कल इधर था आज उधर हो गया
ना जाने दोस्त कब दुश्मन बन गया
हम ऐतबार के समंदर में गोते लगाते रहे
कोई खुदगर्ज़ी के खंज़र से वार कर गया
नफरत के गड्डे में धकेल गया
ऐतबार को चुल्लू भर पानी में डुबों गया
कैसे कोई अब तुझ पर विश्वाश करे
खंजर जो मेरी पीठ पर मार गया.......