“परिचय”
आधे गिलास से भरा मेरा “परिचय”
कभी बदलता कभी छलकता मेरा “परिचय”
किसी की उम्मीद, तो किसी के जीने का सहारा
नाकामयाब हर डगर पे मचलता मेरा “परिचय”
कभी किसी का साथ खो कर,
कभी किसी के साथ हो कर
आज अकेला हैं खडा, फिर बदलता मेरा “परिचय”
जाये कहाँ बोल जिंदगीं तेरे गोल सफर पे
सूखे पत्तें सा पूछ रहा डगमगाता मेरा “परिचय”
खुद को ढूढतें कहीं खुद में ना खो जाये
आज जो ना मिला मुझसे मेरा “परिचय”
आधे गिलास से भरा छलकता मेरा “परिचय”
आधे गिलास से भरा मेरा “परिचय”
कभी बदलता कभी छलकता मेरा “परिचय”
किसी की उम्मीद, तो किसी के जीने का सहारा
नाकामयाब हर डगर पे मचलता मेरा “परिचय”
कभी किसी का साथ खो कर,
कभी किसी के साथ हो कर
आज अकेला हैं खडा, फिर बदलता मेरा “परिचय”
जाये कहाँ बोल जिंदगीं तेरे गोल सफर पे
सूखे पत्तें सा पूछ रहा डगमगाता मेरा “परिचय”
खुद को ढूढतें कहीं खुद में ना खो जाये
आज जो ना मिला मुझसे मेरा “परिचय”
आधे गिलास से भरा छलकता मेरा “परिचय”
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