पिछड़ रहे हैं....

पता नहीं क्यों पिताजी हमेशा (माँ की तुलना में) पिछड़ रहे हैं।

1. माँ 9 महीने तक अपनी कोख में पालन करती है, पिताजी 25 साल तक, दोनों बराबर हैं, फिर भी पता नहीं क्यों पिताजी पिछड़ रहे हैं।

2. माँ परिवार के लिए पारिश्रमिक के बिना काम करती है, पिताजी अपना सारा वेतन परिवार के लिए खर्च करते हैं, उनके दोनों प्रयास बराबर हैं, फिर भी पता नहीं क्यों पिताजी पिछड़ रहे हैं।

3. माँ , आप जो चाहे वो पका कर खिलाती है, पिताजी आप जो चाहते हैं, खरीद लेते हैं, दोनों का प्यार बराबर है, लेकिन माँ का प्यार बेहतर है। पता नहीं क्यों पिताजी पिछड़ रहे हैं।

4. जब आप फोन पर बात करते हो, तो आप पहले माँ से बात करना चाहते हो, अगर आपको कोई चोट लगती है, तो आप पहले 'माँ' के लिए रोते हो। आपको केवल पिताजी की याद आती है जब आपको उनकी आवश्यकता होगी, लेकिन क्या पिताजी को कभी बुरा लगा था कि आप उन्हें पहली बार में याद नहीं करते? जब बच्चों से प्यार प्राप्त करने की बात आती है, तो पीढ़ियों से, हम देखते हैं कि पिताजी हमेशा पिछड़ रहे हैं।

5. अलमारी (कपाट) में बच्चों के लिए और पत्नी के लिए कई रंगीन साड़ियों व कपड़ों से भरा होगा, लेकिन पिताजी के कपड़े बहुत कम होते हैं, वह अपनी जरूरतों के बारे में परवाह नहीं करते हैं, फिर भी यह नहीं जानते कि पिताजी क्यों पिछड़ रहे हैं ।

6. माँ के पास सोने के कई गहने हैं, लेकिन पिताजी के पास सोने की सिर्फ एक चैन है कभी पहन लेते है कभी निकाल के रख देते हैं।

7. परिवार की देखभाल करने के लिए पिताजी बहुत मेहनत करते हैं, लेकिन जब पहचान पाने की बात आती है, तो वे हमेशा पिछड़ जाते हैं।

8. माँ कहती है, हमें इस महीने कॉलेज-ट्यूशन का भुगतान करने की आवश्यकता है, कृपया त्योहार पर मेरे लिए साड़ी न खरीदें। जब बच्चे अपने पसंदीदा पकवान का आनंद लेते हैं और पिताजी के पसंद का कुछ नही शुगर के मरीज है फिर भी दाल चावल खा लेते हैं। दोनों का प्यार बराबर है, फिर भी पता नहीं क्यों पिताजी पिछड़ रहे हैं।

9. जब माता-पिता बूढ़े हो जाते हैं, तो बच्चे कहते हैं, माँ तो घर के कामों में कम से कम मदद करती ही हैं, लेकिन पिताजी हमारे लिए बेकार हैं।

पिताजी पीछे हैं या सबसे पीछे, क्योंकि वह परिवार की रीढ़ हैं। उनकी वजह से ही हम खड़े होने में सक्षम हैं। शायद, यही कारण है कि वह पिछड़ रहे है ...... 

Shyam Vishwakarma....

सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह जी की बात.....

3 अप्रैल 1967 को चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे .....,
उस समय उत्तर प्रदेश की विधानसभा में केवल दो ही मुसलमान विधायक थे ! 

 एक दिन विधानसभा भवन में एक कमाल यूसुफ नाम के विधायक ने चौधरी चरण सिंह से कहा कि चौधरी साहब आप केवल हिंदुओं की वोटों से ही मुख्यमंत्री नहीं बने हो, हमने भी तुम्हें वोट दी हैं..., अब हमारी भी कुछ मांग हैं, वह आपको माननी पड़ेंगी ! 

चौधरी साहब ने कहा यदि मैं तुम्हारी मांग मैं ना मानूं तो क्या करोगे....?
 उस मुस्लिम विधायक ने कहा कि मुसलमान जन्मजात लड़ाकू होता है, बहादुर होता है, यदि तुम हमारी मांग स्वीकार नहीं करोगे तो हम लड़ करके अपनी मांगे मनवायेंगे ! 

चौधरी साहब ने कहा  कि नीचे बैठ जा वरना जितना ऊपर खड़ा है उतना ही तुझे जमीन में उतार दूंगा ! तुम बहादुर कब से हो गए ? मुसलमान बहादुर बिल्कुल नहीं होता, एक नंबर का कायर होता है ! तुम यदि बहादुर होते तो मुसलमान बनते ही क्यों, यह जितने भी हिंदुओं से मुसलमान बने हैं, वह डर की वजह से बने हैं ! जो तलवार की नोक को देखकर ही अपने धर्म को छोड़ सकता है और विधर्मी बन सकता है वह बहादुर कैसे हो सकता है ?

 बहादुर तो हम हैं कि हमारे पूर्वजों ने 700 साल तक मुसलमानों के साथ तलवार बजाई है ! लाखों ने अपना बलिदान दिया है ! लेकिन हम  मुसलमान नहीं बने, तो बहादुर हम हुए या तुम हुए ?  तलवार को देखते ही धर्म छोड़ बैठे आज तुम बहादुर हो..!  तुम्हें तो अपने आप को कायर कहना चाहिए, और जो भी हिंदुओं से बना हुआ मुसलमान है वो पक्का कायर है, क्योंकि तुमने इस्लाम को स्वीकार किया था, और मैं तुम्हारी एक भी मांग मानने वाला नहीं हूं। जो तुम्हें करना हो कर लेना,  मैं देखना चाहता हूं कि तुम कितने बहादुर हो।

धन्य हैं ऐसे मुख्य मंत्री !