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रविवार, 14 दिसंबर 2014

ये मन वीराना है......

आज मन बहुत कष्ट में है
इस मन में कुछ भी नहीं है
यहाँ तक कि ना वीराना है
और ना ही कोई सन्नाटा
आवाज़ो के साथ यहाँ से
सन्नाटा भी चला गया है
जो कुछ यहाँ हुआ करता था
अब वो कुछ भी यहाँ नहीं है लेकिन…
इतने विराट खालीपन में भी
ना जाने ये कमबख़्त… दर्द
जाने ये दर्द कहाँ से उपजता है
किस तरह ये दर्द उदयशील है
जबकि सृष्टि सारी अस्त में है?
आज मन बहुत कष्ट मेंहै.....
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