"आम आदमी" आज हर कोई ये समझता है की जो महंगाई की मार झेल रहा है , वो आम आदमी है,परन्तु सच्चाई इससे कहीं हट कर है आज भी कई ऐसे लोग है जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं अब उनकी गिनती किसमे होगी आम आदमी की केटेगरी में या फिर गरीबों में ये भी अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है , भगवान ही जाने की हमारे भारत देश की ये समस्या कभी सुलझ भी पायेगी या नहीं जबसे हमें आज़ादी मिली है तब से लेकर आज तक समस्या वही की वही पहले अंग्रेज़ हम पर राज़ करते थे और अब इन गरीबों पर अमीरों का शासन है , आज भी इन लोगो की स्थिति वैसी की वैसी है सच तो ये है की ये लोग पहले भी गुलाम थे और आज भी गुलाम हैं, इन्हें तो आज़ादी की ख़ुशी ही नहीं , आज के इस दौर में महंगाई नाम की डायन ने सबको अपना शिकार बना रखा है, लेकिन ये जो दिन रात कचरे के ढेर पर अपनी रोज़ी रोटी तलाशते हैं इन्हें क्या पता की कब महंगाई बढ़ रही है या कब घट रही है , लेकिन हाँ ये बात तो बिलकुल सच है महंगाई बढ़ तो जरुर रही है , कितनी अजीब बात है आज भी कहीं न कहीं हमारे देश की स्थिति वैसी की वैसी है ,हमारे देश में बहरत की पहचान एक गरीब देश के रूप में दी जाती है एक तरफ भारत एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है वहीँ दूसरी तरफ भारत की ये तस्वीर भी किसी से छुपी नहीं है, आज भी कितने ही लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हैं फिर हम ये कैसे कह सकते हैं की भारत एक संपूर्ण शक्ति बन चुका है क्यूंकि आज भी न जाने कितनी बच्चों का भविष्य बाल मजदूरी करने में कहीं खो जाता है और आम आदमी सबसे आम बनाकर ही रह गया है वो आम आदमी जिसे आम होने का मतलब भी नहीं पता.....................
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बुधवार, 14 नवंबर 2012
आम आदमी??????????
"आम आदमी" आज हर कोई ये समझता है की जो महंगाई की मार झेल रहा है , वो आम आदमी है,परन्तु सच्चाई इससे कहीं हट कर है आज भी कई ऐसे लोग है जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं अब उनकी गिनती किसमे होगी आम आदमी की केटेगरी में या फिर गरीबों में ये भी अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है , भगवान ही जाने की हमारे भारत देश की ये समस्या कभी सुलझ भी पायेगी या नहीं जबसे हमें आज़ादी मिली है तब से लेकर आज तक समस्या वही की वही पहले अंग्रेज़ हम पर राज़ करते थे और अब इन गरीबों पर अमीरों का शासन है , आज भी इन लोगो की स्थिति वैसी की वैसी है सच तो ये है की ये लोग पहले भी गुलाम थे और आज भी गुलाम हैं, इन्हें तो आज़ादी की ख़ुशी ही नहीं , आज के इस दौर में महंगाई नाम की डायन ने सबको अपना शिकार बना रखा है, लेकिन ये जो दिन रात कचरे के ढेर पर अपनी रोज़ी रोटी तलाशते हैं इन्हें क्या पता की कब महंगाई बढ़ रही है या कब घट रही है , लेकिन हाँ ये बात तो बिलकुल सच है महंगाई बढ़ तो जरुर रही है , कितनी अजीब बात है आज भी कहीं न कहीं हमारे देश की स्थिति वैसी की वैसी है ,हमारे देश में बहरत की पहचान एक गरीब देश के रूप में दी जाती है एक तरफ भारत एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है वहीँ दूसरी तरफ भारत की ये तस्वीर भी किसी से छुपी नहीं है, आज भी कितने ही लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हैं फिर हम ये कैसे कह सकते हैं की भारत एक संपूर्ण शक्ति बन चुका है क्यूंकि आज भी न जाने कितनी बच्चों का भविष्य बाल मजदूरी करने में कहीं खो जाता है और आम आदमी सबसे आम बनाकर ही रह गया है वो आम आदमी जिसे आम होने का मतलब भी नहीं पता.....................
मैं आम आदमी हूं..........
मेरे लिए हर खास आदमी चिंतित है........
पर मेरी चिंता उसे और खास बना देती है.........
मैं वहीं का वहीं रह जाता हूं.........
क्योंकि मैं आम आदमी हूं...........
सारी योजनाओं का केंद्र मैं हूं...........
पर योजनाओं के आम का पेड़.........
जब फल देने लगता है........
तब उसका स्वाद खास चखता है.......
मेरा मुंह खुला का खुला ही रह जाता है.......
क्योंकि मैं आम आदमी हूं..........
आम और खास का अंतर मिटाने की कवायदें जारी हैं.........
पर इन पर नीयत भारी है...........
ये दिखाती हैं, वो लकदक गलियां, जो भ्रष्टाचारी हैं.........
पर, मेरी आत्मा मुझे इनसे गुजरने की इजाजत नहीं देती.....
इसलिए कि मैं आम आदमी हूं.............
(सुरेश माहेश्वरी शिवम्)
शनिवार, 3 नवंबर 2012
चूल्हे की आग................
क्या वो बचपन के दिन थे
जब हम अपने घर के बहार खेला करते थे.........
और शाम होते ही अडोस पड़ोस
की औरतें एक दुसरे के घर से
आग मांग कर अपने घर की
चूल्हा जलाया करती थी............
मिटटी का चूल्हा में गोबर की
उपली और लकड़ी जला करती थी......
क्या बताऊँ वही राख,
खाद का काम किया करती थी.........
वो स्वाद वो देशी अंदाज
अब हमेशा ही याद आता है.......
इस भाग दौड़ की शहरी जिंदगी में
लिट्टी चोखा भी हमको तरसता है........
गुरुवार, 1 नवंबर 2012
दोस्त और दोस्ती............
दोस्त और दोस्ती एक दिन के लिये तो नही होती ना!
बल्कि हमेशा के लिये होती है तो आज कुछ
पन्क्तियां दोस्त और दोस्ती के लिये…
” उलझन मे हूं, या दुख मे मै,
दोस्त है मेरा, फ़िक्र करेगा!
दूर है फ़िर भी भूलेगा ना,
कभी तो मेरा जिक्र करेगा!
दुनिया में कहीं भी होता हो मगर,
दोस्त का घर दूर कहाँ होता है!
जब भी चाहूँ आवाज लगा लेता हूँ,
वो मेरे दिल मे छुपा होता है!
जाने कैसे वो दर्द मेरा जान लेता है,
दुखों पे मेरे वो भी कहीं रोता है!
“यूं तो कहने को परिवार, रिश्तेदार साथ हैं,
जिन्दगी बिताने को, फ़िर भी एक दोस्त चाहिये,
दिल की कहने- सुनने, बतियाने को!!
हर कोई ऐसा एक मित्र पाए, जो बातें सुनते थके नही,
और मौन को भी जो पढ जाए!!
पुराने दोस्त और दोस्ती हमारे पुराने गांव की तरह होते हैं..
बरसों बाद जब हम फ़िर उनसे मिलते हैं तो कुछ बदल जाते हैं,
लेकिन बहुत कुछ पहले की तरह ही होते हैं..
और अब कुछ पन्क्तियां और, जो किसी मित्र से ही कही जा सकती है.:)
किसी बात पर मैने अपने मित्र से कहा था…. ”
आत्म ज्ञान से इतना भी तृप्त मत हो जाइये कि और
कुछ जानने कि ख्वाहिश ही न रहे,
गर्व से इतना भी मत बिगड़ जाईये कि सुधार की गुंजाइश ही न रहे!!
ज्ञानी होने ( दिखने) के चक्कर मे जमाना tense बहुत है,
हम तो कहेंगे, सबसे उपर रहने के लिये common sense बहुत है!!
किसी की बात समझ न सको तो इतना न बौखलाइये!
बेहतर है आप अपनी समझ को समझाइये!! “
बल्कि हमेशा के लिये होती है तो आज कुछ
पन्क्तियां दोस्त और दोस्ती के लिये…
” उलझन मे हूं, या दुख मे मै,
दोस्त है मेरा, फ़िक्र करेगा!
दूर है फ़िर भी भूलेगा ना,
कभी तो मेरा जिक्र करेगा!
दुनिया में कहीं भी होता हो मगर,
दोस्त का घर दूर कहाँ होता है!
जब भी चाहूँ आवाज लगा लेता हूँ,
वो मेरे दिल मे छुपा होता है!
जाने कैसे वो दर्द मेरा जान लेता है,
दुखों पे मेरे वो भी कहीं रोता है!
“यूं तो कहने को परिवार, रिश्तेदार साथ हैं,
जिन्दगी बिताने को, फ़िर भी एक दोस्त चाहिये,
दिल की कहने- सुनने, बतियाने को!!
हर कोई ऐसा एक मित्र पाए, जो बातें सुनते थके नही,
और मौन को भी जो पढ जाए!!
पुराने दोस्त और दोस्ती हमारे पुराने गांव की तरह होते हैं..
बरसों बाद जब हम फ़िर उनसे मिलते हैं तो कुछ बदल जाते हैं,
लेकिन बहुत कुछ पहले की तरह ही होते हैं..
और अब कुछ पन्क्तियां और, जो किसी मित्र से ही कही जा सकती है.:)
किसी बात पर मैने अपने मित्र से कहा था…. ”
आत्म ज्ञान से इतना भी तृप्त मत हो जाइये कि और
कुछ जानने कि ख्वाहिश ही न रहे,
गर्व से इतना भी मत बिगड़ जाईये कि सुधार की गुंजाइश ही न रहे!!
ज्ञानी होने ( दिखने) के चक्कर मे जमाना tense बहुत है,
हम तो कहेंगे, सबसे उपर रहने के लिये common sense बहुत है!!
किसी की बात समझ न सको तो इतना न बौखलाइये!
बेहतर है आप अपनी समझ को समझाइये!! “