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शनिवार, 25 अगस्त 2012

" महाभारत " के ध्रितराष्ट्र...........

" महाभारत " के ध्रितराष्ट्र को कौन नहीं जानता ,
उसके अंधेपन को कौन नहीं जानता !
हम सभी ने महाभारत को कई बार पढ़ा है
उसकी कहानी को कईयों बार सुना है ,
साथ में ध्रितराष्ट्र के बारे में भी .........
कुछ की नजर में मजबूर और लाचार ,
शकुनी और दुर्योधन की शाजिश का शिकार .........
फिर भी इतिहास ध्रितराष्ट्र को ही दोषी मानता है !

खैर मुझे भी इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है !
बात हम अंधेपन की कर रहे हैं ........
उस अंधेपन की जो आँख होते हुए भी आँखें बंद कर बैठे हैं !
अभी हाल ही में हमने और पूरे देश ने आसाम मुंबई और
लखनऊ में हुए दंगे और " ईमान " वालों का बहशीपन को देखा है ,
और देखा वहां उपस्थित अंधे -बहरे , हाड - मांस के बने पुतलों ने
जिन्हें हम शायद इंसान कहते हैं , या कहते हुए भी शर्म आती है !
हाड-मांस के बने पुतलों में इंसान अब शायद ही बचे हों ........

इस तरह की घटनाओं ने एक बार फिर ये साबित कर
दिया कि हम ध्रतराष्ट्र की तरह अंधे हो चुके हैं जो सही
और गलत में अंतर नहीं कर पाते ,
सब कुछ हमारी आँखों के सामने हो जाता और
हम कुछ भी नहीं कर पाते .... शायद करना चाहते हों पर
हमारा जमीर तो मर चुका है ....शायद हम लकवाग्रस्त
शरीर और मन में हिम्मत ना जुटा पाए हों ......
कुछ भी हो पर सच तो ये है कि हम अंधे और बहरों
की तरह इस देश में जी रहे हैं ! क्या सही है क्या गलत है
सब जानते हैं फिर भी ......?

जब हम अपने साथ हुए
गलत का ही विरोध नहीं कर पाते ... जब हम अपने घर और
अपने आसपास होने वाली गलत बातों का ही विरोध नहीं
कर पाते तो ये समाज और देश में होने वाले गलत काम
और बुराई का विरोध कैसे कर पायेंगे ,
जब विरोध ही नहीं करेंगे तो खत्म कैसे करेंगे ........
शायद हमें सिर्फ और सिर्फ अपने आप से ही मतलब है
और हमें इसके अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है .....
जब कभी हम पर कुछ घटित होता है या हम ऐसी किसी
घटना का शिकार होते हैं तब शायद हमारा अंधापन दूर होता है !
ये देश अब एक जंगल बन गया है जहाँ शेर कम इंसान की खाल
पहने भेड़िये ज्यादा हो गए हैं !

सब कुछ हमारे सामने घटित हो रहा है ,
हमारी आँखों के सामने देश के दुश्मन देश को लूट रहे हैं और हम ........
हमारे अपने ही हमारे संस्कारों को मिटटी में मिला रहे हैं और हम ..............
हम भ्रष्ट राजनेताओं की गन्दी राजनीति का शिकार होकर अपनों की ही छाती में खंजर घोंप रहे है और हम .........
हम औरतों और बच्चों पर होते निर्मम अत्याचार को होते देख रहे हैं फिर भी हम ........
गरीब जनता की मेहनत और हक का पैसा भ्रष्ट अधिकारीयों और सफेदपोश नेताओं की तिजोरियों में जमा हो रहा है और हम ..........
हम जानबूझकर हर गलत और बुरे का साथ दे रहे हैं क्यों ? ..........
क्योकि अंधापन और बहरापन हमें विरासत में मिला है और विरासत में मिली हुई चीज बहुत लम्बे समय तक हमारे साथ चलती है !

ध्रितराष्ट्र से विरासत में मिले इस अंधेपन को मिटा दो और अपनी आँखें खोलो और देखो , ये दुनिया अब बदलाव चाहती है ............

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

फिर तिरंगा लहराने चले.......


फिर आज चले लहराने तुम , लालकिले पर वही तिरंगा ।
जिसकी कसमें खाकर जाने , कितने क्रांति के बीज उगे ।
जिसकी छवि आँखों में रखकर , बेंत चंद्रशेखर ने खाए ।
जिसकी खातिर असेम्बली में , भगतसिंह बटुकेश्वर ने पर्चे लहराए ।
जिसकी खातिर बिस्मिल ने , काकोरी में लूटा था ट्रेन ।
जिसकी खातिर असफाक ने , दे दी यौवन की क़ुरबानी ।

जिसकी खातिर भेष बदल कर , जीने को विवश सुभाष हुए ।
जिसकी खातिर सर्वस लुटाकर, गोली अपनों की खायी थी ।
बोलो क्या अब तक हम कर पाये , पूरे उनके सपनो को ???
या फिर पाल कर भ्रम को केवल , जीते रहे हम सपनों को ???
है भले देश में अपनी सत्ता , लेकिन हम क्या कर पाये है ?
भूँख , अशिक्षा, बेरोजगारी,बीमारी का, क्या हम हल दे पाये है ?

लुटी जाती अस्मत अब भी , अब भी जलती बहुएं है ।
भींख मांगता बचपन है , और वही अपाहिज बुढ़ापा है ।
सौतेली है अब भी वो भाषा , जो राष्ट्र भाषा कहलाती है ।
सत्ता के चारो खम्भों पर , भारत मां रोती जाती हैं ।
लूट घसोट मची है हर दिन, भ्रस्टाचार में सब कोई रंगा।
फिर भी देखो फहराने चले, लाल किले पर आज तिरंगा ।